निरंकुश होता प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड
कानपुर के टेनरियों के अवशेष गंगा में बहाने का मामला हो या ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण करने का प्रकरण, सबमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मिली भगत साफ जाहिर होती है। इस बोर्ड के लिये संसदीय समिति के आदेशों का भी कोई मतलब नहीं रह गया है। इसे अंगूठा दिखाकर औद्योगिक घरानों को फायदा पंहुचने के कामकाज को अंजाम देना बोर्ड का चलन हो गया है। 1995 से लगातार यह बोर्ड संसदीय समिति के आदेशों की धता बताते आ रहा है। मामला सीतापुर जिले के सक्सेरिया चीनी मिल के प्रदूषण से जुड़ा हैं । 1995 में दस सांसदों की समिति ने शिकायत मिलने पर इस चीनी मिल द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण का मौका-मुयाना किया था। 25 अगस्त 1995 को समिति ने अपनी रिपोर्ट में निर्देष दिया था कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड चीनी मिल द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण को न केवल खत्म करे। बल्कि नगर पालिका और रिहाएशी इलाकों के अंदर उद्योग लगाने की अनुमति न दी जाए। कमेटी की इस रिपोर्ट पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आला हुक्मरान एस0सी0 भट्ट के भी हस्ताक्षर हैं। भट्ट संसदीय समिति के साथ भी गये थे। जिसमें पाया था कि मिल से सटे खेतों की फसल नष्ट हो रही है। ध्वनि प्रदूषण ज्यादा हैं। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह हैं कि प्रदूषण फैलाने वाली इस कम्पनी को निर्देष देने की जगह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने एक डिस्टलरी की भी उसी स्थान पर संस्तुति कर दी जनसूचना अधिकार के तहत बोर्ड से जब जानकारी मांगी गयी तो ये बात सामने आयी । तकरीबन दो साल बाद 3 अगस्त 2005 को मुख्य पर्यावरण अधिकारी के.के. शर्मा ने सूचना आयोग की सख्ती के बाद सिर्फ यह माना कि फैक्ट्री नगरपालिका सीमा बिसवां के अंदर हैं। हालंकि उन्होंने संसदीय समिति की जांच से अनभिज्ञता जताई। गौरतलब है कि शराब की फैक्ट्री का लाइसेंस देने के लिए सुनवाई जरूरी होती है। दिलचस्प यह है कि जनसुनवाई जिला मुख्यालय सीतापुर में की गई। जो 35 किमी दूर है। वह भी तब जब भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मुत्रालय के निर्देष और कानून के मुताबिक जनसुनवाई उस स्थान पर होनी थी। जहां फैक्ट्री लगाई जानी थी। बाद में बोर्ड ने भी सूचना आयोग में माना कि जनसुनवाई प्रोजेक्ट साइट पर होनी चाहिए थी। मौके पर सुनवाई का भारत सरकार का 14 सितम्बर 2006 का निर्देष राज्य सरकार को 19 अक्टूबर 2006 तक नहीं प्राप्त हुआ था। लेकिन यह बात सिर्फ बोर्ड के अफसर कहते हैं। इससे केन्द्र और राज्य के बीच की संवादहीनता समझी जा सकती है।
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