देश की सड़कें सबसे अधिक जानलेवा साबित, सड़क दुर्घटनाओं से 1 घंटे में होती हैं 16 मौतें
रायपुर/छत्तीसगढ़ 27 जुलाई 2015(जावेद अख्तर). इक्कीसवीं सदी में तीव्र गति से बढ़ते भारत की विकास गति ने छोटे छोटे ग्रामीण क्षेत्रों को भी मेन रोड व फोरलेन-सिक्सलेन हाइवे से जोड़ दिया है जो कि निश्चित रूप से उन्नत और प्रगतिशील भारत का अहसास कराता है। आधुनिक युग में भारतवासियों की जीवनशैली में भी तीव्रता देखी जा सकती है। इस आधुनिक युग की नई नई तकनीक ने लोगों के विचारों की गति को भी तेज़ कर दिया है। साथ ही सड़कों पर होने वाले हादसों में भी जबरदस्त तेजी आयी है।
इस भागमभाग और तेज़ी से विकसित होते भारत में नये युग के नौजवानों को सबसे अधिक प्रभावित तेज़ रफ्तार व नई तकनीकों से लैस वाहनों ने किया है, नवयुवा वर्ग इन तेज़ रफ्तार मोटरसाइकिलों व कारों का दीवाना हो गया है, जिसकी झलक हरेक शहरों व कस्बों व गांवों तक में दिखाई देती है। मगर इस तेज़ रफ्तार भागती गाड़ियों के पीछे एक बड़ा ही दुखद व काला सच छिपा है जोकि यकीनन हरेक व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर देगा व अंतरात्मा को झकझोर कर रख देगा। अधिक रफ्तार से भागती गाड़ियों की वजह से हाइवे व मेन सड़कों पर होने वाले हादसों में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं पर "नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो" द्वारा एक रिपोर्ट जारी हुई, जिसे देखने के बाद समझ आता है कि इन चौड़ी सड़कों पर तेज रफ्तार वाहनों की वजह से भयावह स्थिति बन चुकी है और अधिक बड़ी, चौड़ी व लम्बी सड़कों पर मरने वालों की संख्या भी काफी अधिक बढ़ गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रत्येक 1 घंटे में लगभग 16 लोग सड़क हादसों में अपनी जान गवां देते हैं। हैरान करने वाला यह आंकड़ा है 2014-15 का। इस वर्ष सड़क हादसों में "1 लाख 41 हजार" से भी अधिक लोगों की मौत हुई, जो वर्ष 2013-14 के मुकाबले 3.56 फीसदी ज्यादा थी। सड़क हादसों में कुचले गए और घायल हुए लोगों की संख्या भी 2014 में सबसे अधिक रही। सबसे अफसोसजनक ये है कि इन तमाम हादसों में मरने वाले अधिकांश नवयुवा रहे जिनकी आयु 14 वर्ष से 28 वर्ष के बीच रही। महानगरों में स्थिति सबसे अधिक खतरनाक है क्योंकि महानगरों में मरने वालों में से 50 फीसदी की उम्र 13 वर्ष से 22 वर्ष के बीच थी, जो कि अधिक तेज गति व नियंत्रण न कर पाने की वजह से हादसे का शिकार हुए।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी सड़क पर होने वाले हादसों में 19 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। रायपुर में भी अधिकांश हादसों की वजह अधिक तेज़ गति और दो सवारी से अधिक सवार होने से व नियंत्रण नहीं रख पाने से हुए। इनमें सबसे अधिक मरने वालों की आयु 15 वर्ष से 30 वर्ष के बीच है। रायपुर में लगभग 32 फीसदी हादसों की वजह विपरीत दिशा में या रांग साइट में चलने की वजह से हुई है। 19 फीसदी दुर्घटना तेज गति व अनियंत्रित आटो की वजह से हुए हैं। वहीं 17 फीसदी हादसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण हुए। जबकि 11 फीसदी हादसे वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का उपयोग करने के कारण हुए, तो 9 फीसदी हादसे होने का मुख्य कारण तय सवारी से अधिक सवार बैठने से। 7 फीसदी हादसे तेज़ गति से वाहन चलाने के कारण हुए और 5 फीसदी हादसे बिना हाथ या इंडिगेटर दिए एकाएक वाहन मोड़ देने की वजह से हुए। देखा जाए तो रायपुर में हादसों का बड़ा कारण विपरीत दिशा में वाहन चलाने का है जिसने ट्रैफिक व्यवस्था की हालत बिगाड़ कर रख दी है, और ट्रैफिक पुलिस विपरीत दिशा में गाड़ी चलाने वालों पर काबू पाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। पिछले वर्ष विपरीत दिशा में वाहन चलाने के कारण 27 फीसदी दुर्घटनाएं हुई थी यानि कि इस वर्ष 5 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है जोकि राजधानी की ट्रैफिक पुलिस और व्यवस्था की असलियत बयां कर रही है। आटो से होने वाली दुर्घटनाओं में इस वर्ष काफी कमी आई है क्योंकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 23 फीसदी थी। शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण हादसे पिछले वर्ष 16 फीसदी थे यानि कि 1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने के कारण हुए हादसे समान ही है क्योंकि पिछले वर्ष भी यह आंकड़ा 11 फीसदी था। कम उम्र के स्कूली बच्चों के मामले को देखें तो पिछले वर्ष मरने वाले का आंकड़ा 9 फीसदी था तथा इस वर्ष यह आंकड़ा घटकर 7 फीसदी हो गया है। वाहन चालकों की मौत का सबसे बड़ा व प्रमुख कारण रायपुर की गढ्ढामय व उखड़ी हुई गिट्टियां हैं। रायपुर के प्रमुख क्षेत्रों में पीडब्ल्यूडी व नगर निगम द्वारा बनाई सड़कों के कारण सबसे अधिक लोगों की मौत हुई है क्योंकि तकरीबन 46 फीसदी मौत सड़कों पर बने गढ्ढे व उखड़ी हुई गिट्टियां, राख व डामर के चलते हुई है। अगर ट्रैफिक व्यवस्था सही भी हो जाए तब भी प्रत्येक वर्ष लगभग 300 लोगों की मौत पीडब्ल्यूडी की सड़कों की वजह से होनी तय है। यह आंकड़ा क्रमशः 4.5 लाख और 4.8 लाख था। हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकडों के मुताबिक, स्पीडिंग और खतरनाक ड्राइविंग जानलेवा सड़क हादसों की सबसे बड़ी वजह रही। सड़क हादसों में मरने वालों लोगों की कुल संख्या के आधे लोग दोपहिया वाहन और ट्रक से जुड़ी दुर्घटनाओं में मरे। जबकि दुर्घटना में तेरह हजार सात सौ सत्तासी (13,787) टूव्हीलर ड्राइवर की मौत हुई और इन्हीं दुर्घटनाओं में अन्य संबंधित तेइस हजार पांच सौ उन्तिस (23,529) यात्रियों की मौत हुई। साथ ही एक लाख चालीस हजार (1.4 लाख) लोग इन हादसों में घायल हुए।
अधिक हादसों वाले राज्य
सड़क हादसों में मरने वाले लोगों की संख्या के लिहाज से सबसे ज्यादा घातक साबित हुए राज्य हैं -उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़।
उत्तर प्रदेश में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या सोलह हजार दो सौ चौरासी (16,284) और तमिलनाडु में यह आंकड़ा पन्द्रह हजार (15,000) रहा। देश के महानगरों की बात करें तो दिल्ली में सबसे ज्यादा दो हजार एक सौ निन्यानवे (2,199) मौतें हुई, वहीं चेन्नई में यह आंकड़ा एक हजार छियालीस (1,046) रहा। भोपाल, जयपुर और इस सूची में क्रमशः तीसरे, और चौथे क्रम पर रहे। भोपाल में सड़क हादसों में एक हजार पन्द्रह (1,015) लोगों की मौत हुई, जयपुर में आठ सौ चौव्वालीस (844) लोगों की मौत हुई। आंठवें क्रम पर रायपुर में छः सौ तेरह (613) लोगों की मौत हुई। इन आंकड़ों को देखकर माँ बाप को यह अवश्य समझ आएगा कि कम उम्र के बच्चों को वाहन न चलाने दें और इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि दोपहिया वाहन से जब भी निकले हेलमेट पहन कर ही निकले, क्योंकि राज्य व राजधानी रायपुर में दुर्घटना के दौरान सिर पर लगी चोट के कारण 63 फीसदी लोगों की मौत हुई है। जबकि हेलमेट पहनने से इतने फीसदी लोग मौत से बच सकते थे यानि कि हेलमेट एक जीवनदान भी है बस अगर जरूरत है तो उसकी उपयोगिता समझने की। हेलमेट बोझ नहीं है बल्कि सिर का सुरक्षा कवच है।