अध्यक्ष पद से हटे तो कहीं के नहीं रहेंगे नितिन गडकरी
भाजपा की कोर कमेटी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नितिन गडकरी को
क्लीनचिट दे कर उनकी कुर्सी बचा ली है लेकिन कल की बैठक में पार्टी के
वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का नदारद रहना कई सवाल खड़े कर गया है। माना
जा रहा है कि गडकरी को ‘दीवाली गिफ्ट’ के रूप में भले ही अभयदान मिल गया
हो, लेकिन भविष्य में कोई न कोई धमाका जरूर हो सकता है। कयास यह भी लगाए जा
रहे है कि अगर गडकरी अध्यक्ष पद से हटे तो उन्हें अपने गृहराज्य
महाराष्ट्र की राजनीति
में भी दखल नहीं मिलेगा। महाराष्ट्र की
राजनीति के जो समीकरण हैं, वह इस अंदेशे को पुख्ता भी करते हैं। दरअसल
गडकरी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं, जो राज्य के कुल मतदाताओं का महज चार
फीसदी हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में मराठों, पिछड़ों और दलितों का
वर्चस्व रहा है लेकिन ब्राह्मण हाशिए पर ही रहे हैं। यह वजह है कि
राज्य में अब तक केवल एक ब्राह्मण मनोहर जोशी ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक
पहुंच सके हैं। हालांकि उसमें शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की भूमिका
महत्वपूर्ण रही है। महाराष्ट्र में भाजपा की पिछड़ी जातियों के बीच ही
मजबूत पैठ रही है। राज्य की राजनीति में गोपीनाथ मुंडे जैसे पिछड़े वर्ग के
नेता ही नेतृत्व में रहे हैं। पिछड़े वर्ग के वोट बैंक को लुभाने
के लिए ही पार्टी ने मुंडे को 2014 के विधानसभा चुनाव का नेतृत्व भी सौंपा
है। पर्यवेक्षकों का मानना है कि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा
इस रणनीति में कोई बदलाव भी नहीं करेगी। ऐसे में राष्ट्रीय अध्यक्ष की
गद्दी से उतरने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में गडकरी की कोई भूमिका
बचेगी, यह कहना मुश्किल है।
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