गुजरात पुलिस ने रोकी 'फर्जी आतंकवादी' की किताब
अहमदाबाद 17 अप्रैल 2015. मुफ्ती अब्दुल कय्याम लोगों को अपनी कहानी नहीं सुना सकेंगे। वह साल 2002 में अक्षरधाम मंदिर पर हुए हमले में आरोपी थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बेगुनाह बताया था। अब्दुल ने जेल में बिताए गए उन दिनों के बारे में एक किताब लिखी है।
जेल में ये दिन उन्होंने बिना किसी कसूर के काटे थे। अब वह उन 11 सालों की कहानी लोगों के साथ बांटना चाहते हैं लेकिन पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया है। अब्दुल अपनी किताब गुरुवार को अहमदाबाद के एक सेमिनार में रिलीज करने वाले थे। लेकिन, फिलहाल उनकी इस योजना पर पुलिस ने पानी फेर दिया है।
पुलिस ने अब्दुल और सेमिनार के आयोजकों से कहा है कि न तो यह किताब रिलीज होनी चाहिए और न ही अक्षरधाम अटैक के बारे में प्रत्यक्ष रूप से कोई बात होनी चाहिए। ऑफिशल्स ने कहा कि कानून और व्यवस्था में कोई खलल पैदा न हो, इसलिए अब्दुल की बुक रिलीज पर रोक लगा दी गई है। अब्दुल की किताब का नाम 'ग्यारह साल सलाखों के पीछे' है। किताब में विस्तार से बताया गया है कि कैसे बिना किसी सबूत के अब्दुल पर आतंकवादी होने का ठप्पा लगा दिया गया। किताब में एक सेक्शन में यह भी बताया गया है कि कैसे ऑफिसरों और गुजरात पुलिस ने गलत तरीके से इस केस को हैंडल किया।
अब्दुल जब सेमिनार में बोल रहे थे तो उनके संबोधन में दर्द की झलक साफ देखी जा सकती थी। उन्होंने कहा, 'हम सिर्फ इस्लाम के बारे में ही नहीं, बल्कि धर्म और मानवता के बारे में भी बात करते हैं। हम चाहते हैं कि हर किसी के जीने का अधिकार सुरक्षित किया जाए ताकि सब शांति में जी सके।' पुलिस के निर्देशों के मुताबिक, सेमिनार में अक्षरधाम अटैक के बारे में प्रत्यक्ष तौर पर कोई बात नहीं की गई। हालांकि, कुछ वक्ताओं ने मानवाधिकारों की बात जरूर की, खास तौर पर आतंक-निरोधी मामलों में।
जमाएत-उलेमा-हिंद के लीगल सेल के प्रमुख मौलाना गुलजार आजमी ने कहा,'अगर आतंकवादियों को फांसी दी जाती है तो हमें इससे कोई समस्या नहीं है। हमें दुख तब होता है जब बेगुनाह लोगों को गलत तरीके से आंतकी मामलों में फंसाया जाता है।' सेमिनार के आयोजक अब इस किताब को गुजरात के बाहर रिलीज करने की तैयारी में हैं। पुलिस ने इस मामले में कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया है।
अब्दुल की उम्र 40 साल है और वह एक मदरसे में पढ़ाते हैं उन्हें साल 2003 में अरेस्ट किया गया था। पुलिस ने उन पर आतंकियों को चिट्ठी लिखने का आरोप लगाया था। गुजरात की एक कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी लेकिन मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था।
(IMNB)