रायपुर - इलाके की शान, डूण्डा शराब की दुकान
रायपुर 7 अगस्त 2015 (जावेद अख्तर). राजधानी रायपुर के डूण्डा में अंग्रेजी शराब दुकान रायपुर-धमतरी मेन रोड़ पर होने के कारण रोज शराबियों का मेला लगा रहता है। उस रास्ते से रोजाना हजारों मजदूर रोजी-रोटी कमाने के लिए रायपुर आते है और वापस लौटते समय अपनी आधी कमाई उस शराब की दुकान में लुटा देते हैं। आस-पास के गांव की औरतें तथा लड़कियां रायपुर आते-जाते हुए सिर झुकाकर रास्ते से गुजरती हैं क्योंकि शराब दुकान की वजह से मेन सड़क तक शराबियों का मजमा लगा ही रहता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस इलाके में असमाजिक तत्वों का जमावड़ा, असुरक्षित माहौल, गाली-गलौच, खुलेआम कहीं भी शराब पीते लोग तो रोज की बात हैं। कमल विहार परियोजना बनने से लोगों में एक उम्मीद नजर आई थी कि अब शायद ये शराब की दुकान बंद हो जायेगी। किन्तु अभी तक शराब दुकान का बाल भी बांका नहीं हुआ है। शासन जितनी फुर्ती, कमल विहार प्रोजेक्ट में दिखा रहा है उतनी ही सुस्ती, शराब दुकान हटाने में लगा रहा है। यदि सरकार स्वच्छ और सुंदर शहर बसाने की मंशा लेकर नई बस्ती बसा रही है तो वहां पर शराब दुकान को चलने दिया जाना पूरी तरह समझ से परे है। बस्ती बसी नहीं कि लुटेरे आ गये वाली कहावत यहां चरितार्थ होती दिखती है क्योंकि अभी बस्ती बसी ही नहीं और शराब दुकान पहले ही खुलवा दी गई। इसीलिए शराब दुकान को इलाके की शान कहें तो ज्यादा उचित होगा।
कछुए की चाल से हो रहा है निर्माण कार्य
रायपुर विकास प्राधिकरण की कमल विहार योजना कछुए की चाल से अपना आकार ले रही है। शुरू से ही विवादों में रहे कमल विहार में शासन को क्या विशेष रूचि है ये तो वे ही जाने। यहां तमाम नियमों को ताक पर रख कर विरोध और विवादों को अनदेखा कर विभागीय मंत्री-अफसर कमल खिलाने को आतुर थे सो खिला भी दिया। कमल विहार क्षेत्र से निकली नहर अब विलुप्त हो चुकी है, बारिश में डूण्डा, बोरियाखुर्द, कांदूल, काठाडीह, पुरेना के किसानों को सिंचाई के लिए नहरों से पानी मिलना भी बंद हो चुका है और गर्मी के दिनों में गांवों के तालाबों को भी अब सूखा ही रहना पड़ रहा है क्योंकि गंगरेल से उनका संपर्क टूट चुका है। बोरियाखुर्द के गजराज बांध को भी जल संकट से जूझना पड़ रहा है, बांध से निकलने वाली बोरिया नाली भी टूट चुकी है। अनेक किसानों को कमल विहार क्षेत्र में न होते हुए भी कमल विहार का दुख झेलना पड़ रहा है क्योंकि इन्ही रास्तों से होकर तो उन तक सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होता था। राज्य सरकार किसानों को लेकर कितनी गंभीर है और उनके लिए कितनी चिंतित है, यह तो समझा ही जा सकता है। ऐसे में किसान क्या करेंगे? सोचिए, विचार करिए शायद उत्तर मिल सके। स्वार्थ से फलीभूत होकर चलायी जा रही कमल विहार योजना में न जाने कितने नियमों को ताक में रख काम किया जा रहा है जिसको गिना पाना संभव नहीं है।