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सुप्रीम कोर्ट ने दिया मतदाता को 'राइट टू रिजेक्ट' का अधिकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि वोटरों को नेगेटिव वोट डालकर सभी उम्मीदवारों को रिजेक्ट करने का अधिकार है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को वोटरों को ईवीएम में 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प देने को कहा है। चुनाव सुधार की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मील का पत्थर माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एनजीओ पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की याचिका पर दिया। गौरतलब है कि चुनाव आयोग 2001 में ही यह प्रस्ताव सरकार को भेज चुका था, लेकिन सराकरें इसे दबाए बैठी रहीं। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले को लागू करने को लेकर कोई समयसीमा तय नहीं की है। इसलिए, अभी यह तय नहीं है कि यह फैसला अगले आम चुनाव तक लागू हो जाएगा या नहीं। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को इस फैसले को लागू करने में मदद करने को कहा है। प्रधान न्यायाधीश पी सथाशिवम की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि नेगेटिव वोटिंग से चुनावों की शुद्धता और विश्वसनीयता बढ़ाने का मौका मिलेगा। साथ ही ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान में हिस्सा लेंगे। जो लोग दावेदारों से खुश नहीं होंगे, वे उन्हें खारिज कर अपना मत सामने रखेंगे। पीठ ने कहा कि नेगेटिव वोटिंग से चुनावी प्रक्रिया में व्यवस्‍थागत बदलाव आएगा, क्योंकि सभी राजनीतिक दलों को चुनावों में साफ छवि वाले उम्मीदवारों को उतारने पर मजबूर होना होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नेगेटिव वोटिंग की अवधारणा 13 मुल्कों और यहां तक कि भारत में भी कायम है। जब सदन में किसी विषय पर मतदान होता है, तो सांसदों को गैर-हाजिर रहने का विकल्प भी मिलता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनावों में उम्मीदवार खारिज करने अधिकार, मौलिक अधिकार है, जो संविधान के तहत भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत मिला है। हालांकि, यह व्यवस्‍था देते हुए पीठ ने यह नहीं बताया कि अगर 'कोई नहीं'के तहत पड़ने वाले मत, उम्मीदवारों को मिलने वाले वोट से ज्यादा होते हैं, तो ऐसी स्थिति में क्या होगा। पीठ ने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि इस श्रेणी के तहत पड़ने वाले वोट की गोपनीयता बनाई रखी जाएं। यह आदेश पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबरटीज (पीयूसीएल) की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर दिया गया, जिसने अर्जी दी थी कि मतदाताओं को नेगेटिव वोटिंग का अधिकार मिलना चाहिए।