संविधान निर्माता आंबेडकर का 'हिन्दूवादी चेहरा' दिखाएगा संघ
नई दिल्ली । दुनिया भले ही बी आर आंबेडकर को
दलित नेता और संविधान निर्माता के तौर पर जानती है, लेकिन राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने उनके बारे में कुछ नई जानकारी देने का फैसला
किया है। संघ का दावा है कि उनके इस पक्ष के बारे में बहुत कम लोग जानते
हैं।
इस साल 14 अप्रैल को आंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर संघ के दोनों
मुखपत्र ऑर्गनाइजर और पांचजन्य ने 200 पन्नों का स्पेशल अंक लाने का फैसला
किया है , जिसमें उनके 'शुद्धतावादी' होने के बारे में बताया जाएगा,
जिन्होंने इस्लामिक 'आक्रमण', इस्लाम में धर्मांतरण, साम्यवाद और संविधान
के अनुच्छेद 370 आदि मसलों के खिलाफ जमकर बोला। आरएसएस का यह कदम
राजनीतिक ग्रुपों की उस कवायद का हिस्सा है, जिसमें वे इस दलित नेता की
अपने हिसाब से व्याख्या कर देते हैं। हालांकि, आंबेडकरवादी और सामाजिक
कार्यकर्ता का कहना है कि इस के जरिये संघ का इरादा दलितों को अपनी तरह
आकर्षित करना है। आंबेडकर को अपने हिसाब से सही ठहराने की यह संघ की
पहली कोशिश नहीं है। बेशक यह सबसे आक्रामक कोशिशों में से एक है। अब तक संघ
की पत्रिकाओं में इस तरह का बड़ा अंक कभी देखने को नहीं मिला था। इससे
पहले ये पत्रिकाएं कभी-कभी स्पेशल अंक निकालती थीं, जो संघ के संस्थापक के
बी हेडगेवार और रामजन्म भूमि विवाद तक सिमटी रहती थीं। हाल में नागपुर
में हुई बैठक में संघ ने 'एक कुआं, एक मंदिर, एक श्मशान' की नीति को
दोहराते हुए आंबेडकर को लोगों को एकजुट करने वाले शख्स के तौर पर पेश करने
का फैसला किया था। संघ की पत्रिकाओं में संघ से जुड़े दलित नेताओं और यहां
तक कि संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल के भी लेख हैं। इन लेखों में
कहा गया है कि आंबेडकर राष्ट्रवादी थे और उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था
कि वह देश को सबसे पहले ध्यान में रखें। संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी
जोशी 14 अप्रैल को इन अंकों का लोकार्पण करेंगे। इन अंकों में
पाकिस्तान पर आंबेडकर की राय मुख्य बिंदु है। ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल
केतकर ने कहा, 'उनका मानना था कि इस्लाम में भाईचारे की बात सिर्फ
मुसलमानों को एकजुट करने तक सीमित है। वह राजनीतिक इस्लाम के आक्रामणकारी
रवैये के जबर्दस्त आलोचक थे। जब पाकिस्तान और हैदराबाद जैसे कुछ प्रांत
पिछड़ी जाति के हिंदुओं का धर्मांतरण करवा रहे थे, तो आंबेडकर ने इसके
खिलाफ चेतावनी थी और कहा कि अगर ये फिर से हिंदू बनते हैं, तो इनका स्वागत
किया जाएगा। इस तरह से उन्होंने भी घर वापसी का समर्थन किया था।' इस अंक
में लिखे गए लेखों में कहा गया है कि आंबेडकर के बौद्ध धर्म अपनाने की
मुख्य वजह विदेशी आक्रमणों के दौरान हिंदू समाज में सामाजिक सुधार में आया
ठहराव था।
(IMNB)