खुलासा विशेष - एक कलम की जंग, झोलाछाप कलमकारों के संग
वाराणसी 28 मई 2016 (नीलोफर बानो). आज मेरी कलम लिखने से मुँह चुरा रही थी लिखने को तैयार ही नहीं थी, जब मैने कलम को ये समझाया आज जो तू लिखने जा रही है वह ऐसे कलमकारों के खिलाफ है जो झोलाछाप हैं और जिनके कारण पत्रकारिता बदनाम हो रही है। तब बड़ी मुश्किल से ये मानी और झोलाछाप पत्रकारों के खिलाफ लिखने को तैयार हुयी।
भाई मैं तो ऐसे पत्रकारों को झोलाछाप ही कहूँगी क्योंकि पत्रकार के साथ फर्जी शब्द सही नहीं होता।चलिए साहब जब कलम तैयार है तो आ जाते है असली मुद्दे पर। आजकल पत्रकारिता क्षेत्र में कुछ ऐसे लोगों की बहार आ गयी है जो व्हाट्सऐप पर ही पत्रकार-पत्रकार खेलते हैं। अभी कुछ दिन पहले मेरे एक मित्र ने किसी अनजान व्यक्ति से पूछा की भाई आप किस मीडिया हाउस में जुड़े हो, उस बन्दे ने कहा मै व्हाट्सएप्प पत्रकार हूँ। अब ये व्हाट्सएप्प पत्रकार क्या होता है मैं खुद नहीं जानती। मगर कोशिश कर रहीं हूं पता करूं कि ये कौन सी नई प्रजाति की पत्रकारिता है।
आज कल पत्रकारिता का स्तर इतना गिर गया है कि पुरूष तो पुरूष अब तो कुछ महिलायें भी पत्रकार होने का दावा कर व्हाट्सऐप पर पहले आपको पिया बना लेंगी, और व्हाट्सऐपीया प्यार के साथ आपसे पिया-पिया खेलती हैं। अपनी रिझाने वाली हरकतों से पत्रकारिता को बदनाम करती हैं। बिलकुल अचंभित न हो आप, जब केवल एक दिन की व्हाट्सऐप चैटिंग में ही वो आपको आई लव यू बोलकर आपको रिझाये, फिर आपसे कहे कि मेरे यहाँ नेट पैक नहीं मिल रहा, फिर आप स्वयं तत्काल उनका मोबाइल रिचार्ज करवा दे, उसके बाद आपके खुद के ग्रुप में जुड़ने के लिए वो शर्त रखे कि मुझको एडमिन दें आप। जैसे ही आपने एडमिन दिया वो तत्काल आपके कांटेक्ट चुरा कर उसमें से आपके करीबियों को रिमूव कर देंगी और फिर आप उनके हाथ की कठपुतली बन गए। आपके भेजे मैसेजों के आधार पर आपको बदनाम करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल करेंगी।
दूसरी तरफ कुछ लोग तो ऐसे हैं जो 1000 रूपये लेकर किसी के ऊपर भी पत्रकार का ठप्पा लगा दे रहे हैं। आप को बता दूँ अभी कुछ दिन पहले मेरी बाजार में एक मुँह बोले भाई से मुलाकात हुई। मुझसे पूछे बहन तुम किस मीडिया से हो मैने कहा मैं फलनवा मीडिया हाउस से हूँ। फिर बड़ा रौब के साथ ऐंठ कर कहा मैं भी पत्रकार हूँ इस ढिमका मीडिया हॉउस से 1000 रुपये में प्रेस कार्ड बनाया हूँ और कई और का भी प्रेस कार्ड बनवाया हुआ है। आप भी हमसे जुड़ जाओ। मैंने कहा भाई मुझे माफ़ करो मैं बहुत छोटी सी कलमकार हूं, मुझको बड़ी पत्रकार नहीं बनना है । फिर चलते चलते मेरे उस भाई ने मेरा विजिटिंग कार्ड माँग लिया बोला मेरी गाड़ी अगर पकड़ गयी तो कॉल करूँगा। मैं उसकी बातें सुनकर हक्का बक्का हो गयी, अरे भाई ये मेरा विजिटिंग कार्ड है कोई ग्रीन कार्ड नहीं है जो गाड़ी छूट जायेगी।
अब मुझे समझ आ रहा है कि आजकल पत्रकारिता में ऐसे झोलाछाप पत्रकारों की भीड़ क्यों आ गयी है और आजकल एक रोड साइड रोमियो, ऑटो रिक्शा वाला, चाय वाला, पान वाला और सब्ज़ी वाला तक पत्रकार क्यों बना जा रहा। ऐसे लोग प्रेस कार्ड दिखाकर अपनी दबंगई झाड़ रहे हैं और पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं।पत्रकार सच का आईना दिखाता है। पत्रकार सच का साथ देता है। पत्रकारिता के बल पर ही हम हिंदुस्तानी अंग्रेज़ों की गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद हुए थे। तो साहब जी यूँ पत्रकारिता को बदनाम न कराे, कोई दूसरा धंधा देख लो भाई......
भाई मैं तो ऐसे पत्रकारों को झोलाछाप ही कहूँगी क्योंकि पत्रकार के साथ फर्जी शब्द सही नहीं होता।चलिए साहब जब कलम तैयार है तो आ जाते है असली मुद्दे पर। आजकल पत्रकारिता क्षेत्र में कुछ ऐसे लोगों की बहार आ गयी है जो व्हाट्सऐप पर ही पत्रकार-पत्रकार खेलते हैं। अभी कुछ दिन पहले मेरे एक मित्र ने किसी अनजान व्यक्ति से पूछा की भाई आप किस मीडिया हाउस में जुड़े हो, उस बन्दे ने कहा मै व्हाट्सएप्प पत्रकार हूँ। अब ये व्हाट्सएप्प पत्रकार क्या होता है मैं खुद नहीं जानती। मगर कोशिश कर रहीं हूं पता करूं कि ये कौन सी नई प्रजाति की पत्रकारिता है।
आज कल पत्रकारिता का स्तर इतना गिर गया है कि पुरूष तो पुरूष अब तो कुछ महिलायें भी पत्रकार होने का दावा कर व्हाट्सऐप पर पहले आपको पिया बना लेंगी, और व्हाट्सऐपीया प्यार के साथ आपसे पिया-पिया खेलती हैं। अपनी रिझाने वाली हरकतों से पत्रकारिता को बदनाम करती हैं। बिलकुल अचंभित न हो आप, जब केवल एक दिन की व्हाट्सऐप चैटिंग में ही वो आपको आई लव यू बोलकर आपको रिझाये, फिर आपसे कहे कि मेरे यहाँ नेट पैक नहीं मिल रहा, फिर आप स्वयं तत्काल उनका मोबाइल रिचार्ज करवा दे, उसके बाद आपके खुद के ग्रुप में जुड़ने के लिए वो शर्त रखे कि मुझको एडमिन दें आप। जैसे ही आपने एडमिन दिया वो तत्काल आपके कांटेक्ट चुरा कर उसमें से आपके करीबियों को रिमूव कर देंगी और फिर आप उनके हाथ की कठपुतली बन गए। आपके भेजे मैसेजों के आधार पर आपको बदनाम करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल करेंगी।
दूसरी तरफ कुछ लोग तो ऐसे हैं जो 1000 रूपये लेकर किसी के ऊपर भी पत्रकार का ठप्पा लगा दे रहे हैं। आप को बता दूँ अभी कुछ दिन पहले मेरी बाजार में एक मुँह बोले भाई से मुलाकात हुई। मुझसे पूछे बहन तुम किस मीडिया से हो मैने कहा मैं फलनवा मीडिया हाउस से हूँ। फिर बड़ा रौब के साथ ऐंठ कर कहा मैं भी पत्रकार हूँ इस ढिमका मीडिया हॉउस से 1000 रुपये में प्रेस कार्ड बनाया हूँ और कई और का भी प्रेस कार्ड बनवाया हुआ है। आप भी हमसे जुड़ जाओ। मैंने कहा भाई मुझे माफ़ करो मैं बहुत छोटी सी कलमकार हूं, मुझको बड़ी पत्रकार नहीं बनना है । फिर चलते चलते मेरे उस भाई ने मेरा विजिटिंग कार्ड माँग लिया बोला मेरी गाड़ी अगर पकड़ गयी तो कॉल करूँगा। मैं उसकी बातें सुनकर हक्का बक्का हो गयी, अरे भाई ये मेरा विजिटिंग कार्ड है कोई ग्रीन कार्ड नहीं है जो गाड़ी छूट जायेगी।
अब मुझे समझ आ रहा है कि आजकल पत्रकारिता में ऐसे झोलाछाप पत्रकारों की भीड़ क्यों आ गयी है और आजकल एक रोड साइड रोमियो, ऑटो रिक्शा वाला, चाय वाला, पान वाला और सब्ज़ी वाला तक पत्रकार क्यों बना जा रहा। ऐसे लोग प्रेस कार्ड दिखाकर अपनी दबंगई झाड़ रहे हैं और पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं।पत्रकार सच का आईना दिखाता है। पत्रकार सच का साथ देता है। पत्रकारिता के बल पर ही हम हिंदुस्तानी अंग्रेज़ों की गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद हुए थे। तो साहब जी यूँ पत्रकारिता को बदनाम न कराे, कोई दूसरा धंधा देख लो भाई......