विशेष प्रस्तुति - कौन सुनेगा पुलिस का दर्द
कानपुर 14 सितम्बर 2015 (अवनीश दीक्षित). पुलिस महकमा एक ऐसा विभाग है जिस पर आम जनता की सुरक्षा, कानून व्यवस्था को बनाये रखना और जिन्दगी को सुचारू रूप से चलाने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। यदि यह विभाग नहीं होगा तो जरा सोचिए कि क्या हम सुरक्षित रह पायेंगें, क्या कानून व्यवस्था नजर आयेगी या नही। फिर आखिर क्यों हम जब भी इन पुलिस वालों को देखते तो हमें उनमें बुराई ही नजर आती है। उनके अन्दर छिपी अच्छाई हमें क्यों नही दिखती है।
फिलहाल हम आप को आज वर्दी के पीछे छिपे उस दर्द को बताते है जो वे कभी आम जनता से नही बांट सकते हैं, और स्वयं उस दर्द भरी जिन्दगी को जीते हैं।
मालूम हो कि पुलिस विभाग के अलावा अन्य सरकारी महकमे हो या फिर प्राईवेट सभी में छह दिन काम करने के बाद सातवें दिन अवकाश दिया जाता है। अब जरा सोचिये कि यदि सातवें दिन मिलने वाले उस अवकाश को खत्म कर दिया जाये तो आपको क्या लगेगा। कभी आपने ये सोचा है कि जो अपने परिवार से दूर रहकर सातों दिन आपकी सुरक्षा में लगे रहते है। इसके बाद भी वह जब कहीं नजर आते है तो यह कहते हुये सुना जाता है कि यह पुलिस वाले भ्रष्ट होते, गुण्डे होते है इनमें मानवता नहीं है।
जब भी हम किसी बड़ी मुसीबत में होते हैं तो सबसे पहले पुलिस को ही याद करते है और फिर पुलिस आपकी सूचना पर तुुरन्त बताये गये स्थान पर आपकी मदद के लिये पहुंच जाती है। इसके अलावा पथराव और गोलियां चल रही हों तब भी यह पुलिस वाले ही हमारी सुरक्षा के लिये ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं। जब आप अपने घरों में चैन की नींद सोते है तब यह पुलिस के जवान ही जाग कर हमारी सुरक्षा करते है। इसके बाद भी हम उन्हें ही दोषी ठहराते हैं।
एक सर्वे के अनुसार 75 फीसदी पुलिस के जवानों को अवकाश नहीं मिलता है और 90 फीसदी पुलिस के जवानों को अवकाश के दिन भी यह कहकर बुला लिया जाता है कि महकमे में जवानों की कमी है। यह सब जानने के बाद भी पुलिस महकमे में काम करने वाले जवान, व अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से आपकी सुरक्षा में लगे रहते हैं, फिर चाहे वे किसी भी परेशानी या फिर तनाव में क्यों न हो।
(लेखक अवनीश दीक्षित कानपुर प्रेस क्लब के महामंत्री एवं ई टीवी के पत्रकार हैं)