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किसान बदहाली से परेशान, राज्य सरकार बन रही अनजान

रायपुर/छत्तीसगढ़ 26 अप्रैल 2016 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ राज्य बनने के 16 साल बाद भी सभी प्रकार से सिंचाई की सुविधा में सिर्फ 7% की वृद्धि ही हुई है जबकि छत्तीसगढ़ मूलत: कृषि प्रधान प्रदेश है। यह आंकडे कृषि विशेष राज्य की वास्तविक स्थिति बयां कर रहे हैं।छत्तीसगढ़ राज्य में चावल की पैदावार सबसे अधिक है, "धान का कटोरा" की उपाधि तक मिली है परंतु जमीनी असलियत बहुत भयावह है। उक्त बातें मुरमुंदा के कर्मा भवन में आयोजित छत्तीसगढ प्रगतिशील किसान संगठन के अहिवारा ब्लाक स्तरीय किसान सम्मेलन को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए संगठन के संयोजक ने कहीं।

छत्तीसगढ प्रगतिशील किसान संगठन के लोगों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार की अनाप शनाप नीतियां, भर्राशाही, लालफीताशाही, लापरवाही तथा शत प्रतिशत भ्रष्टाचार की बदौलत धान के कटोरे में से धान और धान की भूसी तक गायब हो गई है और अब बाकी रह गया है किसानों के हाथ में खाली कटोरा। खाली कटोरा सिवाय भीख मांगने के और किसी भी काम में नहीं आता है, छत्तीसगढ़ी किसानों की हालत ऐसी ही हो चुकी है। विगत 16 वर्षों के शासनकाल में, पहले 3 वर्ष कांग्रेस के तथा बाकी के 13 वर्ष भारतीय जनता पार्टी के रहे तथा वर्तमान में भी भाजपा का ही शासनकाल है। राज्य की भाजपा सरकार, प्रदेश की कृषि व कृषकों के प्रति, दूसरे शासनकाल से लेकर तीसरे शासनकाल के तीसरे वर्ष यानि आज दिनांक तक लापरवाह ही बनी हुई है और प्रदेश के किसान आज तक उपेक्षित किए जा रहे हैं। जिसका खामियाजा प्रदेश के कृषकों को चुकाना पड़ा है और विगत दस सालों में सौ से भी अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

परंतु इस भर्राशाही पर शायद ही किसी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करने की आवश्यकता समझी। न ही सैकड़ों एनजीओ ने बेमौत मारे जा रहे किसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई। शासन के रिकार्ड में प्रदेश के किसान सबसे खुशहाल हैं उन्हें किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत और परेशानी नहीं है और सबसे बड़ा जिगरवाला काम ये भी किया गया है कि प्रदेश में जितने भी किसानों ने आत्महत्या की है सभी ने पारिवारिक कलेश, अन्तर्कलह और विवाद के चलते ऐसा कदम उठाया है, राज्य सरकार तो ऐसा ही बे सिर-पैर का दावा करती आ रही है। हालांकि सर्वविदित है कि किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि राज्य सरकार ने एक के बाद एक झूठे वादे किए, झूठा आश्वासन दिया और आज भी झूठा आश्वासन ही दे रही है।


छत्तीसगढ प्रगतिशील किसान संगठन के सदस्‍यों ने आरोप लगाया कि किसानों को जो पानी मिलना चाहिए था खेती करने के लिए उसको अतिसंवेदनशील सरकार ने कल कारखानों को दे दिया। किसानों की खेती में पानी के लिए राज्य सरकार की गारंटी नहीं है लेकिन उद्योगों को शत प्रतिशत पानी की गारंटी है। जितने भी बांध, बैराज, नहर आदि बनाए गये हैं उनका पानी खेत के बजाय कारखानों को दिया गया और आज भी दिया जा रहा है। यदि राज्य बनने के बाद शत प्रतिशत सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती या उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया होता, तब अल्प वर्षा के बावजूद भी किसानों को सूखा अकाल की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।

उक्‍त सम्मेलन में उपस्थित किसानों से भी बातचीत की गई जिसमें यह तो स्पष्ट हो गया कि प्रदेश के अधिकांश किसान राज्य सरकार से बहुत अधिक नाराज हैं और उपेक्षित किए जाने से आक्रोशित भी। किसानों ने राज्य सरकार पर जमकर अपनी भड़ास निकाली। किसानों ने बताया कि, किसानों को लेकर चुनाव घोषणापत्र के वायदों को पूरा करने, सूखा राहत, फसल बीमा जैसे परिस्थितिजन्य मुद्दे और किसान आयोग, किसान पेंशन जैसे कई प्रकार के मुद्दों के लिए वे सभी एकजुट होकर राज्य सरकार से लड़ाई लड़ेंगे। किसानों ने कहा, हमें अपनी लड़ाई खुद से लड़नी होगी अन्यथा खुदखुशी की स्थिति बनती ही रहेगी और खुदखुशी के सिवा कोई विकल्प नहीं रहेगा। खुदखुशी करके ही जब मरना है तो अपने हक की जायज़ मांग के साथ लड़ाई लड़ते हुए मरते हैं। सरकार, मंत्री, संत्री और अफसरों को छठी का दूध याद दिला दें ताकि आने वाली पीढ़ियों को हमारे जैसा कष्ट तो भोगना न पड़े और न ही खुदखुशी करनी पड़े। किसानों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, अगर सरकार, हमारी किसानों की नहीं सुनती है तो किसान भी, सरकार की नहीं सुनेंगे और सरकार की खटिया खड़ी और बिस्तरा गोल कर देगें। इनको जड़ से उखाड़ फेकेंगे, ताकि सौ-दो सौ सालों तक ऐसे दोगले नेता पैदा न हो सकें। जो हमारा नहीं, हम उसके नहीं, और जो हमारा नहीं उसका हमारे घर में क्या काम? जय जोहार जय छत्तीसगढ़ का नारा भी बुलंद किया गया।

कुछेक किसानों ने पूछा है कि राज्य सरकार की सारी उदारता धनाढ्य वर्ग व कुछेक विशेष लोगों के लिए ही क्यों होती है? जबकि चुनाव में न ही धनाढ्य वर्ग और न ही विशेष लोग वोट डालते हैं बल्कि गरीब तबका, किसान वर्ग और मध्यम वर्गीय लोग ही वोट डालने के लिए लाइनों में खड़े होतें हैं, कष्ट झेलने के बावजूद भी वोट डालतें हैं और सरकार बनाने में सबसे बड़ी व प्रमुख भूमिका निभाते हैं, अर्थात सरकार बनवाने में इन वोट डालने वालों की ही भूमिका होती है, मगर सरकार बन जाने के बाद दोगलापन क्यूं करते हैं? सरकार ने जितने भी वादे किए थे उनमें से एक भी वादे को पूरा नहीं किया। सरकार बनने के बाद दोगलापन करना जरूरी होता है क्या? सरकार बन जाने के बाद वादों से मुकरने का ही शपथ ग्रहण किया जाता है क्या? सम्मेलन को संबोधित करते हुए संगठन के अध्यक्ष ने कहा कि किसानों को अपने राजनीतिक और सामाजिक पहचान को ताक में रखकर सिर्फ किसान हित के लिए संघर्ष करना होगा, संगठन के महासचिव ने फसल बीमा योजना और सूखा राहत योजना की बारीकियों से अवगत कराया। अछोटी के सरपंच ने किसी नेता का चक्कर लगाने के बजाय अपनी लड़ाई खुद लड़ने का आह्वान किया। अंत में अहिवारा ब्लाक कमेटी का गठन भी किया गया। संयोजक छत्तीसगढ प्रगतिशील किसान संगठन द्वारा जानकारियाँ दी गई।