मरने लगे पशु व पक्षी गर्मी ने बिगाड़ी हालत, मई - जून में कैसे मिलेगी राहत
रायपुर/छत्तीसगढ़ 29 अप्रैल 2016 (छत्तीसगढ़ ब्यूरो). जैसे जैसे गर्मी और उमस बढ़ती जा रही है वैसे वैसे जंगली जानवरों व पक्षियों के लिए भारी मुसीबतें बढ़ रही हैं। गर्मी के मौसम में जब इंसान की हालत पतली होती जा रही है तो सोचिए जानवरों व पक्षियों के लिए कितनी विकट समस्या हो जाती होगी। पानी की कमी से जंगली जानवर जंगल में मर रहे हैं तो रिहायशी इलाके में गर्मी बर्दाश्त न कर पाने और प्यासे होने के कारण गौरैया सहित कई प्रकार के पक्षी भी दम तोड़ रहे हैं।
मंगलवार दोपहर डेढ़ बजे के करीब अचानक मठ मंदिर चौक के पास एक गौरेया चिड़िया फड़फड़ाकर सड़क पर गिर पड़ी। देखते ही देखते उसकी मौत हो गई। गौरेया के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था। पास में पान की दुकान चलाने वाले ने बताया कि प्यास से गौरेया चिड़िया ऊपर से गिर गई और उसकी मौत हो गई। उल्लेखनीय है कि गर्मी के साथ बादल छाने से उमस का मौसम भी बन गया है। उमस जनजीवन पर भारी पड़ने लगी है। तेज धूप से बेहाल लोग बादलों के आने पर हवा न चलने से पसीना और बेचैनी से और ज्यादा बेहाल हो जाते हैं। दोपहर में तो चिपचिपा पसीना और उमस से निजात पाने हेतु एक पल भी पंखा, कूलर की हवा से दूर रहना मुश्किल हो जाता है। इंसानों के अलावा पशु-पक्षियों के लिए भी गर्मी का मौसम कष्टप्रद बन गया है। दोपहर में प्यास से परेशान परिंदे चोंच फाड़े हुए नजर आते हैं। गाय, बकरी, कुत्ते और बिल्ली विभिन्न स्थानों पर मुंह मारकर पानी तलाशते दिखते हैं। अभी 41 से 42 डिग्री के बीच तापमान चल रहा है। तब परिंदों का यह हाल है, जब 44 से 46 डिग्री के करीब तापमान चला जाएगा, तब क्या हाल होगा। क्योंकि अभी अप्रैल माह चल रहा है इसके बाद मई व जून की झुलसा देने वाली गर्मी का आना बाकी है।
रायपुर, रायगढ़, बिलासपुर, धमतरी, बस्तर, सुकमा, कांकेर, केशकाल, जगदलपुर, कवर्धा-कबीरधाम, अंबिकापुर, सरगुजा, चिरमिरी, बैकुंठपुर-कोरिया, दुर्ग, भिलाई, बालोद, राजनांदगांव, मुंगेली, कोरबा, बेमेतरा, बलरामपुर, सूरजपुर, बिश्रामपुर, बलौदाबाजार, भाटापारा, महासमुंद, सरायपाली, बारनवापारा, कानन पेंडारी जू, नंदनवन, रिज़र्व फारेस्ट एरिया, एनिमल रिज़र्व एरिया, टाइगर रिज़र्व एरिया आदि क्षेत्रों में अभी से ही ताल एवं तालाब इस भीषण गर्मी के कारण सूखने लगे हैं। अभी से ही हालात बिगड़ने के आसार स्पष्ट दिखाई देने लगा है। पिछले वर्ष भी भीषण गर्मी के चलते सैकड़ों जंगली जानवर और परिंदे प्यास से मर गए थे और इस बार भी परिणाम ऐसा ही मिलने की संभावना अधिक दिखाई दे रही है। मुंगेली, कानन पेंडारी, रायपुर और रायगढ़ में पिछले हफ्ते क ई चीतल और हिरनों की मौत पानी न मिलने से हुई है। इसकी पुष्टि मरे जानवरों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुई है। दो दिन प्यासे जानवर कहीं पानी मिलने पर क्षमता से अधिक पानी पी लेते हैं तो आंत भी फट जाती है। रिपोर्ट में कुछ जानवरों की मौत का कारण यह भी बना है।
सबसे बड़ा प्रश्न उठता है कि सरकार ने पूरे वर्ष भर मनरेगा का करोड़ों रुपये का खर्च तालाब बनाने में किया गया तो यह सभी तालाब कहां पर है? और इन तालाबों में पानी भरने की व्यवस्था करने में कई हजार करोड़ रूपये जल संसा धन विभाग को दिया गया। इतना भारी खर्च करने के बाद भी तालाबों तक पानी नहीं पहुंच सका है तो फिर इतना खर्च करने का क्या अर्थ था? यह सरकार और ब्यूरोक्रेसी तथा विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा की जा रही मनमानी को उजागर करती है। प्यास से तड़प तड़प कर जान देते जानवरों से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसे शासन प्रशासन की संवेदनहीनता और अकर्मण्यता भी कहा जा सकता है। क्योंकि बेजुबानों की मौत पर वह सचेत नहीं हो रहे हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि किसी भी निधि से पानी तालाबों में भरवाने की कोई गाइड लाइन हो तो उसके तहत इन ताल व तालाबों में पानी भरवाने का इंतजाम सबसे पहले करना चाहिए।
बीते दिनों बस्तर के जंगली क्षेत्रों में पानी की कमी के चलते सैकड़ों पक्षी दम तोड़ गए। आसपास के ग्रामीणों के मुताबिक़, दोपहर 2-3 बजे के बीच एकाएक मैना चिड़िया पेड़ से टपकने लगी। देखते ही देखते आधे घंटे में ही सैकड़ों चिड़िया जमीन पर गिरी और चंद सेकंड में ही तड़प तड़प कर दम तोड़ती जा रही थीं। समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिरकार ये क्या हो गया है जिसके कारण पक्षी मर रहे थे। पानी का जबर्दस्त अभाव है क्षेत्र में, इंसानों को खुद के पीने योग्य पानी के लिए 3-4 मील तक का सफर करना पड़ता है तब कहीं जाकर पानी मिलता है। जो आस पास में हैंडपंप थे उसे सील कर दिया गया क्योंकि हैंडपंप से निकलने वाले पानी में फ्लोराइड अधिक था, जिससे गंभीर रोगों की संभावना नब्बे फीसदी बढ़ जाती है, इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा हैंडपंपों को सील कर दिया गया मगर सरकार द्वारा पानी का अन्य कोई साधन या स्त्रोत उपलब्ध नहीं कराने से ग्रामीण नाराज है।
सबसे बड़ा प्रश्न उठता है कि सरकार ने पूरे वर्ष भर मनरेगा का करोड़ों रुपये का खर्च तालाब बनाने में किया गया तो यह सभी तालाब कहां पर है? और इन तालाबों में पानी भरने की व्यवस्था करने में कई हजार करोड़ रूपये जल संसा धन विभाग को दिया गया। इतना भारी खर्च करने के बाद भी तालाबों तक पानी नहीं पहुंच सका है तो फिर इतना खर्च करने का क्या अर्थ था? यह सरकार और ब्यूरोक्रेसी तथा विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा की जा रही मनमानी को उजागर करती है। प्यास से तड़प तड़प कर जान देते जानवरों से इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसे शासन प्रशासन की संवेदनहीनता और अकर्मण्यता भी कहा जा सकता है। क्योंकि बेजुबानों की मौत पर वह सचेत नहीं हो रहे हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि किसी भी निधि से पानी तालाबों में भरवाने की कोई गाइड लाइन हो तो उसके तहत इन ताल व तालाबों में पानी भरवाने का इंतजाम सबसे पहले करना चाहिए।
बीते दिनों बस्तर के जंगली क्षेत्रों में पानी की कमी के चलते सैकड़ों पक्षी दम तोड़ गए। आसपास के ग्रामीणों के मुताबिक़, दोपहर 2-3 बजे के बीच एकाएक मैना चिड़िया पेड़ से टपकने लगी। देखते ही देखते आधे घंटे में ही सैकड़ों चिड़िया जमीन पर गिरी और चंद सेकंड में ही तड़प तड़प कर दम तोड़ती जा रही थीं। समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिरकार ये क्या हो गया है जिसके कारण पक्षी मर रहे थे। पानी का जबर्दस्त अभाव है क्षेत्र में, इंसानों को खुद के पीने योग्य पानी के लिए 3-4 मील तक का सफर करना पड़ता है तब कहीं जाकर पानी मिलता है। जो आस पास में हैंडपंप थे उसे सील कर दिया गया क्योंकि हैंडपंप से निकलने वाले पानी में फ्लोराइड अधिक था, जिससे गंभीर रोगों की संभावना नब्बे फीसदी बढ़ जाती है, इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा हैंडपंपों को सील कर दिया गया मगर सरकार द्वारा पानी का अन्य कोई साधन या स्त्रोत उपलब्ध नहीं कराने से ग्रामीण नाराज है।