महाराष्ट्र सरकार अब मदरसों को नहीं मानेगी स्कूल
मुंबई 02 जुलाई 2015. महाराष्ट्र में चल रहे मदरसों को अब स्कूल नहीं माना जाएगा। राज्य सरकार ने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि मदरसों में पढ़ने वालों को गैर-स्कूली माना जाए। 2013 के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में 1889 मदरसों में 1.48 लाख स्टूडेंट पढ़ रहे थे।
महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री दिलीप कांबले ने इस बारे में कहा, 'मेरा विभाग चाहता है कि ऐसे बच्चे (मदरसों में पढ़ने वाले) औपचारिक शिक्षा ग्रहण करें। उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा से जुड़ना चाहिए।'
महाराष्ट्र सरकार का स्कूली शिक्षा विभाग 4 जुलाई से ऐसे बच्चों की पहचान करने में जुटेगा, जो स्कूल में नहीं पढ़ते ताकि उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ा जा सके। अब इस अभियान के तहत मदरसे में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं को भी गैर-स्कूली बच्चों के रूप में पहचाना जाएगा।
केरल के करीब 828 मदरसों को पिछले साल से केंद्र सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है। बुधवार को केरल विधानसभा में राज्य की मदरसा शिक्षा पर पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में राज्य के शिक्षा मंत्री पी के अब्दू रब्ब ने बताया कि इन संस्थानों ने वर्ष 2014-2015 के लिए धनराशि के आवंटन के लिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को आवेदन भेजे, लेकिन इस बारे में कोई सूचना नहीं मिली। शिक्षा मंत्री ने बताया कि मानकों पर खरा उतरने की स्थिति में केरल के मदरसों को भी केंद्र राशि जारी करे, इसके लिए पर्याप्त कदम उठाये जा रहे है। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि महानियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (कैग) ने यह पाया है कि केरल के मदरसे नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। नियमों के मुताबिक मदरसे में क्लास फुल टाइम होनी चाहिए, लेकिन केरल में ये पार्ट टाइम चलती हैं। कैग ने 2012 की अपनी रिपोर्ट में जन शिक्षण निदेशालय को मदरसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराने की योजना के तहत कोझिकोड, तिरुवनंतपुरम, कोट्टायम और पल्लकड में पार्ट टाइम शिक्षकों को फुल टाइम शिक्षकों के समान वेतन देने के लिए एक करोड़ 54 लाख की राशि खर्च करने पर फटकार लगाई थी।
(IMNB)