केस्को ने किया कानपुर का कबाड़ा
सूबे के सबसे बडे शहर कानपुर के करीब ५० लाख लोगों को बिजली आपूर्ति देने वाले संस्थान ÷केस्को' की कार्य प्रणाली अजब-गजब है। विभाग के सीएमडी हो या उर्जा मंत्री, सबके दावों के यूज उडाते हुए भीषण गर्मी में हो रही अंधाधुंध विद्युत कटौती से पूरा नगर बिलबिला उठा है। पर इसके मुखिया को जरा भी चिंता नहीं। त्रस्त लोगों का सब्र टूट रहा है, सड कों पर उतर कर विरोध कर रही भीड हिंसक बन कानून को खतरा पैदा कर रही है। औद्योगिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र को करोडों का नुकसान हो रहा है। आइये आपको इस नश्तर चुभाने वाले कटौती के करंट से रूबरू कराते हैं -
बेवफा बिजली के नखरे से कानपुर के लोग हलकान है। जून में जब गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी तो यहां पर बिजली की कटौती भी पूरी दुश्मनी निभा रही थी। सूबे में सबसे ज्यादा कर अदा करने वाले इस शहर के लोगों का दुर्भाग्य है कि राजनीतिक कारणों से उन्हें बिजली कटौती का दंश सहना पड़ता है। बसपा शासन में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के पहले तक यहां पर संतोष जनक विद्युत आपूर्ति थी। करीब १६ घण्टे बिजली मिल रही थी। लेकिन बसपा प्रत्याशी की जमानत क्या जब्त हुई कि नगरवासियों पर एक तरह से केस्को व राज्य विद्युत परिषद जुल्म ढाने लगा। ठीक अपने पूर्ववर्ती सपा सरकार की तरह। उस पर तुर्रा यह है कि उर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय जब-जब शहर आये लम्बे-चौडे वायदे कर गए, उसके बाद विद्युत आपूर्ति की और भी ज्यादा दुर्दशा हो गई। हालांकि सूबे में बिजली संकट बढा है भीषण गर्मी के कारण मांग भी बेतहाशा बढ गई है। लेकिन बीते दो दशकों से कटौती में कानपुर को ही बलि का बकरा बनाया जाता रहा है। दूसरे शहरों को किस तरह निर्बाध बिजली दी जाती है, इसका उदाहरण हैं लखनऊ, नोएडा, हाथरस, बांदा, इलाहाबाद , इन शहरों में १८ से २० घण्टे बिजली दी जा रही है।
कानपुर को बिजली देने वाले संस्थान केस्को में पहले एमडी स्तर का सीनियर आईएएस अधिकारी होता था। किन्तु बाद में यहां पर यह जिम्मेदारी टेक्नोक्रेट को दी जाने लगी। अब यह पद हटा कर यूपीपीसीएल के सीएमडी को यहां की जिम्मेदारी दी गई है। नगर में चीफ इंजीनियर रणधीर सिंह के नेतृत्व में सभी डिवीजनों के इंजीनियर व स्टेशन अधीक्षक विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था देख रहे है। यूपी में बीते १५ सालों में मात्र ४२० मेगावाट विद्युत उत्पादन की व्यवस्था की गई जबकि इतनी अवधि में करीब ५० फीसद मांग बढ़ गई। सूबे में १० हजार मेगावाट की मांग के सापेक्ष मात्र ६५००-७००० में वाट बिजली उपलब्ध है। केन्द्र सरकार का दावा तो गले ही नहीं उतरता। एक पावर हाउस बनने में कम से कम डेढ दो साल लगता है पर केन्द्रीय विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे १०० दिनों में ५६५० मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन का दावा कर रहे हैं। वहीं रामवीर उपाध्याय तीन सालों में राज्य में सरकारी क्षेत्र में २००० व निजी क्षेत्र में २१३० मेगावाट के नए विद्युत उत्पादन केन्द्र शुरू करने का दावा कर रहे है।
कानपुर नगर को उत्तरी ग्रिड से बिजली मिलती है। यहां पर २८४ मेगावाट क्षमता का पनकी में पावर हाउस है जिसमें आजकल करीब २०० मेगावाट बिजली बन रही है। यहां सालों से २५० मेगावाट की नई यूनिट गैस आधारित लगाने पर गेल (गैस इण्डिया लि०) की सहमति न मिलने से काम शुरू नहीं हो पाया। पहले रिवर साइड पावर हाउस (अब कबाड़ हो चुका है ) से ८२ मेगावाट बिजली शहर को मिलती थी। तब बिजली की किल्लत नहीं थी। कानपुर के औद्योगिक महत्व को देखते हुए १९४७ से लेकर १९८९ तक यह कटौती मुक्त शहर था। पर सियासी प्रतिनिधित्व के कमजोरी के कारण यहां का रूतबा लखनऊ व इलाहाबाद को मिल गया। रही सही कसर केस्को व टोरंट के बीच विद्युत वितरण का नाटक पूरी कर रहा है। केस्को को प्रतिवर्ष कोई ९० करोड का नुकसान हो रहा है। इसमें से आधा लाइन लॉस के कारण बाकी केस्को कर्मियों की लापरवाही के कारण होता है।
केस्को की अंधाधुंध कटौती के कारण पूरे शहर की जलापूर्ति बाधित हो गई है। लोग एक-एक बूंद पानी का तरसते रहे। हाल यह हुआ कि पानी को लेकर खून बह गया। दो लोगों की हत्या तक बिजली सकंट के कारण हो गयी। प्यासे लोगों ने जल संस्थान को घेरा तो जीएम रतन लाल ने सारा दोष केस्को पर मढ़ दिया। दूसरी तरफ कटौती के खिलाफ उद्योगपतियों ने राजस्व न देने का एलान कर दिया। औद्योगिक फीडर से कटौती के कारण रोजाना ३० करोड से ज्यादा की उत्पादन क्षति होने से उद्योगपतियों व व्यापारियों में रोष है। कोपे इण्डस्ट्रीयल इस्टेट के चेयर मैन मलिक विजय कपूर व आईआईए के मनोज बंका व उद्यमी बलराम नरूला ने केस्को को कोसते हुए बताया कि यदि यही हालात रहे तो वे लोग यहां से उद्योग उत्तरांचल या एमपी ले जाएंगे। लाखों लोगों की रोजी रोटी के दुद्गमन बने केस्को की कार्य प्रणाली व भ्रष्ट अफसरों के चलते राज्य के सबसे बडे नगर कानपुर के ५० लाख लोगों का चैन तो छिन गया साथ ही छात्रों, व्यापारियों, उद्योगपतियों, मजदूरों, प्राइवेट सेवा के लोगों की जिन्दगी में भी अंधेरा कायम है।
बेवफा बिजली के नखरे से कानपुर के लोग हलकान है। जून में जब गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी तो यहां पर बिजली की कटौती भी पूरी दुश्मनी निभा रही थी। सूबे में सबसे ज्यादा कर अदा करने वाले इस शहर के लोगों का दुर्भाग्य है कि राजनीतिक कारणों से उन्हें बिजली कटौती का दंश सहना पड़ता है। बसपा शासन में लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के पहले तक यहां पर संतोष जनक विद्युत आपूर्ति थी। करीब १६ घण्टे बिजली मिल रही थी। लेकिन बसपा प्रत्याशी की जमानत क्या जब्त हुई कि नगरवासियों पर एक तरह से केस्को व राज्य विद्युत परिषद जुल्म ढाने लगा। ठीक अपने पूर्ववर्ती सपा सरकार की तरह। उस पर तुर्रा यह है कि उर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय जब-जब शहर आये लम्बे-चौडे वायदे कर गए, उसके बाद विद्युत आपूर्ति की और भी ज्यादा दुर्दशा हो गई। हालांकि सूबे में बिजली संकट बढा है भीषण गर्मी के कारण मांग भी बेतहाशा बढ गई है। लेकिन बीते दो दशकों से कटौती में कानपुर को ही बलि का बकरा बनाया जाता रहा है। दूसरे शहरों को किस तरह निर्बाध बिजली दी जाती है, इसका उदाहरण हैं लखनऊ, नोएडा, हाथरस, बांदा, इलाहाबाद , इन शहरों में १८ से २० घण्टे बिजली दी जा रही है।
कानपुर को बिजली देने वाले संस्थान केस्को में पहले एमडी स्तर का सीनियर आईएएस अधिकारी होता था। किन्तु बाद में यहां पर यह जिम्मेदारी टेक्नोक्रेट को दी जाने लगी। अब यह पद हटा कर यूपीपीसीएल के सीएमडी को यहां की जिम्मेदारी दी गई है। नगर में चीफ इंजीनियर रणधीर सिंह के नेतृत्व में सभी डिवीजनों के इंजीनियर व स्टेशन अधीक्षक विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था देख रहे है। यूपी में बीते १५ सालों में मात्र ४२० मेगावाट विद्युत उत्पादन की व्यवस्था की गई जबकि इतनी अवधि में करीब ५० फीसद मांग बढ़ गई। सूबे में १० हजार मेगावाट की मांग के सापेक्ष मात्र ६५००-७००० में वाट बिजली उपलब्ध है। केन्द्र सरकार का दावा तो गले ही नहीं उतरता। एक पावर हाउस बनने में कम से कम डेढ दो साल लगता है पर केन्द्रीय विद्युत मंत्री सुशील कुमार शिंदे १०० दिनों में ५६५० मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन का दावा कर रहे हैं। वहीं रामवीर उपाध्याय तीन सालों में राज्य में सरकारी क्षेत्र में २००० व निजी क्षेत्र में २१३० मेगावाट के नए विद्युत उत्पादन केन्द्र शुरू करने का दावा कर रहे है।
कानपुर नगर को उत्तरी ग्रिड से बिजली मिलती है। यहां पर २८४ मेगावाट क्षमता का पनकी में पावर हाउस है जिसमें आजकल करीब २०० मेगावाट बिजली बन रही है। यहां सालों से २५० मेगावाट की नई यूनिट गैस आधारित लगाने पर गेल (गैस इण्डिया लि०) की सहमति न मिलने से काम शुरू नहीं हो पाया। पहले रिवर साइड पावर हाउस (अब कबाड़ हो चुका है ) से ८२ मेगावाट बिजली शहर को मिलती थी। तब बिजली की किल्लत नहीं थी। कानपुर के औद्योगिक महत्व को देखते हुए १९४७ से लेकर १९८९ तक यह कटौती मुक्त शहर था। पर सियासी प्रतिनिधित्व के कमजोरी के कारण यहां का रूतबा लखनऊ व इलाहाबाद को मिल गया। रही सही कसर केस्को व टोरंट के बीच विद्युत वितरण का नाटक पूरी कर रहा है। केस्को को प्रतिवर्ष कोई ९० करोड का नुकसान हो रहा है। इसमें से आधा लाइन लॉस के कारण बाकी केस्को कर्मियों की लापरवाही के कारण होता है।
केस्को की अंधाधुंध कटौती के कारण पूरे शहर की जलापूर्ति बाधित हो गई है। लोग एक-एक बूंद पानी का तरसते रहे। हाल यह हुआ कि पानी को लेकर खून बह गया। दो लोगों की हत्या तक बिजली सकंट के कारण हो गयी। प्यासे लोगों ने जल संस्थान को घेरा तो जीएम रतन लाल ने सारा दोष केस्को पर मढ़ दिया। दूसरी तरफ कटौती के खिलाफ उद्योगपतियों ने राजस्व न देने का एलान कर दिया। औद्योगिक फीडर से कटौती के कारण रोजाना ३० करोड से ज्यादा की उत्पादन क्षति होने से उद्योगपतियों व व्यापारियों में रोष है। कोपे इण्डस्ट्रीयल इस्टेट के चेयर मैन मलिक विजय कपूर व आईआईए के मनोज बंका व उद्यमी बलराम नरूला ने केस्को को कोसते हुए बताया कि यदि यही हालात रहे तो वे लोग यहां से उद्योग उत्तरांचल या एमपी ले जाएंगे। लाखों लोगों की रोजी रोटी के दुद्गमन बने केस्को की कार्य प्रणाली व भ्रष्ट अफसरों के चलते राज्य के सबसे बडे नगर कानपुर के ५० लाख लोगों का चैन तो छिन गया साथ ही छात्रों, व्यापारियों, उद्योगपतियों, मजदूरों, प्राइवेट सेवा के लोगों की जिन्दगी में भी अंधेरा कायम है।
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