मजदूरों के खिलाफ तुलसी को कांग्रेस ने दिए रोज 11 लाख
चंडीगढ़. हाई प्रोफाइल केसों में राज्य और केंद्र सरकारें अक्सर सीनियर वकीलों की नियुक्ति करते हैं। पर तब की भूपिंदर सिंह हुड्डा सरकार ने हरियाणा में अपने एक वकील को इतनी बड़ी रकम दी कि आप जानकर हैरान रह जाएंगे।
मानेसर मारुति प्लांट में मजदूरों ने अपने हकों को लेकर प्रदर्शन किया था। मानेसर हरियाणा के पश्चिमी हिस्से में है। इस आंदोलन में 150 से ज्यादा मजदूरों को अरेस्ट किया गया था। लगभग सारे मजदूर अब भी जेल में हैं। कार बनाने वाली कंपनी मारुति में 2012 में हिसंक झड़प हुई थी। मजदूरों के हमले में एक मैनेजर की मौत हो गई थी।
राइट टु इन्फर्मेशन की जरिए खुलासा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी को मारुति केस में तब की हरियाणा सरकार ने स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर नियुक्ति किया था। गुड़गांव के अडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट में तुलसी ने इस केस में एक पेशी के लिए 11 लाख रुपये चार्ज किया था।
आरटीआई के जरिए दूसरे फी की डिटेल भी हाथ लगी है। तुलसी के साथ तीन असिस्टेंट भी थे। इन तीनों में से हर एक को एक पेशी के लिेए 66,000 रुपए मिलते थे। इसके साथ ही क्लर्कों पर एक लाख रुपए खर्च हुए। दो साल में मारुति केस में भूपिंदर सिंह हुड्डा सरकार ने केटीएस तुलसी को 5 करोड़ रुपये दिए। तुलसी फरवरी 2014 तक कांग्रेस के राज्यसभा सांसद बन चुके थे। तुलसी का कहना है कि मारुति में हिंसक झड़प मानेसर में इंडस्ट्रियल हब के लिए खतरे की घंटी थी। उन्होंने कहा, 'मैंने हरियाणा सरकार से इस मामले में अदालत में सरकार के प्रतिनिधि बनने के लिए संपर्क साधा था।
यहां तक कि हाई प्रोफाइल केस में भी इतनी बड़ी रकम किसी वकील को लीगल फीस के रूप में दी नहीं जाती। बतौर पब्लिक प्रॉसिक्युटर्स और उसमें भी किसी लोवर में कोर्ट में बहस के लिए यह रकम बहुत बड़ी है जिसे कहीं से भी तार्किक नहीं कहा जा सकता। विरोधाभास यह है कि कोल स्कैम में केटीएस तुलसी को यूपीए सरकार ने हर एक पेशी के लिए 33,000 रुपए फी के रूप में दिए थे।
जब तुलसी से फी के बारे में सवाल पूछा तो वह भड़क गए। तुलसी ने कहा कि वह इस मामले में कुछ भी बात नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा, 'मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहूंगा। यह हरियाणा सरकार और मेरे बीच की डील है। मैं इस पर कोई सफाई नहीं देना चाहता।' मारुति प्लांट केस में मजदूरों की तरफ से वृंदा ग्रोवर वकील हैं। इस केस की लड़ाई वृंदा ग्रोवर सुप्रीम कोर्ट में लड़ रही हैं। ग्रोवर ने कहा, 'यह हमारे समय की कड़वी सचाई है कि पब्लिक इंटरेस्ट के नाम पर कैसे पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। यह स्टेट की चॉइस है कि वह किसे वकील नियुक्त करता है लेकिन पब्लिक मनी का ऐसा गैरजिम्मेदार इस्तेमाल नहीं देखा। यदि यह सही है तो हम ऐसा चारों तरफ देख सकते हैं।' इस मामले में हरियाणा कांग्रेस कोई भी टिप्पणी करने के मूड में नहीं है।
हरियाणा की नई सरकार का कहना प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकार की मनमानी का इससे अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के ऑफिसर ऑफ स्पेशल ड्यूटी भूपेश्वर दयाल का कहना है कि सरकार के पास अपने 85 लॉ ऑफिसर्स थे। ऐसे में यह सवाल उठता है कि केटीएस तुलसी को इतनी बड़ी रकम क्यों दी गई? हमलोग इस मामले को देख रहे हैं।'
पिछले साल दिसंबर में हरियाणा की नई सरकार ने केटीएस तुलसी को इस केस से हटा दिया था। पहले के प्रशासन से इस मामले में नई सरकार ने सफाई मांगी है कि अपने ही मजदूरों के खिलाफ पब्लिक मनी का गैरजिम्मेदार इस्तेमाल क्यों किया गया? अब बीजेपी सरकार को फैसला करना है कि तुलसी की बाकी फी के 65 लाख रुपए देने हैं या नहीं।
(IMNB)