न्यायालय की सीमा रेखा का न करें पार वरना न्यायधीशों पर भी गिरेगी गाज
छत्तीसगढ़ 7 April 2016 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा जज प्रभाकर ग्वाल को बर्खास्त करने की घटना न केवल ऐतिहासिक है बल्कि इस निर्णय में लोवर कोर्ट में पदस्थ न्यायाधीशों के लिये एक छिपा संदेश बल्कि धमकी भी है कि कोई भी जज व्यवस्था की सीमा रेखा को लांघने का दुस्साहस न करें, अन्यथा परिणाम घातक होंगे।
लोवर कोर्ट के जजों की नियुक्ति राज्य शासन द्वारा की जाती है, शासन के विधि विधायी विभाग में सचिव के पद पर डी.जे स्तर के जज नियुक्त किये जाते हैं, वैसे तो न्यायालय से निष्पक्ष न्याय की अपेक्षा की जाती है किंतु जब जजों के नियोक्ता राज्य शासन है और विधि विधाई विभाग के माध्यम से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष नियंत्रण भी राज्य शासन का ही होता है ऐसे में कोई जज से निष्पक्ष निर्णय देने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? उच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति वैसे तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जाती है किंतु नियुक्ति पाने वाला जज तो राज्य के बार या बेंच से ही चयनित किये जाते हैं जो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकार के प्रभाव क्षेत्र से आते हैं, न्याय की निष्पक्षता का आलम यह है कि उच्च न्यायालय का जज नियुक्त होने के साथ ही उनका तबादला अन्य राज्य के उच्च न्यायालय में किया जाये ताकि निष्पक्ष न्याय प्रभावित न हो, दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है और उच्च न्यायालय में स्थानीय राज्य के अनेक जज पदस्थ हैं क्या सुप्रीम कोर्ट को इसे स्वयं संज्ञान में लेकर कार्यवाही नहीं करना चाहिये?