31 साल बाद मिला न्याय, दरोगा समेत 3 को फांसी, 5 को उम्रकैद
लखनऊ। लखनऊ स्थित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष
अदालत ने 31 साल पुराने फर्जी मुठभेड़ मामले में तीन पुलिसकर्मियों को
फांसी की सजा, जबकि पांच अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई। फरवरी 1982 को
गोंडा जिले के माधोपुर गांव में अंजाम दी गई इस फर्जी मुठभेड़ में एक पुलिस
उपाधीक्षक व 12 ग्रामीणों की हत्या कर दी गई थी।
गौरतलब है कि 12 मार्च 1982 को कौडिया थाना क्षेत्र के माधोपुर गांव में
पुलिस उपाधीक्षक (सीओ) क़े पी़. सिंह और 12 अन्य ग्रामीणों की फर्जी
मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने शुरुआत में दावा किया था कि सिंह
को डकैतों ने मारा और पुलिस की तरफ से जवाबी कारवाई में 12 डकैत मारे गए।
पुलिस ने अपना अपराध छुपाने के लिए ग्रामीणों को डकैत बता दिया था। पुलिस
उपाधीक्षक की पत्नी विभा सिंह ने घटना के पीछे साजिश बताते हुए सर्वोच्च
न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसके बाद अदालत ने पूरी घटना की सीबीआई
जांच के आदेश दिए थे। सीबीआई ने जांच के बाद 19 पुलिसकर्मियों के खिलाफ
आरोपपत्र दाखिल किए थे। इनमें से 10 की सुनवाई (ट्रायल) के दौरान मौत हो
गई। बाद में एक पुलिसकर्मी प्रेम सिंह को अदालत ने बरी कर दिया। अदालत ने जिन आठ पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई है, उसमें से सभी सेवानिवृत्त हो
चुके हैं। केवल आऱ एऩ पांडे अभी जौनपुर में उपनिरीक्षक के पद पर कार्यरत
हैं। अदालत के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद फर्जी मुठभेड़ में मारे गए
ग्रामीणों के परिजनों ने राज्य सरकार से हर परिवार को 25-25 लाख रुपये
मुआवजा देने की मांग की है। 31 वर्ष पूर्व मारे गये पुलिस उपाधीक्षक के. पी. सिंह की पुत्री और भारतीय
प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी किंजल सिंह पिता के हत्यारे आठ
पुलिसकर्मियों को सुनायी गयी सजा से बेहद खुश हैं, और उन्होंने कहा "काश
मां भी इस फैसले को सुनने के लिए जिन्दा होती।