सस्ते में खरीदी जमीन महंगे में बेच कर, छत्तीसगढ़ की सरकार बन गई बिल्डर
छत्तीसगढ़ 8 अगस्त 2015 (जावेद अख्तर). राजधानी रायपुर में कमल विहार योजना के तहत हो रहे नवनिर्माण की जमीनों को राज्य सरकार ने 90 रुपए में खरीदा था मगर अब उसी जमीन का दाम 1600 से 3500 तक कर दिया गया है। देखा जाए तो ऐसी प्रक्रिया प्राइवेट बिल्डर्स ही करते हैं कि पहले जमीन को सस्ते दामों में खरीदा और साल दो साल धैर्य रखने के बाद मन मुताबिक दाम बढ़ा चढ़ा कर बेच दिया। मगर राज्य में तो उल्टी गंगा बह रही है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां बिल्डर्स के व्यवसाय की स्थिति कमजोर कर दी गई और उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों को राज्य सरकार कराने लगी, इसका एक स्पष्ट प्रमाण कमल विहार प्रोजेक्ट है। कमल विहार योजना के चलते राजधानी रायपुर के अधिकांश बिल्डर्स की स्थिति बिगड़ गई है। कमल विहार ने बिल्डर्स के व्यवसाय को सबसे अधिक प्रभावित किया जिससे कि बिल्डर्स की हालत पतली कर दी है। राजधानी के बिल्डर्स को इस बात का मलाल भी है कि सरकार ने कमल विहार योजना लाकर बिल्डरों के व्यवसाय को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया है, वर्तमान स्थिति में अधिकांश बिल्डर्स ने अपने प्रोजेक्ट्स के निर्माण को धीमा कर दिया है क्योंकि राजधानी व आसपास क्षेत्रों के लोगों को कमल विहार में स्थान लेने की अधिक लालसा पैदा हो गई है जिसके चलते अब अधिकांश लोगों ने मकान, फ्लैट्स और जमीन में पैसा लगाना एकदम बंद कर दिया है। बिल्डर्स इस बात से और भी अधिक नाराज़ हैं क्योंकि राज्य सरकार ने पहले कमल विहार योजना को शुरू किया और फिर नई राजधानी के प्रोजेक्ट को शुरू कर दिया और प्रोजेक्ट्स के पहले इन दोनों स्थानों पर जमीनी क्रय विक्रय को बंद कर दिया और रजिस्ट्री कराने को अमान्य घोषित कर दिया। इससे न चाहते हुए भी कुछ किसानों व अन्य भू स्वामियों को मजबूरन अपनी भूमि, राज्य सरकार को देनी पड़ी। बिल्डर्स इन दोनों ही स्थानों पर कुछ नहीं कर सके।
घरों के खरीददारों ने इसीलिए मकान व फ्लैट्स लेना बहुत ही कम कर दिया है क्योंकि हर कोई नई राजधानी में रहने का ख्वाब देख रहा है बाकी के लोग कमल विहार में रहने का सपना संजोए हुए हैं। जिसका भरपूर लाभ लेने के मकसद से ही राज्य सरकार ने रजिस्ट्री को अमान्य करार दे दिया और जमीनों की खरीद फरोख्त पर भी बैन लगा दिया। बिल्डर्स का कहना है कि राज्य सरकार ने राजनीति छोड़ कर जमीन व मकान बेचने की तैयारी कर ली है, संभवतः सरकार सब कुछ स्वंय कमाना चाहती है भले चाहे कितने ही बिल्डर्स कंगाल हो जाए। राज्य सरकार की नीतियां तो बिल्डर्स को चौपट करने की और खुद को बिल्डर्स बनाने व अधिक मुनाफा कमाने की दिखाई देती जान पड़ रही है। राज्य सरकार के ऐसे कृत्य से समझा जा सकता है कि आगे राज्य सरकार, सरकार चलाने की बजाए व्यवसाय करने में अधिक रुचि दिखाई देती जान पड़ती है
कमल विहार राज्य की भाजपा सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट भी कहा जा सकता है। रायपुर विकास प्राधिकरण के तहत, 1600 एकड़ में विकसित हो रही कमल विहार योजना में 1,085 करोड़ रुपये की लागत से बसाया जाना है। योजना के अंतर्गत 15 सेक्टरों में विभाजित करके निर्माण किया जा रहा है। योजना के स्तर पर 75 से 24 मीटर चौड़ी सड़कें और सेक्टर स्तर पर 18 से 7.5 मीटर चौड़ी सड़कें बनाई जानी है। इसमें मनोरंजन के लिए 235 एकड़ क्षेत्र में सुविधाएं पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) माडल पर विकसित किया जाना प्रस्तावित है। योजना में हरियाली के लिए लगभग 28.23 प्रतिशत क्षेत्र सुरक्षित रखना होगा। विभिन्न सेक्टरों में खेलकूद के लिए 95.15 एकड़ क्षेत्र रखना होगा। इसी में केन्द्रीय व्यावसायिक परिसर (सेन्ट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक - CBD) के विकास हेतु 19.81 एकड़ क्षेत्र और रिंग रोड के किनारे सर्विस रोड पर व्यावसायिक गतिविधियों के लिए 4.95 एकड़ क्षेत्र का प्रावधान किया गया है। सेक्टर स्तर पर विभिन्न हिस्सों में दैनिक आवश्यकताओं के लिए व्यावसायिक परिसर के निर्माण हेतु 14.40 एकड़ क्षेत्र में भूखंडों का विकास करना होगा।
इस विषय में सरकार के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाने वाले रोहित शुक्ला का कहना है कि आरडीए की समिति ने सरकारी संस्था होने के बावजूद एक प्राइवेट बिल्डर की तरह काम किया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि लोगों से अलग-अलग लोकेशन की जमीन भी 90 रुपए प्रति वर्गफुट पर खरीदी गई। अब इसे विकसित कर आरडीए दो-चार गुना नहीं, बल्कि 15-16 गुना ज्यादा में बेच रहा है। हैरानी की बात यह है कि सभी लोकेशन को एक मानकर जमीन खरीदी गई, लेकिन इसे बेचने के लिए खुद आरडीए ने अलग-अलग लोकेशन की कीमत तय की है। प्लॉट 1400 रुपए वर्गफुट से शुरू होकर 3500 रुपए वर्गफुट तक बेचे जा रहे हैं।
इस विषय में सरकार के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाने वाले रोहित शुक्ला का कहना है कि आरडीए की समिति ने सरकारी संस्था होने के बावजूद एक प्राइवेट बिल्डर की तरह काम किया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि लोगों से अलग-अलग लोकेशन की जमीन भी 90 रुपए प्रति वर्गफुट पर खरीदी गई। अब इसे विकसित कर आरडीए दो-चार गुना नहीं, बल्कि 15-16 गुना ज्यादा में बेच रहा है। हैरानी की बात यह है कि सभी लोकेशन को एक मानकर जमीन खरीदी गई, लेकिन इसे बेचने के लिए खुद आरडीए ने अलग-अलग लोकेशन की कीमत तय की है। प्लॉट 1400 रुपए वर्गफुट से शुरू होकर 3500 रुपए वर्गफुट तक बेचे जा रहे हैं।
* इस संबंध में कानूनी सलाह के बाद ही फैसला होगा, क्योंकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति की है, जिस पर बैठक आयोजित कर फैसला लिया जाएगा। इसी तरह अन्य जितने भी बिंदुओं पर कोर्ट ने आपत्ति जताई है, उस पर भी मंथन होगा। :- संजय श्रीवास्तव, अध्यक्ष -आरडीए
* आरडीए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उसका सम्मान किया जाता है। अब योजना को किस तरीके से संचालित करना है, इस बारे में वकीलों की सलाह के बाद फैसला लिया जाएगा। इस संबंध में सभी अधिकारी और मंत्रियों से चर्चा की जा रही है। :- एसएस बजाज, संचालक - टाउन एंड कंट्री प्लानिंग