बच्चों में भावनात्मक मैच्योरिटी कैसे बढ़ाएं
दसवीं कक्षा के एडविन की जिद है कि वह बोर्डिंग स्कूल में रहकर पढेगा। उसकी शिकायत है कि मां हर समय उसे पढ़ते समय डांटती रहती है जबकि छोटी बहन को कुछ नहीं कहती। बोर्डिंग के लिए वह एक साल पीछे यानी ९ वीं कक्षा में एडमिशन लेने के लिए भी तैयार है क्योंकि उसकी भावनाओं को घर में कोई नहीं समझता अतः उसे दूर रहना है।
माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा न उतर पाने के भय से सारंग ने परीक्षा परिणाम आने से पहले ही आत्महत्या कर ली। १२ वर्ष के बच्चे ने पब्लिक बूथ से स्कूल में फोन करके स्कूल में बम होने की झूठी अफवाह फैला दी ताकि स्कूल बंद हो जाये कारण उसने होमवर्क नहीं किया था। उधर टीचर का भय था और घर में अकारण रूकने पर मां के सवालों की चिंता थी।
ऐसी घटनाएं आज के बच्चों की भावनात्मक स्थिति से अवगत कराती हैं कि किस मनोदशा से गुजर रहे है ये बच्चे। आज के जेट युग में भी से बच्चे समझ नहीं पाते कि अपनी भावनाओं को किस तरह हैंडल करें जबकि आज के बच्चों का आईक्यू स्तर पहले से कहीं ज्यादा है ओर उन्हें पैरेन्ट्स का भी पूरा सहयोग है। आज के माता-पिता की भी पूरी कोषिष होती है कि इनके बच्चे हर प्रकार से समृद्ध हों ताकि आज के इस प्रतियोगी माहौल में खुशी सामंजस्य बैठा सकें। किन्तु ऐसा हो नहीं पा रहा है बच्चे भावनाओं के बहाव में बह जाते है। इनमें दूसरे की भावनाओं को समझने अनुकूल व्यवहार अथवा सहयोग की योग्यता की कमी देखी जा रही है। साथ ही बच्चों में भविष्य के प्रति निष्चिंतता भी नहीं है और ना ही वे उत्साही व आशावादी रह गए है।
किश्ाोरावस्था मे कभी-कभी उनके जीवन में एक शून्यता सी आ जाती है। क्या चाहते है क्या करना चाहिए जैसी तमाम जगहों पर उनका दृष्टिकोण नकारात्मक ही रहता है। परिणाम कैरियर व पढ़ाई प्रभावित होती है और साथ ही प्रभावित होते है परस्पर व्यक्तिगत रिश्ते । यही वजह है कि आज भावनात्मक बौद्धिकता या इमोषनल इंटेलिजेंस (ईक्यू का महत्व बढ़ रहा है बल्कि इसे आईक्यू से ज्यादा महत्वपूण माना जाता है। अतः उन्हें सही तरीके से हैंडल करना जरूरी है। अध्ययनों के अनुसार पैरेन्ट्स बच्चों की इमोशनल इंटेलिजेन्स के सही विकास में योगदान दे सकते है। एक समाचार पत्र में प्रकािशत तथ्यों के अनुसार १९७० में किए गए कई एक परीक्षणों के वैज्ञानिक प्रमाण इस तथ्य को उजागर करते है कि जन्म के बाद शुरू के १८ महीनों में ब्रेन के इमोषनल विकास को सेट करते है। अतः बच्चे के ईक्यू के विकास पर शुरूआत से ही ध्यान देना चाहिए। सही विकास के लिए जरूरी है कि कुछ बातों पर आरंभ से ही ध्यान दिया जाए।
कहते है बच्चा आपकी बात सुनने में भले ही चूक जाएं, किन्तु व्यवहार अपनाने में देर नहीं करता। आप अपनी विभिन्न भावनाओं जैसे - ईर्ष्या क्रोध खुशी उल्लास निराशा अवसाद या पीड़ा की स्थिति में कैसा व्यवहार करते है या दूसरों के प्रति कैसी भावना रखते है। वैसा ही व्यवहार बच्चा भी स्वतः ही करने लगता है। उसे सिखने या बताने की जरूरत नहीं है देखा जाए तो बड़े होने पर अन्य भावनाओं से ज्यादा निराषा कुंठा जैसी भावनाओं का सामना करना पड़ता है और इस निराशा या अवसाद की पीड़ा बच्चों से हैंडल नहीं होती।
इनके प्रति बचपन से ही सावधान रहना चाहिए। बच्चे की मांग पूरी करने के बजाए कभी-कभी ना भी कहें ताकि बड़े होने पर निराशा उसके लिए कोई अनजानी भावना न रह जाए। आज परिवार छोटे है ऐसे में बच्चे की मनोदशा को सपोर्ट करने के लिए हर वक्त पेरेन्ट्स उपलब्ध नहीं हो पाते। अतः उनका भावनात्मक विकास ऐसा हो कि हर दुविधापूर्ण या प्रतिकूल स्थिति में भी वे सही दिशा चुन सके। टूटने के बजाए आत्मविष्वास से सही कदम उठाएं व जिम्मेदार बनें। कभी-कभी बच्चों को परस्पर जिम्मेदार बनाना भी जरूरी है ताकि वे एक दूसरे की भावनाओं को निकट से समझें व उनसे डील करना सीखें। ऐसा माहौल बनाएं कि वो अपनी भावनाओं को खुले मन से आपके सामने भी व्यक्त कर सकें। जो कुछ भी वे महसूस कर रहे है उनकी भावनाओं को मैच्योर तरीफ से लें।
बच्चों के लिए खेलना जरूरी है। प्रायः ये माना जाता है कि खेल कूद शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है किन्तु शायद कम लोग ही इस बात पर ध्यान देते है कि खेल कूद के माध्यम से भावनात्मक विकास में सहयोग मिलता है। इस दौरान क्रोध ईर्ष्या निराशा लालच जैसी भावनाओं से हर बच्चे को कभी न कभी गुजरना ही पड़ता है। कोई भी बच्चा अकेला नहीं खेलना चाहता उसे साथियों की जरूरत होती है। इसलिए वो अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर खेल का आनंद उठाता है। देखने में भी आता है कि यदि किसी कारणवश दो बच्चे झगड़ते है तो कुछ समय बाद उनमें किसी न किसी प्रकार आपसी समझौता भी हो जाता है।
भावनात्मक विकास के लिए बच्चों को एक अलग व्यक्ति के रूप में देखना व समझना भी जरूरी है। उनके मित्र बनिए उनके साथ उनकी आकांक्षाएं महत्वकांक्षाएं व ध्येय शेअर कीजिए। उन्हें महसूस कराइए कि वो आपके लिए कितने महत्वपूर्ण है और एक अच्छे इन्सान है। प्रशंसा व उत्साह से उनकी सही भावनाओं का विकास होगा और गलत भावनाओं का विकास होगा और गलत भावनाओं के प्रति उनका रवैया स्वयं ही बदल जाएगा। अपनी एक्टिविटीज में उन्हें शामिल कीजिए ताकि वा आपको देखकर आपकी भावनाओं को समझकर जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण अपना सकें।
भावना से जुड़ी ही स्थिति ईक्यू के अंतर्गत आती है। एक जमाना था जब पैरेन्ट्स बच्चे का आईक्यू स्तर ऊंचा देखकर बेहद संतुष्ट व गर्व महसूस करते थे किंतु आज के माहौल में इमोषनल इंटेलिजेन्स का महत्व ज्यादा बढ़ गया है। दौड़भाग और प्रतियोगिता भरी जिन्दगी में र वक्त आपको अपने इमोशन्स को सही रूप में लेना पड़ता है। बल्कि जिंदगी का मुख्य हिस्सा है माइन्ड सेट। आप जैसा सोचते है उसी के अनुरूप परिस्थितियों से डील करते है। सच भी है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
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