किन्नरों से न उलझना , वरना होना पड़ेगा शर्मसार
चलो उठो, राजा आज फंसे हो। हमारा नेग चुपचाप निकाल दो। हाय-हाय यही हमार धंधा है। जल्दी निकालो आगे भी वसूलना है। बड़े कंजूस लगते हो, अभी कायदे से मांग रहे हैं वरना ....... ये जुमले अब ट्रेनों व बसों में आम हो चले हैं।
कभी समाज का अंग माना जाने वाला किन्नर समुदाय शादी-ब्याह या किसी के अंगने में फूल बिखेरने पर बधाइयां देने का काम करते था और इसके बदले में उन्हें जो कुछ दे दिया जाता था, वे संतुष्ट हो जाते थे। समय के बदलाव के साथ-साथ किन्नरों की जहनियत काफी परिवर्तित हो चुकी है। वर्तमान समय में स्थिति यह है कि किन्नर पूरे दल-बल के साथ किसी के दरवाजे पर आ धमकते हैं, और वे खुद तय करते हैं कि उन्हें कितना पैसा चाहिए। हालांकि पैसे में कुल मोल-भाव हो जाता है लेकिन इसके लिए आपको घंटों उनसे सामने गिड़गिड़ाना पड़ेगा। किन्नरों से ऊंची आवाज में बात करके आप स्वयं को परेशानी में डाल सकते हैं। इसलिए उनसे विनती करने में ही भलाई है।
ये बात रही घरों की , आप बाहर भी किन्नरों की नजरों नहीं बच सकते, खास कर सफर के दौरान। किन्नरों की व्यापकता सबसे ज्यादा रेलगाडिय़ों में देखने को मिलती है। शायद ही कोई रूट किन्नरों से बचा हो। दिल्ली से हावड़ा जैसे तमाम लम्बे रूट की गाडिय़ों में किन्नर जबर्दस्ती प्रत्येक व्यक्ति से १०-२० रू0 तक वसूलते हैं। अब जरा सोचिए कि अगर एक बोगी में ७२ सीटें के अनुसार लोगों से १०-१० रू0 भी लिए तो साहब पूरी १८-२० बोगियों का हिसाब लगाकर देखिए। एक ट्रेन से लगभग १३ हजार रू0 के आस-पास बनता है। नीलांचल ट्रेन में सफर के दौरान किन्नर छैला (काल्पनिक नाम) से बात करने पर उसने बताया कि सुबह ८ बजे से रात ८ बजे तक ट्रेनों में पैसा लेने का काम चलता है। तकरीबन १२ घंटे में ८ ट्रेनों से लाख रू0 के आस-पास प्रतिदिन के हिसाब से महीने में लाखों के वारे-न्यारे कर रहे हैं ये किन्नर।
अगर कोई इन्हें देखकर ट्रेन में सोने का बहाना भी कर लेता है। तो बस पूछिये मत तुरंत ये पैसा वसूलने के लिए अभद्रता और अश्लीलता की किसी भी हद से गुजर जाते हैं। बताया जाता है कि सालों से चल रहे किन्नरों के इस गोरखधंधे का मेन कारण आर0पी0एफ0 तथा जी.आर.पी. से लेकर टी.टी. सहित रेल अधिकारियों की सांठगांठ है। सभी का हफ्ता बंधा हुआ है।
जाहिर सी बात है कि ऐसे माहौल में कोई ठोस कदम रूपए की चाहत तले उठने से पहले ही दब कर रह जाते हैं। ऐसे हाल देख लोगों का तो कहना यही है कि "न बाबा न ट्रेनों व बसों के बजाए निजी वाहन से सफर करना समझदारी का काम है"।
कभी समाज का अंग माना जाने वाला किन्नर समुदाय शादी-ब्याह या किसी के अंगने में फूल बिखेरने पर बधाइयां देने का काम करते था और इसके बदले में उन्हें जो कुछ दे दिया जाता था, वे संतुष्ट हो जाते थे। समय के बदलाव के साथ-साथ किन्नरों की जहनियत काफी परिवर्तित हो चुकी है। वर्तमान समय में स्थिति यह है कि किन्नर पूरे दल-बल के साथ किसी के दरवाजे पर आ धमकते हैं, और वे खुद तय करते हैं कि उन्हें कितना पैसा चाहिए। हालांकि पैसे में कुल मोल-भाव हो जाता है लेकिन इसके लिए आपको घंटों उनसे सामने गिड़गिड़ाना पड़ेगा। किन्नरों से ऊंची आवाज में बात करके आप स्वयं को परेशानी में डाल सकते हैं। इसलिए उनसे विनती करने में ही भलाई है।
ये बात रही घरों की , आप बाहर भी किन्नरों की नजरों नहीं बच सकते, खास कर सफर के दौरान। किन्नरों की व्यापकता सबसे ज्यादा रेलगाडिय़ों में देखने को मिलती है। शायद ही कोई रूट किन्नरों से बचा हो। दिल्ली से हावड़ा जैसे तमाम लम्बे रूट की गाडिय़ों में किन्नर जबर्दस्ती प्रत्येक व्यक्ति से १०-२० रू0 तक वसूलते हैं। अब जरा सोचिए कि अगर एक बोगी में ७२ सीटें के अनुसार लोगों से १०-१० रू0 भी लिए तो साहब पूरी १८-२० बोगियों का हिसाब लगाकर देखिए। एक ट्रेन से लगभग १३ हजार रू0 के आस-पास बनता है। नीलांचल ट्रेन में सफर के दौरान किन्नर छैला (काल्पनिक नाम) से बात करने पर उसने बताया कि सुबह ८ बजे से रात ८ बजे तक ट्रेनों में पैसा लेने का काम चलता है। तकरीबन १२ घंटे में ८ ट्रेनों से लाख रू0 के आस-पास प्रतिदिन के हिसाब से महीने में लाखों के वारे-न्यारे कर रहे हैं ये किन्नर।
अगर कोई इन्हें देखकर ट्रेन में सोने का बहाना भी कर लेता है। तो बस पूछिये मत तुरंत ये पैसा वसूलने के लिए अभद्रता और अश्लीलता की किसी भी हद से गुजर जाते हैं। बताया जाता है कि सालों से चल रहे किन्नरों के इस गोरखधंधे का मेन कारण आर0पी0एफ0 तथा जी.आर.पी. से लेकर टी.टी. सहित रेल अधिकारियों की सांठगांठ है। सभी का हफ्ता बंधा हुआ है।
जाहिर सी बात है कि ऐसे माहौल में कोई ठोस कदम रूपए की चाहत तले उठने से पहले ही दब कर रह जाते हैं। ऐसे हाल देख लोगों का तो कहना यही है कि "न बाबा न ट्रेनों व बसों के बजाए निजी वाहन से सफर करना समझदारी का काम है"।
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