कर्ज चुकाए बिना मुक्ति नहीं मिल सकती
वाराणसी। लोग सुख-सुविधा में वृद्धि के लिए हर उपाय करते हैं, किसी से कर्ज
लेना पड़े तो इसमें हिचकते नहीं हैं। लेकिन जब कर्ज चुकाने का समय आता है
तो दस तरह के बहाने बनाने शुरू कर देते हैं। जब कर्ज देने वाला व्यक्ति
पीछे पड़ जाता है तब उससे कन्नी काटते फिरते हैं कि, कहीं आमना-सामना न हो
जाएं।
मन में यह भी विचार आता रहता है कि किसी तरह कर्ज देने वाला व्यक्ति
मर जाए ताकि कर्ज चुकाने के झंझट से मुक्ति मिल जाए। ऐसी स्थिति तब होती है
जब कर्ज चुकाने की भावना नहीं रहती है। लेकिन आप चाहें न चाहें बिना कर्ज
चुकाये मुक्ति नहीं मिल सकती। महर्षि चार्वाक ने लिखा है 'यावेत जीवेत सुखम जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं
पिवेत्'। अर्थात जब तक जियो सुख से जियो, ऋण करके भी घी पियो। महर्षि
चर्वाक ने इस श्लोक में भौतिकवाद की शिक्षा दी है। अपने समय में यह श्लोक
भले ही लोगों को अधिक प्रभावित नहीं कर पाया हो लेकिन वर्तमान समय में
स्थिति कुछ इसी तरह की है। आप वर्तमान रूप में चुकाएं अथवा किसी अन्य रूप में कर्ज हर हाल में
चुकाना पड़ता है। जिसने आपको कर्ज दिया है वह आपसे हर हाल में कर्ज वसूल कर
रहेगा। इस नियम से भगवान भी वंचित नहीं है। तिरूपति बालाजी के विषय में
मान्यता है कि इन्होंने विवाह के लिए कुबेर से सोना ऋण लिया था। जब तक
बालाजी कुबेर का ऋण नहीं चुका देते तब तक इन्हें पृथ्वी लोक में रहना होगा।
इसी मान्यता के कारण तिरूपति मंदिर में सोना चढ़ाया जाता है। ग्रामीण
इलाकों में किसी की अल्पायु में मृत्यु होने पर लोग आज भी कहते हैं कि
मरने वाला व्यक्ति किसी कर्ज की वसूली के लिए आया था। शास्त्रों में कहा
गया है कि मृत्यु के समय किसी भी प्रकार का बंधन नहीं होना चाहिए। कर्ज भी
एक प्रकार का बंधन बताया गया है जो जीवात्मा को बार-बार जीवन मृत्यु के
चक्र में भटकाता है इसलिए जिससे कर्ज लिया है उसका कर्ज समय रहते चुका देना
चाहिए।