रायपुर - गढ्ढा मंत्री के आत्ममुग्ध बेसुरे अलाप, राजधानी की मरियल सड़कें कर रहीं विलाप
रायपुर/छत्तीसगढ़ 25 जुलाई 2015(जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कदम रखते ही आपका स्वागत यहाँ की सड़कों के गढ्ढे करते हैं। राजधानी में चारों ओर की सड़कें गढ्ढामय है। केन्द्रीय भाजपा सरकार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिटीजल इंडिया योजना की छत्तीसगढ़ प्रदेश की भाजपा सरकार, पीडब्ल्यूडी मंत्री व अधिकारियों ने ऐसी की तैसी करके रख दी है। छत्तीसगढ़ राज्य में भ्रष्टाचार ने ऐसा विकास किया है कि कैग, एसोचैम व सीबीआई जैसे संगठनों के दिमाग की चूलें हिल गई हैं। इतने उत्कृष्ट और उच्च स्तरीय घोटाले किए गए हैं कि आयकर और एसीबी वालों के भी मगज खिसक जाते हैं। इसीलिये हम पीडब्ल्यूडी मंत्री को गढ्ढा मंत्री के खिताबसे नवाज़ते हैं
ताज़ातरीन मामला राजधानी की सभी सड़कों का है जो राज्य सरकार के तहत मानी गई है। आइए एक नज़र डालते हैं छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बिछे सड़कों के जाल पर, नेशनल हाईवे को छोड़कर। रायपुर का केंद्र बिंदु नगर घड़ी चौक से चारों दिशाओं में सड़कें निकली हैं। एक सड़क स्टेशन की ओर, दूसरी सड़क तेलीबांधा चौक की ओर, तीसरी सड़क टाटीबंध चौक की ओर तथा चौथी सड़क कालीबाड़ी चौक की ओर, हालांकि जिन मुख्य स्थानों का नाम लिखा गया है उसके और नगर घड़ी चौक के मध्य कई प्रमुख बाजार व मोहल्ले आदि पड़ते हैं। चूंकि राजधानी रायपुर में नगर निगम के अन्तर्गत 70 वार्ड निर्धारित किए गए हैं और विधानसभा क्षेत्र चार निर्धारित किए गए हैं क्रमश: रायपुर पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। जितनी तेज़ी से छत्तीसगढ़ और राजधानी रायपुर में विकास दिखाई दिया उसका सबने लोहा माना। जब राजधानी रायपुर में सड़कों की व्यवस्था को वास्तविकता से परखा गया तो सारी सच्चाई सामने आती है। राजधानी जितनी जल्दी विकसित हुआ उतनी जल्दी किसी राजधानी ने विकास नहीं किया था मगर इस तेज़ विकास के साथ ही साथ एक और चीज़ का तेज़ी से विकास होता जा रहा था और वह था भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार रूपी दीमक ने प्रदेश के अधिकांश शासकीय विभागों को पूरी तरह खोखला कर दिया है विभाग के अधिकारियों समेत कर्मचारियों में भी इसका अधिक असर पड़ा और वे भी इस महामारी के हिस्सेदार बनते चले गए, राज्य व राष्ट्रीय राजनीति में भी भ्रष्टाचारी दीमक पूरी तरह लग चुका है।
तेज़ विकास क्रम में तेज़ी से फैलता गया भ्रष्टाचार
इसका प्रमाण भी हरेक शासकीय विभागों में दिखाई देता है। इन्हीं विभागों में से ही एक विभाग है लोक निर्माण विभाग मगर इस विभाग में अब लोक निर्माण के बजाए शासकीय मंत्री, संत्री, अधिकारी, कर्मचारी और ठेकेदार सिर्फ अपना अपना निर्माण करने में जुट गए जिससे कि इन सभी भ्रष्टाचारियों का जबरदस्त विकास हुआ है। लोक निर्माण विभाग का पैसा किसी और के निर्माण में खर्च करने के बाद सभी मिलजुलकर लीपापोती करते हैं और अपने भ्रष्टाचार को दबाने या छुपाने का प्रयास करते हैं। लोक निर्माण विभाग के द्वारा ही राजधानी के अंदर सड़कों का निर्माण किया जाता है। सड़कों का निर्माण तो अवश्य हुआ वो भी बाकायदा टेंडर प्रक्रिया के द्वारा। मगर यहीं से शुरू होता है भ्रष्टाचार का खेल। टेंडर प्रक्रिया से ही हेराफेर प्रारंभ कर दी जाती है, इसमें मुख्य व लोक निर्माण अभियंताओं की मिलीभगत से ही मनचाहे ठेकेदार को टेंडर दिया जाता है और इन अभियंताओं पर मंत्री व सचिव वगैरह का हाथ होता है। इतने अधिक भ्रष्टाचार के बाद ठेकेदार सड़कें काम चलाऊ वाली ही बना पाता है क्योंकि टेंडर प्रक्रिया पूर्ण होने से पहले ही ठेकेदार को मंत्री व उच्च अधिकारियों और अभियंताओं की जेबें गर्म करनी पड़ती है इसलिए ठेकेदार भी अपना मुनाफा निकालने के बाद जो भी थोड़ी बहुत राशि बचती है उसी से सड़क का निर्माण करवा देता है। बची खुची राशि से सड़कों का निर्माण होगा तो वह सड़कें कैसी होंगी? कितनी गुणवत्ता का ध्यान रखा जा सकेगा? यानी कि 70 फीसदी तक लूट खसोट करने के बाद सड़कों का निर्माण किया जाता है। यही हाल राजधानी में है क्योंकि चारों ओर की सड़कें गढ्ढामय है, बीच बीच में किसी बड़े राजनेता के आने के समय सड़कों पर डामर का लेप लीपपोत कर चकाचक कर देते हैं। जोकि बमुश्किल 15 से 20 दिनों बाद ही ऊखड़ जाता है और राजधानी फिर से गढ्ढे में हो जाती है। उच्च अधिकारियों के पास शिकायतें की जाती है, मंत्री तक को सूचना दी जाती है अखबारों के माध्यम से मगर मंत्री के पास इन भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करने के लिए समय नहीं होता है और छोटे अखबारों में छपी खबरों पर कार्रवाई करने में सबसे अधिक समय लेते हैं, हाँ नामी व बड़े अखबारों के समाचारों को अधिक महत्व देते हैं और उन्हीं बैनरों से ही हल्का फुल्का घबराते हैं। छोटे अखबारों में जब तक कोई एक के बाद एक करके लगातार 6 या 8 संस्करण नहीं लिखता है तब तक इन्हें समझ ही नहीं आता है और तब कहीं जाकर कार्यवाही करने का आदेश देते हैं।
हाल फिलहाल सड़कों पर फिर से डामर का लेप लीपा जा रहा है जबकि जिन सड़कों पर डामर की लीपापोती की जा रही है वह सड़क बने हुए मात्र 7 माह ही बीते हैं। मतलब सड़कें इतनी मजबूत थी कि 7 महीने में दम निकल गया और टेंडर प्रक्रिया के दौरान फार्मों में उस सड़क के नवनिर्माण के बाद 5 या 6 साल की मियाद दर्ज की गई है और 6 महीने में सड़कें पहले से भी बदतर हालत में पहुंच गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि संभवतः टेंडर अच्छी खासी सड़कों को मरियल और बदतर बनाने का जारी किया गया था इसलिए ठेकेदार ने 5 या 6 माह में ही सड़कों का कचूमर निकाल दिया या पोस्टमार्टम कर दिया और जो सड़कें थोड़ी बहुत चलने फिरने लायक थी उस सड़क के नवनिर्माण के बाद अब तो चलने फिरने के लायक भी नहीं बची। ऊपर से अधिकारियों और कर्मचारियों ने तो विभाग की और ऐसी की तैसी कर के रख दी है। लोक निर्माण विभाग है या "लूट निर्माण से, विभाग" है। सरकार और मंत्री इतने ही उत्कृष्ट कार्यो से ही छत्तीसगढ़ और राजधानी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बातें करते हैं। या तो मज़ाक की इंतेहा है या पूरे क्षेत्रवासियों को अहमक और नामाकूल समझ लिया है। राज्य सरकार इतनी अधिक शर्मिंदगी उठा रहा है भ्रष्टाचार के नाम से मगर फिर भी मजाल है कि इन से क्रियाकलापों में कुछ सुधार आ जाए। पीडब्ल्यूडी ने राजधानी की सड़कों पर होने वाले खर्च को चार गुना अधिक कर दिया है मगर सड़कों की स्थिति जो 1950 में थी उससे भी बदहाल और बदतर स्थिति 2015 में है। कई सौ करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी राजधानी रायपुर की सड़कों की बदहाली और मरियल हालत ने भ्रष्टाचार के इतने अधिक प्रमाण दे दिए हैं मगर विभाग के मंत्री को इनमें भ्रष्टाचार नहीं दिखाई देता है और राज्य सरकार राजधानी की कायापलट के दावे करती है।
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