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छत्तीसगढ़ - कभी था धान का कटोरा अब किसानों की कब्रगाह, मीडिया ने किया था पहले से अागाह

छत्तीसगढ़ 4 सितम्‍बर 2015 ( जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ी किसानों की आत्महत्याओं पर एनसीआरबी की रिपोर्ट राज्य सरकार के कुशासन को उजागर करती है कि कितनी आसानी से प्रदेश के गरीब किसानों के साथ घिनौना मजाक किया जा रहा है। धान का कटोरा कहा जाने वाला छत्तीसगढ़ प्रदेश अब किसानों का कब्रगाह भी बनता चला आ रहा है। एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट से यह साबित होता है कि किसानों की आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ नम्‍बर एक पर  है।

कभी "धान का कटोरा" कहलाने वाला छत्तीसगढ़ अब बीते जमाने की बात बन चुकी है क्योंकि वर्तमान में किसानों या अन्नदाताओं की आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ प्रदेश इस वर्ष सबसे आगे रहा जो कि जनसंख्या, क्षेत्रफल व बजट के आधार पर है, परन्तु राज्य स्तर पर रिपोर्ट में चौथे पायदान पर है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के द्वारा जारी रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्या के मामलों में भारत के प्रदेशों में छत्तीसगढ़ चौथे पायदान पर है। प्रथम स्थान पर महाराष्ट्र, द्वितीय स्थान पर तेलंगाना, तृतीय स्थान पर मध्य प्रदेश व चौथे स्थान पर छत्तीसगढ़ है। जहां वर्ष 2014 में कर्ज, फसल की तबाही, परिवारिक कारणों से 443 किसानों ने आत्महत्या की। देश में किसानों की कुल 5650 आत्महत्याओं में से 89.15 फीसदी आत्महत्या सिर्फ इन चार राज्यों में हुई है। गंभीर तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य से इन तीनों राज्यों की सीमा जुड़ती है। जिसे कृषि विशेषज्ञ / किसानों की बदहाली का जोन / की संज्ञा दे रहे हैं। 
 
हालाँकि एनसीआरबी ने किसानों की मौतों को लेकर जो अनुसंधान पद्धति अपनाई है उसके मुताबिक पिछले वर्ष की तुलना में किसानों की आत्महत्याओं में 50 प्रतिशत कम मौतें हुई है। परंतु छत्तीसगढ़ का चौथे स्थान पर आना हर किसी को आश्चर्यचकित कर गया क्योंकि यह छोटा प्रदेश है तथा धान की पैदावार अच्छी रहती है व औघोगिक क्षेत्रों में भी अपार संभावनाएं हैं। राज्य शासन कृषि व कृषकों के लिए गंभीर न होने और किसानों को सरकारी योजनाओं से दरकिनार कर देने से प्रदेश में यह भयावह स्थिति उत्पन्न हो गई है। 

महिला किसान भी लगा रही है मौत को गले
एनसीआरबी रिपोर्ट के आंकड़ों को देखें तो यह सच भी सामने आता है कि राज्य में खेती की बदहाली और बिगड़ती स्थिति की वजह से महिला किसानों की हिम्मत व ताकत टूट रही है। महिला किसानों की मौतों के मामले में भी यही चारों राज्य शीर्ष से क्रमवार स्थित हैं। देश में महिला किसानों की स्थिति तो और भी अधिक खराब है, एक वर्ष में महिला किसानों की कुल 472 मौतें हुई, जिनमें से छत्तीसगढ़ में 58 महिला किसानों ने आत्महत्या की जो कि कुल में से 11 फीसदी है, तेलंगाना में 147, मध्यप्रदेश में 138, महाराष्ट्र में 70 महिला किसानों ने आत्महत्या की।

इन कारणों से महिला किसान कर रही हैं आत्महत्या
महिला किसानों की मौतों के बढ़ते आंकड़ों से इस वर्ष छत्तीसगढ़ राज्य चौथे पायदान पर पहुंच गया है, जबकि पिछले वर्ष चौथे पायदान पर कर्नाटक राज्य था। एनसीआरबी द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 65 किसानों की आत्महत्या का कारण नहीं दर्शाया गया है। बीमारी से 12 महिलाओं सहित 110 किसानों ने आत्महत्या की, जबकि परिवारिक समस्याओं के चलते 59 किसानों ने जान दी। इतना ही नहीं 14 किसानों ने फसल न बिकने पर, 4 किसानों ने फसल की तबाही पर और 2 किसानों ने प्राकृतिक आपदा से फसल खराब होने पर आत्महत्या कर ली। प्रदेश में 28 किसानों की आत्महत्या की वजह नशे की आदत थी। चूँकि छत्तीसगढ़ में नशे का कारोबार सबसे अधिक फलफूल रहा है और प्रशासन इस पर रोकथाम करने में असफल रहा है।

प्रदेश में कर्ज से केवल एक किसान की ही आत्महत्या दर्ज की गई है लेकिन कृषि के जानकारों का कहना है कि यहां पर सरकारी एजेंसियों के बजाय सूदखोरी पर ब्याज लेने का प्रचलन अधिक है जो इन आत्महत्याओं का सबसे मुख्य कारण है। राज्य शासन सूदखोरी पर नियंत्रण करने में पूरी तरह नाकामयाब रही है क्योंकि सूदखोरी की वजह से वर्ष 2004 से 2014 तक में प्रत्येक वर्ष 50 से अधिक किसान आत्महत्या करते आ रहें हैं, बावजूद इसके राज्य शासन ने सूदखोरी के मकड़जाल से बचाव व निजात दिलाने के लिए कोई भी पहल नहीं की, प्रदेश के कृषि जानकारों का मानना है कि आगे यह स्थिति और भयानक होने वाली है, जिससे निपटना आसान नहीं होगा। संभवतः शासन की नाकामी के चलते छत्तीसगढ़ के किसानों को आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाना पड़ रहा है।