प्रियंका गांधी की जमीन के खुलासे में सुरक्षा का पेंच
नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) अब इस बात का फैसला करेंगे कि शिमला के पास प्रियंका गांधी वाड्रा की जमीन के बारे में जानकारी देने से उनकी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होगा या नहीं। इस मामले में एक आरटीआई दाखिल हुई है, जिसके जवाब में प्रियंका गांधी के वकील ने कहा है कि अगर जमीन के बारे में जानकारी दी गई तो सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होगा ।
वकील ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को इस सूचना को हासिल करने का हक नहीं है क्योंकि किसी तीसरी पार्टी के बारे में सूचना न देने की छूट धारा 8 में है।
पिछले साल आरटीआई ऐक्ट के तहत आवेदन करके प्रियंका गांधी की जमीन की रजिस्ट्री, फाइल नोटिंग और जमीन के मौजूदा स्टेटस के बारे में जानकारी मांगी गई थी। प्रियंका ने इस जमीन की पावर ऑफ अटर्नी किसी स्थानीय शख्स को दे रखी है। इस मामले में शिमला के एडीएम ने आरटीआई आवेदन के आंशिक भाग को रद्द कर दिया। फैसले में कहा गया कि खसरा नंबर से संबंधित जानकारी सुरक्षा कारणों से दी नहीं जा सकती, जबकि शेष फाइल नोटिंग संबंधी जानकारी जारी हो सकती है। शिकायतकर्ता ने एडीएम के फैसले से सहमत न होते हुए 2 सितम्बर, 2014 को अपील दायर की, जिसमें उन्होंने कहा कि भूमि के प्रत्येक हिस्से की जानकारी गूगल से प्राप्त की जा सकती है इसलिए सुरक्षा कारण आड़े नहीं आते।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रियंका को कानून में संशोधन करते हुए शिमला के पास जमीन खरीदने की मंजूरी दी थी इसलिए सरकार द्वारा फाइलों पर लिखे गए नोटों को सार्वजनिक होने से रोका नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि कहीं जमीन खरीद की अनुमति देने में कोई अनियमितता तो नहीं हुई। प्रियंका गांधी इस जमीन पर अपने लिए समर होम बनवा रही हैं।
प्रियंका के वकील ने सुरक्षा को खतरे वाली बात पर जोर देते हुए कहा, 'यह बात स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) की 21 नवंबर 2014 की चिट्ठी से भी स्पष्ट हो जाती है, जिसमें संबंधित अधिकारियों को सलाह दी गई है कि जानकारी देने से उनकी सुरक्षा को खतरा होगा। प्रियंका गांधी की ओर से जवाब उनके एसपीए (स्पेशल पावर ऑफ अटर्नी) एस रामाकृष्णन ने फाइल की है। जवाब के साथ एसपीजी प्रमुख दुर्गा प्रसाद की एक पेज की चिट्ठी भी लगाई गई है।
(IMNB)