टूटती जा रही है मनरेगा से रोजगार की आस, सरकार की उदासीनता से मजदूर हुए निराश
छत्तीसगढ़ 13 दिसंबर 2015 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को लेकर अनिश्चितता का माहौल इस कदर है कि राज्य में रोजगार की मांग करने वाले लाखों लोगों को काम नहीं मिल रहा है। कारण यह है कि जिलों में सरपंचों से लेकर अफसरों तक को आशंका है कि काम करवाने के बाद भुगतान कब होगा?
हालत यह है कि छत्तीसगढ़ में रोजगार की मांग करने वाले परिवारों की संख्या 12 लाख 32 हजार से अधिक है और इनमें से केवल 4 हजार 871 परिवारों को सौ दिनों का काम मिला है। यही नहीं, 4 लाख 16 हजार परिवार ऐसे हैं जिन्हें 15 दिन से कम काम मिल पाया है। छत्तीसगढ़ में मनरेगा का औसत काम केंद्र में एनडीए सरकार बनने से पहले तक ठीक रहा है। लेकिन केंद्र में नई सरकार बनने के बाद मनरेगा के भविष्य को लेकर चली अटकलों और अरबों रुपए का भुगतान डेढ़ साल तक रुकने के बाद गरीबों को रोजी-रोटी देने वाली इस महत्वाकांक्षी योजना से लोगों का भरोसा उठता चला जा रहा है। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि राज्य में 39 लाख 20 हजार से अधिक लोग मनरेगा में मजदूरी के लिए अपना पंजीयन करवाकर जॉब कार्डधारी बने हैं। इनमें से एक तिहाई से भी कम यानी 12 लाख लोग रोजगार की मांग करने सामने आ रहे हैं। जो लोग काम की मांग रहे हैं उनमें से बहुत कम लोगों को काम मिल रहा है। राज्य सरकार ने साल में डेढ़ सौ दिन काम देने का वादा कर रखा है।
* मनरेगा को लेकर पूरे छत्तीसगढ़ में अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है। केंद्र सरकार से मजदूरी की राशि मिलने में देरी के कारण योजना के क्रियान्वयन पर दुष्प्रभाव पड़ा है। लोगों को काम मिलना मुश्किल हो गया है। ऐसा लग रहा है कि यह योजना धीरे-धीरे फेल हो रही है। - समीर गर्ग, भोजन के अधिकार कार्यक्रम से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता
* यह सही है कि इस साल पिछले साल के मुकाबले कम काम हुआ है। लेकिन हम प्रयासरत हैं कि रोजगार मांगने वाले अधिक से अधिक लोगों को काम मिले। इसके लिए प्रशासकीय स्वीकृति दिलाने का प्रयास भी जारी है। इस साल के सीजन में अभी कुछ माह का समय बाकी है। - पीसी मिश्रा, सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग
छत्तीसगढ़ के अधिकांश क्षेत्रों में मनरेगा के तहत स्थिति लगभग एक समान ही बनी हुई है। छत्तीसगढ़ सरकार की उदासीनता से मजदूरों का मनरेगा पर से विश्वास उठता जा रहा है जोकि केन्द्र की यह योजना भी डमी बनने के कगार पर पहुंच चुकी है। ऊपर से जिस प्रकार से मनरेगा में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए उससे भी हालात काफी बदतर होते जा रहे हैं। राज्य सरकार ने जल्द ही इस योजना पर हो रही लापरवाही व उदासीनता जैसे कारणों को दुरूस्त नहीं किया तो आने वाले समय में स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।
औसत रोजगार हुआ आधा
छत्तीसगढ़ में करीब डेढ़ साल पहले तक की स्थिति में मजदूरों को साल भर में औसतन 50-60 दिनों का काम मिल रहा था, लेकिन हाल के करीब डेढ़ साल में इसमें आधे से अधिक गिरावट आई है। जानकारों के मुताबिक अब मात्र 22 -22 दिनों का औसत रोजगार मिल रहा है। राज्य के आदिवासी और अनुसूचित जाति बहुल इलाकों और जहां सबसे अधिक गरीबी के साथ रोजगार के अवसर भी कम हैं वहां पूर्व में 50-60 दिनों के औसत रोजगार से मजदूर परिवारों को करीब आठ हजार रुपए मिल रहे थे, इतनी रकम से ही उन्हें कुछ राहत मिलती थी, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है।
टूट गया विश्वास
मनरेगा से जुड़े सभी लोगों के सामने इस बात का संकट सबसे बड़ा है कि अगर काम करवा लिया तो भुगतान कब और कैसे होगा? इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि 2014 में किए गए काम का भुगतान एक साल बाद 2015 में हुआ। जाहिर है रकम को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। जानकार सूत्रों के अनुसार पिछले साल ही बड़ी संख्या में काम स्वीकृत हुए, लेकिन उन्हें चालू नहीं किया गया। यही कारण है कि कई जिलों से लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। इससे पहले वर्ष 2013 तक राज्य में मनरेगा से लोगों को रोजगार के अवसर अधिक मिल रहे थे।
गिरी मजदूरी की दर
जब मनरेगा के जरिए लोगों के सामने रोजगार के अवसर उपलब्ध थे, तब मजदूरों का महत्व (वैल्यू) अधिक था। मनरेगा के अलावा दूसरे काम करने वाले श्रमिकों को मनरेगा में मिलने वाली दैनिक मजदूरी से अधिक भुगतान मिलता था, लेकिन अब जबकि मनरेगा में ही काम मिलना मुश्किल हो रहा है तो अन्य क्षेत्रों में मजदूरी करने वालों की मजदूरी दर भी कम हो गई है।* मनरेगा को लेकर पूरे छत्तीसगढ़ में अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है। केंद्र सरकार से मजदूरी की राशि मिलने में देरी के कारण योजना के क्रियान्वयन पर दुष्प्रभाव पड़ा है। लोगों को काम मिलना मुश्किल हो गया है। ऐसा लग रहा है कि यह योजना धीरे-धीरे फेल हो रही है। - समीर गर्ग, भोजन के अधिकार कार्यक्रम से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता
* यह सही है कि इस साल पिछले साल के मुकाबले कम काम हुआ है। लेकिन हम प्रयासरत हैं कि रोजगार मांगने वाले अधिक से अधिक लोगों को काम मिले। इसके लिए प्रशासकीय स्वीकृति दिलाने का प्रयास भी जारी है। इस साल के सीजन में अभी कुछ माह का समय बाकी है। - पीसी मिश्रा, सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग
धमतरी जिले में किसान मजदूर बेहाल
धमतरी कार्यालय के अनुसार बारिश नहीं होने के कारण जिले में धान की फसल नष्ट हो गई है और क्षेत्र सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया है। कई गांवों के किसानों ने जिला कलेक्टर से मिलकर कहा है कि शासन द्वारा राहत कार्य नहीं खोलने पर उनके परिवार के सामने भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। यही नहीं ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें दो साल से मनरेगा में किए गए काम का भुगतान नहीं मिला है। एक गांव में ही 215 ऐसे परिवार हें जिन्हें कोई काम नहीं मिल रहा है। ग्रामीणों के अनुसार वर्ष 2013-14 में मनरेगा मजदूरों ने धरसा निर्माण में 25 से 30 दिन काम किए हैं, लेकिन आज तक मजदूरी का भुगतान नहीं हुआ है। इस वर्ष भी गांव के मनरेगा मजदूरों ने मिट्टी-मुरूम सड़क निर्माण कार्य में 30 से 35 दिनों तक मनरेगा में काम किए हैं, इसका भी मजदूरी भुगतान अब तक नहीं हुआ है। ग्रामीणों का आरोप है कि मजदूरी दिलाने शासन गंभीर नहीं है।छत्तीसगढ़ के अधिकांश क्षेत्रों में मनरेगा के तहत स्थिति लगभग एक समान ही बनी हुई है। छत्तीसगढ़ सरकार की उदासीनता से मजदूरों का मनरेगा पर से विश्वास उठता जा रहा है जोकि केन्द्र की यह योजना भी डमी बनने के कगार पर पहुंच चुकी है। ऊपर से जिस प्रकार से मनरेगा में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए उससे भी हालात काफी बदतर होते जा रहे हैं। राज्य सरकार ने जल्द ही इस योजना पर हो रही लापरवाही व उदासीनता जैसे कारणों को दुरूस्त नहीं किया तो आने वाले समय में स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।