कानपुर - शहर के कई प्रतिष्ठित गेस्ट हॉउसों में बर्तन धो रहा है देश का भविष्य
कानपुर 26 अप्रैल 2016 (मो0 नदीम).
पापा कहते है बड़ा नाम करेगा बेटा हमारा ऐसा काम करेगा।
हर माता पिता यही चाहते हैं की उनका बच्चा पढ़ लिखकर देश में उनका नाम रोशन करे, लेकिन हमारे देश में ऐसे बच्चे भी हैं जिनको पढ़ना तो दूर की बात है, दो वक़्त की रोटी ही मिल जाए तो बहुत बड़ी बात है।
ऐसे ही बच्चे पेट की आग बुझाने के लिए बाल मजदूरी करने को विवश हैं।
जानकारी के अनुसार जिन बच्चों की उम्र पढ़ने लिखने खेलने कूदने की है, वही मजबूर बच्चे रिक्शा खींचते या दूसरे के झूठे बर्तन साफ़ करते सेंट्रल स्टेशन घण्टाघर के आस पास नज़र आ जाएंगे। अभी तक आपने मासूम बच्चों को रिक्शा खींचते या चाय की दुकानों पर काम करते हुए देखा होगा लेकिन अब बाल मजदूरी शहर के प्रतिष्ठित गेस्ट हाउसों तक पहुच गई है। कानपुर के नामी गेस्ट हॉउसों में धड़ल्ले से सरेआम बाल मजदूरी कराई जा रही है बर्रा, शास्त्री चौक, रावतपुर, किदवई नगर, बेकन गंज, माल रोड, सिविल लाइन आदि कई क्षेत्रों में बाल मजदूरी का जाल फैला हुआ है। कानपुर शहर के अधिकाँश गेस्ट हाउसों में ये मासूम बच्चे लोगों का जूठा उठाते हुए देखे जा सकते हैं। बच्चों से मजदूरी करवाने की सबसे बड़ी वजह है बच्चों का बड़े कर्मचारियों के मुकाबले कम पैसो में काम करना, इसी कारण ये बच्चे गेस्ट हाउसों की पहली पसंद बन चुके हैं।
मजे की बात तो ये है कि शहर के प्रतिष्ठित गेस्ट हॉउस के कार्यक्रम में आने वाले शहर के प्रतिष्ठित मेहमानों की भी नज़र इन बाल मजदूरों पर कभी नहीं पड़ी या फिर इन मासूमों को देख कर अनदेखा कर दिया गया। भला हो हमारे प्रशासनिक अधिकारियों का, जिनकी अपार कृपा दृष्टि की वजह से ही शायद गेस्ट हाउसों में बाल मजदूरी का मकड़ जाल फल फूल रहा है। अभी तक किसी भी गेस्ट हॉउस के खिलाफ श्रम विभाग के निरीक्षकों ने कोई भी कार्यवाही नहीं की है, इससे तो यही लगता है की इन गेस्ट हाउस को सम्बंधित विभाग का पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। वहीं दूसरी तरफ देश की कई ऐसी संस्थायें हैं जो गला फाड़कर बाल मजदूरी ख़त्म करो का नारा लगाती हुई नज़र तो आती हैं लेकिन मासूमों का बचपन बर्बाद कर रहे समाज के ऊंचे ठेकेदारों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करती नज़र नहीं आती। ऐसी संस्थाओं का होना ना होने के बराबर है। बहरहाल अगर जल्द ही बाल मजदूरी रूपी महामारी को ना रोका गया और सरकार ने जल्द ही अगर कोई पुख्ता कदम ना उठाये तो देश के कई मासूमों का भविष्य किसी अँधेरे कुए में जाकर खो जायेगा।
जानकारी के अनुसार जिन बच्चों की उम्र पढ़ने लिखने खेलने कूदने की है, वही मजबूर बच्चे रिक्शा खींचते या दूसरे के झूठे बर्तन साफ़ करते सेंट्रल स्टेशन घण्टाघर के आस पास नज़र आ जाएंगे। अभी तक आपने मासूम बच्चों को रिक्शा खींचते या चाय की दुकानों पर काम करते हुए देखा होगा लेकिन अब बाल मजदूरी शहर के प्रतिष्ठित गेस्ट हाउसों तक पहुच गई है। कानपुर के नामी गेस्ट हॉउसों में धड़ल्ले से सरेआम बाल मजदूरी कराई जा रही है बर्रा, शास्त्री चौक, रावतपुर, किदवई नगर, बेकन गंज, माल रोड, सिविल लाइन आदि कई क्षेत्रों में बाल मजदूरी का जाल फैला हुआ है। कानपुर शहर के अधिकाँश गेस्ट हाउसों में ये मासूम बच्चे लोगों का जूठा उठाते हुए देखे जा सकते हैं। बच्चों से मजदूरी करवाने की सबसे बड़ी वजह है बच्चों का बड़े कर्मचारियों के मुकाबले कम पैसो में काम करना, इसी कारण ये बच्चे गेस्ट हाउसों की पहली पसंद बन चुके हैं।
मजे की बात तो ये है कि शहर के प्रतिष्ठित गेस्ट हॉउस के कार्यक्रम में आने वाले शहर के प्रतिष्ठित मेहमानों की भी नज़र इन बाल मजदूरों पर कभी नहीं पड़ी या फिर इन मासूमों को देख कर अनदेखा कर दिया गया। भला हो हमारे प्रशासनिक अधिकारियों का, जिनकी अपार कृपा दृष्टि की वजह से ही शायद गेस्ट हाउसों में बाल मजदूरी का मकड़ जाल फल फूल रहा है। अभी तक किसी भी गेस्ट हॉउस के खिलाफ श्रम विभाग के निरीक्षकों ने कोई भी कार्यवाही नहीं की है, इससे तो यही लगता है की इन गेस्ट हाउस को सम्बंधित विभाग का पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। वहीं दूसरी तरफ देश की कई ऐसी संस्थायें हैं जो गला फाड़कर बाल मजदूरी ख़त्म करो का नारा लगाती हुई नज़र तो आती हैं लेकिन मासूमों का बचपन बर्बाद कर रहे समाज के ऊंचे ठेकेदारों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करती नज़र नहीं आती। ऐसी संस्थाओं का होना ना होने के बराबर है। बहरहाल अगर जल्द ही बाल मजदूरी रूपी महामारी को ना रोका गया और सरकार ने जल्द ही अगर कोई पुख्ता कदम ना उठाये तो देश के कई मासूमों का भविष्य किसी अँधेरे कुए में जाकर खो जायेगा।