महिलायें भी कर सकती है पितरों का श्राद्ध
नई दिल्ली। पितृपक्ष के दौरान पितरों की
सद्गति के लिए कुछ खास परिस्थितियों में महिलाओं को भी विधिपूर्वक
श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त है। गरूड़ पुराण में बताया गया है कि पति,
पिता या कुल में कोई पुरुष सदस्य नहीं होने या उसके होने पर भी यदि वह
श्राद्धकर्म कर पाने की स्थिति में नहीं हो तो महिला श्राद्ध कर सकती है।
इस पुराण में यह भी कहा गया है कि यदि घर में कोई वृद्ध महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने वा अधिकार उसका होगा। शास्त्रों के अनुसार पितरों के परिवार में ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र अथवा पुत्र ही न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य तिलांजलि और पिंडदान करने के पात्र होते हैं। भारतीय संस्कृति में आश्विन कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित है। यह कहा गया है कि श्राद्ध से प्रसन्न पितरों के आशीर्वाद से सभी प्रकार के सांसारिक भोग और सुखों की प्राप्ति होती है। आत्मा और पितरों के मुक्ति मार्ग को श्राद्ध कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि जो श्रद्धापूर्वक किया जाए, वही श्राद्ध है।
इस पुराण में यह भी कहा गया है कि यदि घर में कोई वृद्ध महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने वा अधिकार उसका होगा। शास्त्रों के अनुसार पितरों के परिवार में ज्येष्ठ या कनिष्ठ पुत्र अथवा पुत्र ही न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य तिलांजलि और पिंडदान करने के पात्र होते हैं। भारतीय संस्कृति में आश्विन कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित है। यह कहा गया है कि श्राद्ध से प्रसन्न पितरों के आशीर्वाद से सभी प्रकार के सांसारिक भोग और सुखों की प्राप्ति होती है। आत्मा और पितरों के मुक्ति मार्ग को श्राद्ध कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि जो श्रद्धापूर्वक किया जाए, वही श्राद्ध है।