लखनऊ - आपसी फूट के चलते निर्रथक रहा पत्रकारों का आंदोलन
लखनऊ। कल शाम दैनिक भास्कर के छायाकार आशुतोष त्रिपाठी पर चिनहट थानेदार धीरेन्द्र यादव द्वारा किये गए हमले और उसके बाद एसपी ट्रांस गोमती दिनेश यादव द्वारा कार्यवाही का झूठा आशवासन दिए जाने से नाराज़ पत्रकारों ने मुख्यमंत्री आवास के पास धरना दे कर अपना रोष प्रकट किया। इस प्रकरण में AIRA के प्रदेश अध्यक्ष चाँद फरीदी और वरिष्ठ पत्रकार तारिक आज़मी ने AIRA की ओर से सहभागिता की। पर आपसी फूट के चलते आंदोलन की धार कुंद होती दिखी।
इस प्रदर्शन ने कई लोगों की कलई भी खोल दी। पहला इस प्रकरण में वहां आये वरिष्ठ पत्रकार श्री हेमंत तिवारी ने कालिदास मार्ग पर एसओ के खिलाफ सख्त कार्यवाही कराने का आशवासन दिलाया और प्रदर्शन ख़त्म करा दिया लेकिन कार्यवाही के नाम पर एसओ चिनहट को मात्र 2 दिन के लिए हटाने की बात पर वरिष्ठजनों ने सहमति दे दी। मज़ाक का आलम ये की एसओ महोदय बाकायदा न सिर्फ अपना सीयूजी नंबर इस्तेमाल कर रहे हैं बल्कि थाने में रहते हुए सारे अन्य काम भी कर रहे हैं। मौक़े पर मौजूद पत्रकारों का कहना है कि अगर तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार हस्तेक्षप न करते तो एसओ के ऊपर बड़ी कार्यवाही हो सकती थी लेकिन वरिष्ठजनों ने मध्यस्ता के बहाने पत्रकारों की जगह पुलिस व प्रशासन की मदद की और पत्रकारों का अन्दोलन फीका किया।
वहीं दूसरी कलाई खुली AIRA के कुछ पदाधिकारियों की। जिस समय यह प्रकरण चल रहा था उस समय AIRA के प्रदेश के दो पदाधिकारी प्रदर्शन स्थल से चंद कदम की दूरी पर ही मौजूद थे मगर प्रदर्शन में शामिल नहीं हुये। यहां ये
प्रश्न उठाना स्वाभाविक है की क्या उच्चपद पर बैठे ये सज्जन पत्रकारों को इंसाफ केवल सोशल मीडिया पर ही दिलवाने का काम कर सकते हैं। सड़क पर उतारना क्या उनकी शान के खिलाफ था। अथवा उनको अपने शहर के पत्रकारों पर हुआ वह ज़ुल्म नहीं दिखा जो वो मौके पर नहीं आये।अगर नहीं पता था तो उनको अपने पत्रकार होने पर आत्म मंथन की ज़रूरत है। जिस प्रदेश के उच्च पदस्थ पदाधिकारी को अपने शहर का हाल नहीं पता वो प्रदेश क्या ख़ाक संभालेगा। इस घटना से आहत होकर आइरा के राष्ट्रीय प्रवक्ता वरिष्ठ पत्रकार तारिक़ आज़मी ने पद से त्यागपत्र दे दिया है। अब देखना ये है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी इस पर क्या फैसला लेती है।
(विज्ञप्ति)