19,000 करोड़ रुपये कहां खर्च किए ? दिल्ली सरकार को पता नहीं - CAG
नई दिल्ली 01 जुलाई 2015. दिल्ली सरकार के पास यह दिखलाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि अनुदान में मिले 6,000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल नियत उद्देश्यों के लिए किया गया या नहीं। गौर करने लायक बात यह भी है कि दिल्ली सरकार को ये ग्रैंट्स मिले 10 साल से भी ज्यादा समय हो चुका है।
31 मार्च, 2014 को खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए CAG ने दिल्ली सरकार के बही-खातों पर जो रिपोर्ट दी है, उसमें ऐसी ही कई चौंका देने वाली चीजों का जिक्र है।
रिपोर्ट में कहां गया है कि मार्च, 2013 तक दिल्ली सरकार को 5,235 ग्रैंट्स मिले जिनकी वैल्यू 26,434 करोड़ रुपये के बराबर थी।
इनमें से 19,064 करोड़ रुपये के 4,784 ग्रैंट्स के लिए या पूरी रकम के तीन चौथाई के बराबर राशि के लिए 'उपयोगिता प्रमाणपत्र' पिछले साल मार्च तक बकाया थे। इन अनुदानों में से तकरीबन आधे 2,267 के लिए 'उपयोगिता प्रमाणपत्र' पिछले 10 सालों से भी ज्यादा समय से बकाया है। यह रकम 5,651.17 करोड़ रुपये बनती है।
सरकारी नियमों के मुताबिक जहां कहीं भी कोई ग्रैंट दिया जाता है, वह रकम जारी करने वाले विभाग को अनुदान लेने वाली एजेंसी से इसका 'उपयोगिता प्रमाणपत्र' लेना होता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पैसे का इस्तेमाल नियत उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है नहीं।
इतना हीं नहीं, अगर ग्रैंट के साथ कोई शर्त जुड़ी हो तो इसकी तामील भी सुनिश्चित करानी होती है। बिना 'उपयोगिता प्रमाणपत्र' के सरकार के पास कोई सबूत नहीं होता है कि उसका पैसा नियत उद्देश्यों के लिए ही खर्च किया गया या नहीं।
CAG की रिपोर्ट के अनुसार सबसे बड़ा डिफॉल्टर शहरी विकास विभाग है जिसके पास 17,415.91 करोड़ रुपये या कुल रकम के 91.4 फीसदी के इस्तेमाल का कोई हिसाब नहीं है। दिल्ली विद्युत बोर्ड भी डिफॉल्टरों की लिस्ट में शामिल है। DDA का लैंड और बिल्डिंग डिपार्टमेंट भी 'उपयोगिता प्रमाणपत्र' नहीं दिखला सका।
(IMNB)