महाकुंभ 147 वर्षों बाद बना दुर्लभ ग्रहीय संयोग
इलहाबाद। संगम की रेती पर महाकुंभ के लिए खास दुर्लभ ग्रहीय संयोग 147 बरस बाद
हुआ है। देवगुरु बृहस्पति, वृष राशि से संचरण के साथ कुंभ पर्व का संयोग
तो बना ही है, इस बार शनि और राहु के तुला राशि में संचरण का दुर्लभ संयोग
भी बन रहा है। इससे पहले जनवरी 1865 में प्रयाग में ही अर्धकुंभ के दौरान
ऐसा ग्रहीय संयोग बना था। तब भी शनि और राहु का तुला राशि में संचरण हुआ
था।
ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि राहु की ओर से शनि के प्रभाव
में बढ़ोतरी से वैश्विक स्तर पर भारत की धार्मिक, आध्यात्मिक पताका लहराएगी
और उसका प्रभुत्व बढ़ेगा। शनि को न्याय का देव और राहु को रहस्य उद्घाटित
करने वाला माना जाता है। ऐसे में मेले में ढोंगियों, पाखंडियों का पर्दाफाश
होगा। इतना ही नहीं रेती पर साधना करने वालों के आध्यात्मिक प्रयासों,
अनुष्ठानों को पूर्णता और सफलता मिलेगी। भारतीय ज्योतिष परिषद के
महामंत्री ज्योतिर्विद अविनाश राय के मुताबिक शनि को धर्म-अध्यात्म तथा
दर्शन का देव और राहु को शनि का करीबी मित्र माना जाता है। साथ होने पर
राहु, शनि के गुणों में कई गुना बढ़ोतरी करता है। मौजूदा समय में शनि अपनी
उच्च की राशि से संचार कर रहा है, ऐसे में इस दुर्लभ संयोग से धर्म,
अध्यात्म और दर्शन के क्षेत्र में भारत को उच्चता मिलेगी। महिला
संन्यासियों के साथ ही वैरागियों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी होगी।
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