हमने शैतान को समझा था मसीहा अपना, अब तो शैतान को शैतान ही कहना होगा
नई दिल्ली 20 जुलाई 2016 (INVC). पिछले हफ्ते आतंकी बुरहान की मौत के बाद जम्मू कश्मीर के कुछ इलाकों में जिस तरह के हिंसक घटनाए हो रही हैं क्या वह इस्लाम का असली चेहरा हैं? आतंकी बुरहान राजधानी श्रीनगर से ५० किलोमीटर दूर अरिगाम नामक गाँव, जिसे अब कश्मीरियत के हत्यारों ने शरीफाबाद नाम दिया है से ताल्लुक रखता है.
इसका पूरा परिवार ज़मात-ए-इस्लाम के कट्टर विचारों से प्रभावित था जिस पर वर्तमान शोसल मिडिया का मुल्ल्म्मा चढ़ा हुआ था, घाटी का यह गद्दार युवा भटका हुआ नही बल्कि जैसा उसे जन्म देनेबाली मां कहती है की इस्लाम की राह में काफिरों से लड़ने वाला बेटा था.उसी घृणित शिक्षा का आतंकी स्वरूप है जिसे उस गद्दार की मां इस्लाम कहती है. उस गदार के जनाजे में जो लोग शामिल था क्या वह इस्लाम को मानने बाला नही था?कश्मीर के कुछ भागों में यदि गैर इस्लामी वासिंदे होते तो आज उनकी क्या स्थिति वहाँ होती?क्या जम्मू कश्मीर में कश्मीरियत की मासूमियत को इस्लाम ने नहीं लील रखा है? क्या जम्मू कश्मीर में वहाँ की इंसानियत को इस्लाम की हैवानियत ने नहीं निगल रखा है? जो लोग जम्मू कश्मीर में जम्हूरियत की बात करता है क्या उसे ज्ञात नही की इस्लाम में जम्हूरियत की कोई गुन्जाईस नही है? जो लोग जम्मू कश्मीर में कश्मीरियत,जम्हूरियत और इंसानियत की बात इस्लाम के वर्तमान स्वरूप में करना चाहता. वह जम्मू कश्मीर को आतंकी इस्लामियो का गढ़ बनाने का राह आसान कर रहा है? किसी कवि ने ठीक ही लिखा है -
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट माने तो इस समय घाटी में १७९ आतंकी सक्रीय है जिसमे ३६ पाक के तो १४३ कश्मीर के ही है.हिजबुल राज्य में सबसे सक्रिय आतंकी संघठन है.और यह शोशल मिडिया पर ज्यादा सक्रीय रहता है आतंकी बुरहान की मां की यह आतंकी इस्लामी सोच की –“मेरा बेटा इस्लाम की राह में काफिरों से लड़ते शहीद हुआ है”इस्लाम की बर्बर तस्वीर पेश करने के लिए यह काफी है? उसी घाटी में मां अपने बेटों को देश के सुरक्षाबलों पर पत्थरों मारने की शिक्षा देती है वैसे में वहाँ के युवक आतंकी नहीं तो क्या देश भक्त बनेगे.जिस पेड़ की जड़ में ही मठ्ठा डाला जा रहा हो उस पेड़ से हरियाली कब तक? जिस बेटे की मां ही बेटे को इस्लाम के नाम पर आतंकी बनाने की चाहत रखती हो वहाँ बुरहान जैसा ही समाज का नासूर पैदा होगा? १९४७ में इसी इस्लाम के नाम पर भारत के दोनों बाजू कटे थे फिर भी नेहरूवियन सत्तालोलुपों ने जिहादी तत्वों को नही समझा? जो लोग भारत में गंगा यमुना तहजीब के नाम पर गला फाड़ फाड़ चिल्लाते रहता वह जम्मू कश्मीर में गंगा यमुना तहजीब क्यों भूल जाता है? भारतीय मिडिया के कुछ तबको ने जिस तरह से आतंकी बुरहान को अपना पोस्टर बनाया वह निंदनीय और चिंतनीय है.कुछ मिडिया घरानों ने आतंकी के जनाजे में जो भीड़ थी उसे अपना वाल पेपर लगा अपनी देशभक्ति का जो परिचय दिया वह लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक है.और ऐसे मीडिया घरानों देश की कीमत पर अपने आप को स्थापित करने का जो घृणित प्रयास किया वह आतंकियो की सोच से भी ज़्यादा घातक है.
भारत में देशद्रोहियो का चिंतन आज़ादी के बाद से नेहरु चिंतन से प्रभावित रहा जहां भारतीयता को कुचल पैसा ही सर्वोपरि होता रहा है और ऐसे सोच से पीड़ित संस्थान, देश और समाज का सबसे बड़ा दुश्मन होता है.नेहरूवियन संस्कृति में पला बढे ऐसे घातक सोच के पत्रकार हम भारतीय जनमानस को जिस सोच में ढालना चाहती है उसी की आग में आज जम्मू कश्मीर का कुछ भाग जल रहा है. देश की राजधानी में तथाकथित सेकुलरों और वामपंथियो का मक्का जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय ने जम्मू कश्मीर के दस लाख इनामी आतंकी बुरहान वानी के मौत पर जो स्यापा किया वह एक बार फिर इस शिक्षण संस्थान के मुख पर कालिख पोत दिया.वहाँ के वामपंथी छात्र संगठन की उपाध्यक्ष रेहला के विष बुझे बोल और उमर खालिद के फेसबुक पर उकेरे सोच दोनों देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है.दोनों की सोच ऐसा लगा मानो जेएनयू आतंकी संघठन हिजबुल मुजाहोइदीन के तालीम का पैरोकार हो . मुज़फ्फराबाद में हिजबुल मुजाहिदीन का खूंखार आतंकी और प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन और दुसरे आतंकी संगठन ज़मात उल दावा के आतंकी हाफ़िज़ सईद ने दोनों ने बुरहान के मौत का मातम मनाया और कहा की –“पाकिस्तान को इस मौके का फैदा उठाना चाहिए चाहिए”ये आतंकी संघठन जानते हैं की भारत में ही कविता कृष्णन,रेहला शाहिद जैसे विष कन्या जब उपलब्ध है तो ऐसे मे अगर अगर पाकिस्तान का सहारा मिले तो इन इस्लामी आतंकियो की बांछे खिल सकती है.इतना ही नही भारत में ही जिसे अलगाववादी नेता?के रूप में भारत सरकार खैरात में उसकी खिदमतगारी करती वास्तव में वही आस्तीन का साप है.इन सपोलो को पालने के बजाय कुचलना देशहित के लिए समीचीन है.
कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन का खूंखार आतंकी और इसके कमांडर बुरहान वानी के मौत पर नवाज सरकार ने जो टिप्पणी की वह घोर निंदनीय और अस्वीकार्य है उसने कहा –“कश्मीरी नेता बुरहान वानी समेत घाटी के अन्य नागरिकों के भारतीय सेना और पैरामिलिटरी फोर्सेज के हाथों मारे जाने पर पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री को गहरा सदमा लगा है.”इतना ही नही आतंकियो का मक्का-मदीना इस्लामवाद विश्व में इस्लाम के नाम पर किये जाने बाले दहशतगर्द का ज़मज़म है.आतंकियो का सरताज पाकिस्तानी सरकार जम्मू कश्मीर मामले पर अपने देश में सेना के हाथों की कठपुतली संसद के संयुक्त सत्र को बुला 19 जुलाई 16 को काला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है?भारत के संप्रभु भाग जम्मू कश्मीर पर नापाक पाकिस्तान किस हैसियत से अपना संसद की सत्र आहूत कर रही है?इस्लाम का क्रूरतम चेहरा आज विश्व के समक्ष पाकिस्तान का आ गया जो बुरहान जैसा खूंखार आतंकी में उसे नेता का अक्स दीखता ?सिंध,बलूचिस्तान के निरीह नागरिको पर वायुसेना से हमला करने वाला मानवता का दुश्मन पाकिस्तान किस मुंह से मानवाधिकार की बात करता है. लाखो बलूची बच्चो का अपहरण कर उसके साथ शारीरिक शोषण कर मौत का घाट उतारने वाला पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तान की सरकार किस मानवता की बात करता है? उमार अब्दुल्ला का ट्विट – बुरहान ना तो पहला है ना आखिरी . बुरहान अपनी कब्र से युवाओं को आतंक की और आकर्षित करता रहेगा.उमर अब्दुल्ला का यह सोच उसी इस्लामी सोच की एक कड़ी है जिसकी आग में अमनपसंद जम्मू कश्मीर को उसके दादा ने झोंक रखा था और फारुख हो या उमर दोनों ने उस आग को अब भी जलाए रखा है?आज त्राल भारत का कंधार बना हुआ है.दक्षिणी कश्मीर में क्रिकेट युवाओं के वीच काफी लोकप्रिय है किन्तु क्रिकेट के टीमो का नाम आतंकियो के नाम पर है जैसे आबिद खान कल्न्दर्स बुरहान लायंस खालिद आयंस.ये सब जम्मू कश्मीर में सिर्फ इसलिए होता रहा क्योंकि वह भाग पूर्णत:इस्लाम मानने बाले लोगो से घिरा है.कभी घाटी पंडितों के किल्कारिओं से गुंजायमान था किन्तु जैसे जैसे क्रूर इस्लाम का पंजा इन पंडितों को लीलता गया वहाँ की वादियों से मंदिरों के घंटे गायव होते गये और मस्जिदों की अजाने काफिरों पर कहर बन कर टूटता गया जो आज भी बदस्तूर ज़ारी है.इस सन्दर्भ में हमें यह पंक्तिया बहुत कुछ कहती है-
इसका पूरा परिवार ज़मात-ए-इस्लाम के कट्टर विचारों से प्रभावित था जिस पर वर्तमान शोसल मिडिया का मुल्ल्म्मा चढ़ा हुआ था, घाटी का यह गद्दार युवा भटका हुआ नही बल्कि जैसा उसे जन्म देनेबाली मां कहती है की इस्लाम की राह में काफिरों से लड़ने वाला बेटा था.उसी घृणित शिक्षा का आतंकी स्वरूप है जिसे उस गद्दार की मां इस्लाम कहती है. उस गदार के जनाजे में जो लोग शामिल था क्या वह इस्लाम को मानने बाला नही था?कश्मीर के कुछ भागों में यदि गैर इस्लामी वासिंदे होते तो आज उनकी क्या स्थिति वहाँ होती?क्या जम्मू कश्मीर में कश्मीरियत की मासूमियत को इस्लाम ने नहीं लील रखा है? क्या जम्मू कश्मीर में वहाँ की इंसानियत को इस्लाम की हैवानियत ने नहीं निगल रखा है? जो लोग जम्मू कश्मीर में जम्हूरियत की बात करता है क्या उसे ज्ञात नही की इस्लाम में जम्हूरियत की कोई गुन्जाईस नही है? जो लोग जम्मू कश्मीर में कश्मीरियत,जम्हूरियत और इंसानियत की बात इस्लाम के वर्तमान स्वरूप में करना चाहता. वह जम्मू कश्मीर को आतंकी इस्लामियो का गढ़ बनाने का राह आसान कर रहा है? किसी कवि ने ठीक ही लिखा है -
जान से बढ़कर जिसे चाहा था मैंने उम्र भर।
मुझको क्या मालुम था वो बेवफा हो जाएगा।।
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट माने तो इस समय घाटी में १७९ आतंकी सक्रीय है जिसमे ३६ पाक के तो १४३ कश्मीर के ही है.हिजबुल राज्य में सबसे सक्रिय आतंकी संघठन है.और यह शोशल मिडिया पर ज्यादा सक्रीय रहता है आतंकी बुरहान की मां की यह आतंकी इस्लामी सोच की –“मेरा बेटा इस्लाम की राह में काफिरों से लड़ते शहीद हुआ है”इस्लाम की बर्बर तस्वीर पेश करने के लिए यह काफी है? उसी घाटी में मां अपने बेटों को देश के सुरक्षाबलों पर पत्थरों मारने की शिक्षा देती है वैसे में वहाँ के युवक आतंकी नहीं तो क्या देश भक्त बनेगे.जिस पेड़ की जड़ में ही मठ्ठा डाला जा रहा हो उस पेड़ से हरियाली कब तक? जिस बेटे की मां ही बेटे को इस्लाम के नाम पर आतंकी बनाने की चाहत रखती हो वहाँ बुरहान जैसा ही समाज का नासूर पैदा होगा? १९४७ में इसी इस्लाम के नाम पर भारत के दोनों बाजू कटे थे फिर भी नेहरूवियन सत्तालोलुपों ने जिहादी तत्वों को नही समझा? जो लोग भारत में गंगा यमुना तहजीब के नाम पर गला फाड़ फाड़ चिल्लाते रहता वह जम्मू कश्मीर में गंगा यमुना तहजीब क्यों भूल जाता है? भारतीय मिडिया के कुछ तबको ने जिस तरह से आतंकी बुरहान को अपना पोस्टर बनाया वह निंदनीय और चिंतनीय है.कुछ मिडिया घरानों ने आतंकी के जनाजे में जो भीड़ थी उसे अपना वाल पेपर लगा अपनी देशभक्ति का जो परिचय दिया वह लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक है.और ऐसे मीडिया घरानों देश की कीमत पर अपने आप को स्थापित करने का जो घृणित प्रयास किया वह आतंकियो की सोच से भी ज़्यादा घातक है.
भारत में देशद्रोहियो का चिंतन आज़ादी के बाद से नेहरु चिंतन से प्रभावित रहा जहां भारतीयता को कुचल पैसा ही सर्वोपरि होता रहा है और ऐसे सोच से पीड़ित संस्थान, देश और समाज का सबसे बड़ा दुश्मन होता है.नेहरूवियन संस्कृति में पला बढे ऐसे घातक सोच के पत्रकार हम भारतीय जनमानस को जिस सोच में ढालना चाहती है उसी की आग में आज जम्मू कश्मीर का कुछ भाग जल रहा है. देश की राजधानी में तथाकथित सेकुलरों और वामपंथियो का मक्का जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय ने जम्मू कश्मीर के दस लाख इनामी आतंकी बुरहान वानी के मौत पर जो स्यापा किया वह एक बार फिर इस शिक्षण संस्थान के मुख पर कालिख पोत दिया.वहाँ के वामपंथी छात्र संगठन की उपाध्यक्ष रेहला के विष बुझे बोल और उमर खालिद के फेसबुक पर उकेरे सोच दोनों देश की एकता और अखंडता के लिए घातक है.दोनों की सोच ऐसा लगा मानो जेएनयू आतंकी संघठन हिजबुल मुजाहोइदीन के तालीम का पैरोकार हो . मुज़फ्फराबाद में हिजबुल मुजाहिदीन का खूंखार आतंकी और प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन और दुसरे आतंकी संगठन ज़मात उल दावा के आतंकी हाफ़िज़ सईद ने दोनों ने बुरहान के मौत का मातम मनाया और कहा की –“पाकिस्तान को इस मौके का फैदा उठाना चाहिए चाहिए”ये आतंकी संघठन जानते हैं की भारत में ही कविता कृष्णन,रेहला शाहिद जैसे विष कन्या जब उपलब्ध है तो ऐसे मे अगर अगर पाकिस्तान का सहारा मिले तो इन इस्लामी आतंकियो की बांछे खिल सकती है.इतना ही नही भारत में ही जिसे अलगाववादी नेता?के रूप में भारत सरकार खैरात में उसकी खिदमतगारी करती वास्तव में वही आस्तीन का साप है.इन सपोलो को पालने के बजाय कुचलना देशहित के लिए समीचीन है.
कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन का खूंखार आतंकी और इसके कमांडर बुरहान वानी के मौत पर नवाज सरकार ने जो टिप्पणी की वह घोर निंदनीय और अस्वीकार्य है उसने कहा –“कश्मीरी नेता बुरहान वानी समेत घाटी के अन्य नागरिकों के भारतीय सेना और पैरामिलिटरी फोर्सेज के हाथों मारे जाने पर पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री को गहरा सदमा लगा है.”इतना ही नही आतंकियो का मक्का-मदीना इस्लामवाद विश्व में इस्लाम के नाम पर किये जाने बाले दहशतगर्द का ज़मज़म है.आतंकियो का सरताज पाकिस्तानी सरकार जम्मू कश्मीर मामले पर अपने देश में सेना के हाथों की कठपुतली संसद के संयुक्त सत्र को बुला 19 जुलाई 16 को काला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है?भारत के संप्रभु भाग जम्मू कश्मीर पर नापाक पाकिस्तान किस हैसियत से अपना संसद की सत्र आहूत कर रही है?इस्लाम का क्रूरतम चेहरा आज विश्व के समक्ष पाकिस्तान का आ गया जो बुरहान जैसा खूंखार आतंकी में उसे नेता का अक्स दीखता ?सिंध,बलूचिस्तान के निरीह नागरिको पर वायुसेना से हमला करने वाला मानवता का दुश्मन पाकिस्तान किस मुंह से मानवाधिकार की बात करता है. लाखो बलूची बच्चो का अपहरण कर उसके साथ शारीरिक शोषण कर मौत का घाट उतारने वाला पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तान की सरकार किस मानवता की बात करता है? उमार अब्दुल्ला का ट्विट – बुरहान ना तो पहला है ना आखिरी . बुरहान अपनी कब्र से युवाओं को आतंक की और आकर्षित करता रहेगा.उमर अब्दुल्ला का यह सोच उसी इस्लामी सोच की एक कड़ी है जिसकी आग में अमनपसंद जम्मू कश्मीर को उसके दादा ने झोंक रखा था और फारुख हो या उमर दोनों ने उस आग को अब भी जलाए रखा है?आज त्राल भारत का कंधार बना हुआ है.दक्षिणी कश्मीर में क्रिकेट युवाओं के वीच काफी लोकप्रिय है किन्तु क्रिकेट के टीमो का नाम आतंकियो के नाम पर है जैसे आबिद खान कल्न्दर्स बुरहान लायंस खालिद आयंस.ये सब जम्मू कश्मीर में सिर्फ इसलिए होता रहा क्योंकि वह भाग पूर्णत:इस्लाम मानने बाले लोगो से घिरा है.कभी घाटी पंडितों के किल्कारिओं से गुंजायमान था किन्तु जैसे जैसे क्रूर इस्लाम का पंजा इन पंडितों को लीलता गया वहाँ की वादियों से मंदिरों के घंटे गायव होते गये और मस्जिदों की अजाने काफिरों पर कहर बन कर टूटता गया जो आज भी बदस्तूर ज़ारी है.इस सन्दर्भ में हमें यह पंक्तिया बहुत कुछ कहती है-
हमने शैतान को समझा था मसीहा अपना।
अब तो शैतान को शैतान ही कहना होगा।।
अब तो शैतान को शैतान ही कहना होगा।।
लेखक परिचय :-
संजय कुमार आजाद
(आप स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं )
संजय कुमार आजाद
(आप स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं )
पता : शीतल अपार्टमेंट,निवारणपुर रांची 834002
ईमेल —
azad4sk@gmail.com , फोन–09431162589
(लेख में
व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और खुलासा टीवी का इससे सहमत होना आवश्यक
नहीं है)
परिचय :-
संजय कुमार आजाद
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संजय कुमार आजाद
स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं - See more at: http://www.internationalnewsandviews.com/%e0%a4%b9%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b6%e0%a5%88%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a4%9d%e0%a4%be-%e0%a4%a5%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a4%b8%e0%a5%80%e0%a4%b9/#sthash.w6XxcCLu.dpuf