मोदी के लिए अपना खजाना खोल सकते हैं मंदिर
मुंबई/दिल्ली । अगले महीने केंद्र सरकार एक
ऐसी योजना लाने जा रही है कि जिसके बाद अकूत संपत्तियों के मालिक देश के
मंदिर अपना खजाना खोल सकते हैं। मोदी सरकार का मकसद मंदिरों को इस बात के
लिए प्रोत्साहन देना होगा कि वे आगे बढ़कर अपना सोना बैंक में जमा करें और
बदले में उन्हें ब्याज मिलेगा। सरकार उस सोने को पिघला कर सुनारों को ब्याज
पर देगी।
सुनार उस सोने का इस्तेमाल गहने बनाने में करेंगे। भारत
दुनिया का सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता है। यहां के प्राचीन मंदिरों के पास
आभूषण, सोने के सिक्के और ईंटों की शक्ल में बेशुमार दौलत इकट्ठी है। इस
अकूत दौलत को मंदिरों के तहखानों में लोगों की नजर से बचा कर बड़ी हिफाजत
के साथ सुरक्षित रखा गया है। ये तहखाने ज्यादातर उतने ही पुराने हैं, जितने
पुराने कि मंदिर स्वयं हैं। कुछ एक मंदिरों में तो आपको आधुनिक तहखाने भी
मिलेंगे। मुंबई का करीब 200 साल पुराना सिद्धिविनायक मंदिर भारत के सबसे
अमीर मंदिरों में से एक है। भक्तों के चढ़ावे से मिले 158 किलो सोने के
भंडार से भरा यह मंदिर दिन-रात सुरक्षा घेरे में रहता है। इस सोने की कीमत
लगभग 67 मिलियन डॉलर यानी 417 करोड़ रुपये के करीब आंकी गई है। ताज्जुब
नहीं कि खजाने से भरे इस मंदिर के तहखाने के इर्द-गिर्द परिंदा भी पर नहीं
मार सकता। कुछ साल पहले केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर के खजाने की जानकारी
आम हुई थी। गुप्त तहखाने के अंदर बंद इस मंदिर के खजाने की कीमत 20 बिलियन
डॉलर से भी अधिक मानी जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिरों के
ऐसे ही खजाने तक अपनी पहुंच बनाना चाहते हैं। भारत में मंदिरों के पास
सुरक्षित सोने की कुल मात्रा तकरीबन 3000 टन आंकी गई है। यह केंटकी के
फोर्ट नॉक्स में सुरक्षित अमेरिकी सरकार के कुल सोने के भंडार से भी
दो-तिहाई गुना ज्यादा है। मोदी चाहते हैं कि मंदिरों के इस सोने के भंडार
का इस्तेमाल भारतीय अर्थव्यवस्था पर लंबे समय से हावी व्यापारिक असंतुलन को
दूर करने में किया जाए। सोने के लिए भारतीय आवाम का जुनून जगजाहिर है।
भारत में सोने का प्राकृतिक भंडार नहीं पाया जाता है। ऐसे में हमें विदेश
से सोने का आयात करना पड़ता है। इस प्रस्तावित योजना से सबसे बड़ा फायदा यह
होगा कि भारत का सोने का आयात काफी कम हो जाएगा। गौरतलब है कि मार्च 2013
में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में सोने के आयात का प्रतिशत भारत के कुल
व्यापार घाटे का 28% था। भारत का सालाना स्वर्ण आयात 800 से 1000 टन है।
सरकार को उम्मीद है कि इस योजना के कामयाब हो जाने की स्थिति में कुल
स्वर्ण आयात एक-तिहाई तक कम हो जाएगा। सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट के
अध्यक्ष नरेंद्र मुरारी राणे ने कहा, 'हमें सरकार की ऐसी किसी योजना का
हिस्सा बनकर अपना सोना राष्ट्रीय बैंकों में जमा करने में खुशी होगी। हम
सिर्फ यह तसल्ली करना चाहेंगे कि योजना कितनी लाभदायक और सुरक्षित है। हम
चाहते हैं कि सरकार 5 % की दर से ब्याज दरों का प्रावधान रखे।'हालांकि,
काफी भक्त इस योजना के प्रारूप से खुश नहीं हैं। उनका मानना है कि ईश्वर
को चढ़ाए गए उनके भेंट को पिघलाने का ख्याल सही नहीं है। मुंबई के एक सोना
व्यापारी ने बताया कि उनके पिता ने सिद्धिविनायक मंदिर में अब तक तकरीबन
200 किलो सोने का चढ़ावा दिया है। उनका कहना है कि श्रद्धा के चढ़ावे पर
मंदिरों का ब्याज लेना पाप होगा। 52 वर्षीय इस व्यापारी का कहना है कि भक्त
ईश्वर के लिए भेंट देते हैं, न कि मंदिर ट्रस्ट के लिए। इस योजना के
साथ ही मोदी सरकार इसी से मिलती-जुलती एक और योजना पर काम कर रही है। मोदी
चाहते हैं कि भारतीय परिवार भी गहने और अन्य सामान की शक्ल में सुरक्षित
अपना सोना बैंकों में रखवाएं। एक अनुमान के अनुसार, सिर्फ भारतीय घरों में
17000 टन से ज्यादा होने की उम्मीद है। हालांकि यह भी सच है कि भारतीयों
को ऐसी किसी योजना के लिए राजी करवाना टेढ़ी खीर है। परिवार में सोने की
परंपरा कई वंशों से चली आने का रिवाज है, जहां पिछली पीढ़ियां सोने के रूप
में वंश परंपरा अगली पीढ़ी को सौंपती हैं। कुल मिलाकर सोना उनकी कई
पीढ़ियों की थाती समझा जाता है। भारत में सोने के लिए जुनून का आलम यह
है कि बैंकिंग संस्थाओं के इस दौर में भी तकरीबन 70% ग्रामीण आबादी के लिए
अब भी सोना ही निवेश और बचत का आधार है। सोने की खरीद मनोवैज्ञानिक तौर पर
उनके लिए आर्थिक सुरक्षा का भरोसा है। इसी योजना से मिलती-जुलती एक योजना
1999 में भी लागू की गई थी, लेकिन वह योजना इसलिए सफल नहीं हो पाई क्योंकि
सरकार की तरफ से बैंकों को जिस ब्याज दर की पेशकश की गई थी वह मंदिरों की
उम्मीद से काफी कम थी।
(IMNB)