खरी खरी – पत्रकारिता भी है अजीब धंधा, क्रिमिनल बन जाये शरीफ बंदा
कानपुर 14 जुलाई 2016. भाई हम तो खरी
खरी कहते हैं. आपको
बुरी लगे तो मत पढ़ो, कोई जबरदस्ती तो है
नहीं।
वो क्या है न की जैसे पहले कोई भी कुकर्म करने के बाद गंगा स्नान करने से सारे पाप धुल जाते थे, अब वही काम
पत्रकार बनने से हो जाता है। नहीं समझे आप ?? चलो कोई नहीं,
हम
समझाये देते हैं।
आप चोर हों, उठाईगीर हों, ठग हों या स्मैक बेचते हों. जब आपका मन करे की बस भाई बहुत हुआ अब अपने को भी वाइट कालर, बुद्धिजीवी, शरीफ बंदा बनना है तो आपके लिए सीधा और आसान रास्ता है की आप एक 10-20 हज़ार का कैमरा खरीदिए, एक एंड्राइड मोबाइल खरीदिए और अपनी बाइक या कार पर बड़ा बड़ा PRESS लिखवाइये और बन जाइये बुद्धिजीवी पत्रकार। भले ही आप हाईस्कूल पास न हों, आपको न्यूज़ सेंस हो या न हो, आप खबर लिख पाते हों या नहीं इससे कोई लेना देना नहीं है। बस आपको भोकाल बनाना और दलाली करना आना चाहिए, फिर देखिये कैसे आपका 2 नंबर का धंधा भी चलता रहेगा और आप वाइट कालर भी बने रहेंगे।
आप सोच रहे
होंगे कि बैठे बिठाये हम ये नया फितूर कहां से ले आये, पर भाई जी बात कुछ एैसी है
कि कुछ दिन पहले एक दरोगा जी हमारे कार्यालय आये थे. कहने लगे कि संपादक जी, आपका
भी बढिया है, जब चाहे जिसे चाहे एक कार्ड बना दिया और वो बन गया पत्रकार। न कोई डिग्री
जरूरी न कोई जांच. बस आपने पैदा किया और बिठा दिया हमारे सर पर. हर एैरा-गैरा चला
आता है लिये कैमरा, क्या किया क्यों किया सब बताओ साहब बहादुर को. जैसे कहीं के
कलेक्टर लगे हों।
दरोगा जी बताने
लगे कि एक हैं जो जमीनों पर कब्जा करवाते हैं, एक हैं जो स्मैक बिकवाते हैं, एक हैं
जो ठेले वालों से हफ्ता वसूलते है और एक तो सबसे आगे हैं वो कालगर्ल सप्लार्इ
कराते हैं, पर बने सब हैं एकदम झकाझक सफेद कालर वाले पत्रकार. छोटा मोटा डग्गा तो
सभी लेते हैं पर कुछ चपडगंजुओं ने तो नाक में दम ही कर रखा है. दरोगा जी इन
तथाकथित पत्रकारों से इतने दुखी थे कि बेचारे रोंआसें हो गये अपनी व्यथा बताते
बताते। हमने दरोगा जी को समझा बुझा कर विदा तो कर दिया, पर हमारे दिमाग में सवाल
कुलबुलाने लगा कि समाज की गंदगी साफ करने का ठेका लेने से पहले हमको अपने बीच की
गंदगी साफ करनी होगी।
पर समस्या ये है
कि बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन ????
आप का क्या विचार है, आप बांधोगे घण्टी ????????????