खरी खरी – खाकी वर्दी की आड़ में, करी कमाई कबाड़ में
कानपुर 29 अगस्त 2016. भाई हम तो खरी खरी कहते हैं आपको बुरी लगे तो मत सुनो, कोई जबरदस्ती तो है नहीं। आज का मामला साउथ के एक थाने का है यहाँ एक ख़ास सिपाही महोदय का ऐसा जलवा कायम है कि उसके सामने SO साहब भी फीके नज़र आते हैं। ये सिपाही महोदय थाने की जीप लेकर बेफिजूल में सुबह सुबह पान खाने और चाय पीने निकल जाते हैं, पूछने पर कहते हैं मैं चाहे जो करूं मेरी मर्जी ।
अब इनसे कौन कहे की भाई डीजल क्या आपके चाचा डलवा के दिए हैं। मगर क्या मजाल जो SO साहब इनको ज़रा भी डांट दें। कारण स्पष्ट है कि सारी लेनदेन इन्हीं सिपाही महोदय के द्वारा की जाती है। अब अगर ये नाराज हो गये तो लाखों का नुकसान कौन झेलेगा?? उस पर सुना है कि अगले की पहुँच बहुत ऊपर तक है। एक ठो खास बात और बताते हैं आपको, इन साहब ने थाने में कबाड पडे वाहनों की नीलामी की सूचना जुगाड़ से ऐसे पेपर में छपवाई जिसको केवल इनके एक खास चेले ने ही पढ़ा और नियम कानूनों की मदर सिस्टर करके सारे वाहन औने पौने में खरीद लिए। पर एक बात साफ साफ समझ लेओ भइया हम ये नहीं कह रहे कि इसमें कोई गोल माल किया गया, अगर आपको ऐसा लग रहा है तो ये आपकी समझ का फेर है। ऐसे स्पेशल वाले चमचे सिपाही जब तक कमाऊ पूत बने रहते है तब तक तो साहब लोगों को बहुत सुहाते हैं पर जब ये ही कोई बडा रायता फैला देते हैं और साहब जी की कुर्सी खतरे में पड़ जाती है तब साहब जी आठ आठ आंसू रोते फिरते हैं।
इसी बात पर अर्ज किया है -
ठेंगा इनको दिखा-दिखाकर, मौज मारते डाकू।
हावी इनके पिस्तौलों पर, गुंडों के छोटे चाकू।।
कलम की ताकत नहीं समझते भूसा भरे दिमाग़।
लगा रहे हैं नादानी वश पानी में भी आग।।
बेलगाम वर्दीधारी सब सुन लें मेरी बात।
जनता ने तो हिटलर तक को दे मारी थी लात।
खुद को खुदा समझने वाले तेरी क्या औकात।।
बाकी भाई हम तो खरी खरी कहते हैं आपको बुरी लगे तो मत सुनो, कोई जबरदस्ती तो है नहीं।