मानवाधिकार हनन में अव्वल है उत्तर प्रदेश
जिस कानून व्यवस्था की बहाली के लिए उत्तर प्रदेश की जनता ने मई 2007 में मायावतीसरकार को पूर्ण बहुमत दिया था, वह अब तार-तार हो गई हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग रिपोर्टमें खुलासा किया गया है कि पिछले साल अकेले उत्तर प्रदेश से उसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघनकी 55,216 शिकायतें आई जो अपने आप में रिकार्ड हैं। आयोग के पास इस साल कुल 94,559शिकायतें आई थी, जिनमें 58 फीसदी से ज्यादा अकेले उत्तर प्रदेश से आई थी। बाकी 42 फीसदीमामले देश के बाकी राज्यों से आए।राष्ट्रीय महिला आयोग की ताजा रिपोर्ट भी उत्तर प्रदेश की भयावह तस्वीर पेश करती है।इस साल आयोग के पास अकेले उत्तर प्रदेश से बलात्कार, दहेज उत्पीड़न व यौन शोषण आदि के2,381 मामले दर्ज कराए गए। आयोग में इस साल कुल 4712 मामले आए जिनमें आधे से ज्यादाउत्तर प्रदेश से दर्ज हुए महिला उत्पीड़न के मामले में दिल्ली दूसरे स्थान पर नजर आया जहां से724 शिकायतें दर्ज कराई गई। लेकिन उत्तर प्रदेश व दिल्ली से जुड़े मामलों की संख्या में भारी अंतररहा। महिला आयोग ने माना कि महिलाओं के उत्पीड़न से जुड़े मामलों में भी तेजी से इजाफा हुआहै। आयोग के पास 2006 में 2155 व 2007 में 4218 मामले पहुंचे।कम से कम एक महिला मुख्यमंत्री को यह उपलब्धि तो अवश्य ही हासिल करना चाहिए कि उसकेकार्यकाल में महिलाएं सुकून से जी सके। उन्हें हर संभव भयमुक्त वातावरण मिले ताकि वह अपनेव्यक्तित्व को निखार सके। लेकिन माया राज में स्थिति एकदम उल्टी हैं। मायावती के भयमुक्त समाजमें मानवाधिकार उल्लंघन के सारे रिकार्ड टूट गये हैं। अब देखना ये है कि आगामी लोकसभा चुनावोंमें बसपा को जनता क्या जवाब देती है।
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