अखंड सौभाग्य के लिए करें वट सावित्री अमावस्या व्रत
वाराणसी। भारतीय धर्म में वट सावित्री
अमावस्या स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। मूलतः यह व्रत-पूजन सौभाग्यवती
स्त्रियों का है। फिर भी सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता,
विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) इसे करती हैं। इस
व्रत को करने का विधान ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तथा अमावस्या
तक है।
आजकल अमावस्या को ही इस व्रत का नियोजन होता है। इस दिन वट (बड़,
बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की
मंगलकामना से करती हैं। वट सावित्री अमावस्या के पूजन
की प्रचलित कथा के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान
को पति रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में
जाया करता था। सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे
जंगल में चली जाती थी। एक
दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे
बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए।
सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण
न लें। यम
ने मना किया, मगर वह वापस नहीं लौटी। सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न
होकर यमराज ने वरदान के रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और
सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया। इसी
वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म से मृत पति को पुन: जीवित
कराया था। तभी से यह व्रत ‘वट सावित्री व्रत’ के नाम से जाना जाता है। वट पूजा से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार तभी से महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।