11 सरपंचों ने कहा कि भुगतान नहीं हुआ तो कर लेंगें एकसाथ खुदकुशी
छत्तीसगढ़ 14 सितंबर 2016 (जावेद अख्तर). प्रधानमंत्री मोदी की स्वच्छ भारत योजना के अंतर्गत तयशुदा समय में शौचालय का निर्माण पूरा करवाने के बढ़ते दबाव के बीच छत्तीसगढ़ के कई गांवों के सरपंच बुरी तरह से परेशान हैं। कई सरपंच तो कर्ज के जाल में ऐसे फंस गए हैं कि उन्हें सूद यानि ब्याज़ तक भरना पड़ गया है और कई सरपंच बढते ब्याज के कारण लेनदारों से हलाकान हैं।
हमने रखी लाज, हमारी ही दुर्गति हो रही आज -
सरपंचों का कहना है कि हमने स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए अपने खेतों को व स्वर्ण आभूषणों को गिरवी रख दिया, हैसियत नहीं होने के बावजूद भी बीसों लाख का कर्ज़ा चढ़ा लिया ताकि योजना को तय समय-सीमा मेें पूर्ण किया। मगर आज सबसे अधिक दुर्गति हमारी ही हो रही है और हम लेनदारों व दुकानदारों से लगातार अपमानित हो रहे हैं। बावजूद इसके केन्द्र व राज्य सरकार हमें एक वर्ष से आश्वाासन का झूठा झुनझुना पकड़ाती आ रही है, जबकि हमने ही योजना की लाज रखी और आज हमारी सुनवाई ही नहीं की जा रही है, हम सरपंच हैं या भिखारी, यह तो स्पष्ट कर ही दें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
केंद्र व राज्य सरकार, प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान को पूरा करने के लिए विभागीय अधिकारियों व सरपंचों पर राशन पानी लेकर सीने पर चढ़ बैठे, बेचारे सरपंचों की हालत धोबी के गधे से भी गई गुज़री हो चुकी है, क्योंकि अपनी सरपंची बचाने व ब्लैक सूची मेें न डाले जाने के भय से अच्छा खासा कर्ज़ा ले लिया क्योंकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि स्वच्छ भारत अभियान को तहत बनने वाले शौचालयों का भुगतान जल्द ही कर दिया जाएगा इसलिए शौचालयों के निर्माण मेें लापरवाही न बरतें और जल्द से जल्द गांव को ओडीएफ श्रेणी मेें पहुंचाने की कोशिश करें, जिस पर छग मुख्यमंत्री डा रमन सिंह ने भी स्वच्छ भारत अभियान मेें तेज़ी लाने का आह्वान कर दिया और सबको फरमान जारी कर कहा गया कि जब तक गांव के गांव ओडीएफ श्रेणी मेें नहीं आ जाते तब तक कलेक्टर से लेकर चपरासी तक को अवकाश मेें भी कार्य करना है।
प्रधानमंत्री मोदी का आदेश व प्रदेश सीएम का आह्वान व फरमान ने सबके नट बोल्ट ढीले कर दिए, सबसे अधिक दबाव बना गांव के सरपंचों पर इसीलिए अपनी अपनी गर्दन बचाने के लिए तथा प्रदेश व केंद्र सरकार पर पूर्ण विश्वास कर उधार लेकर शौचालयों के निर्माण कार्य मेें तेज़ी ला दिए। ओडीएफ श्रेणी के गांवों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ने लगी मगर दूसरी ओर केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री ही योजना के तहत राशि के आंवटन मेें सुस्त होने लगे, कई सरपंचों को एक वर्ष से भी अधिक तो सैकड़ों सरपंचों को आठ नौ महीने बीतने को है और सभी सरपंच अपने अपने जिले के कलेक्टर, सीओ व प्रदेश मुख्यमंत्री जनदर्शन तक के पच्चीसों चक्कर काटने के बावजूद भी प्रस्तावित राशि का भुगतान नहीं किया गया है। जिससे लेनदारों ने सरपंचों का उठना बैठना, खाना पीना व जीना सबकुछ हराम करके रख दिया है, कई लेनदारों ने ब्याज़ वसूलना शुरू कर दिया और कई लेनदारों ने तो सरपंचों को धमकी देना शुरू कर दिया है।
देश के पहले प्रधानमंत्री जिनकी योजनाओं से डर लगने लगा -
पार्टी के ही व अन्य सैकड़ों से भी अधिक सरपंचों ने कहा कि मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं जिनकी योजनाओं से डर लगने लगा है क्योंकि अच्छे दिनों के वादे से पहले ही चुनावी जुमला बोलकर अपनी कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी व सत्य का मुजाहिरा करा ही चुके हैं। हम सभी ने अपने अपने तरीकों से कई बार सूचना भेज चुके हैं परंतु एक वर्ष से भी अधिक समय गुजरने के बाद भी न ही कोई सुनवाई हुई और न ही किसी भी प्रकार का उत्तर प्राप्त हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी की योजना भी चुनावी जुमला बन गई है।
11 सरपंचों ने दी एकसाथ खुदकुशी की धमकी -
प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के आदेशों का पूर्ण पालन करने का ईनाम हमें अपमान के रूप मेें मिल रहा है अधिकांश सरपंचों के साथ यही स्थिति बनी हुई है। इससे हलाकान व अत्यधिक परेशान होकर बस्तर के कांकेर जिले में स्थित 11 गांवों के सरपंचों ने आत्महत्या कर लेने की धमकी दे दी है। इन सरपंचों का कहना है कि अगर एक महीने के अंदर भुगतान नहीं किया जाता है, तो वे सभी एकसाथ खुदकुशी कर लेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी देश पर विचार करेंगें कब -
केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री मोदी के अतिरिक्त दबाव व राज्य शासन के अधिकारियों द्वारा तय की गई समय-सीमा के कारण इन सरपंचों ने शौचालय बनवाने के सामान से लेकर बाकी सारे काम के लिए कर्ज ले लिया। सरपंचों ने पैसा लेते समय वादा किया था कि जैसे ही जिला प्रशासन की ओर से शौचालय निर्माण के लिए फंड जारी कर दिया जाता है, वे कर्ज लौटा देंगे।
जमीनी हकीकत भयावह -
स्वच्छ भारत अभियान की जमीनी हकीकत कैसी है और केंद्र व राज्य सरकारें क्या कर रहीं हैं वह इससे समझ सकते हैं कि इन गांवों को हालांकि 4 महीने पहले ही खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया गया था, लेकिन आज दिनांक तक योजनान्तर्गत तय निर्माण राशि का भुगतान नहीं किया गया है जिसके चलते कर्ज नहीं लौटा पाने की शर्म के कारण इन सरपंचों का घर से निकलना दूभर हो गया।
सरपंच पर 23 लाख का है कर्ज़ा -
डोंगरकट्टा गांव के सरपंच महर उसेंडी ने बताया, मेरे गांव को 7 अप्रैल को (तकरीबन पांच माह पहले) ही खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया था। प्रशासन ने गांव में 299 शौचालयों के निर्माण की मंजूरी दी थी। मुझे जनपद सीईओ ने बताया था कि हर घर में एक शौचालय का होना अनिवार्य है। मैंने पाया कि गांव में 49 घर ऐसे हैं, जहां शौचालय नहीं हैं। मुझसे कहा गया कि मैं उन्हें शौचालय बनवाने का सामान मुहैया करा दूं। मुझे आश्वासन दिया गया कि भुगतान बाद में कर दिया जाएगा। पिछले एक साल से मेरे सिर पर 23 लाख का कर्ज है।
अब तो शर्म से डूब मरने की इच्छा होने लगी -
आगे वह बताते हैं कि कर्ज का पैसा मांगने वाले लेनदार और दुकानदार उनका लगातार पीछा करते रहते हैं। उन्होंने बताया 'इस ब्लॉक के 11 सरपंचों की यही हालत है तो सोचिए प्रदेश मेें जाने कितने ही सरपंच इस परिस्थियों का सामना कर रहें होंगें, यह दुखद है कि देश के प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री अपने लंबे चौड़े वायदों को भूल कर हम सभी को बेइज़्ज़त होने, गाली खाने व तिल तिल कर मरने के लिए छोड़ दिया है। सरपंचों ने कहा कि अब सब्र का बांध टूट रहा है अगर कर्ज लौटाने के लिए पैसा नहीं मिलता, तो क्या हमारे पास खुदकुशी करने के अलावा कोई और रास्ता है? एक सरपंच के लिए इतना अपमानित होना बेहद शर्मनाक है।
भाइसाकनहारी, डोंगरगांव, तिलहाथी, सेवारी और अतुलखर सहित 11 गांवों के सरपंचों की यही हालत है। ऐसी ही विषम व दुखदाई स्थिति छत्तीसगढ़ प्रदेश की राजधानी रायपुर के ग्रामीण क्षेत्रों तक मेें बनी हुई है, वहीं अन्य जिलों के ब्लाक व ग्राम पंचायतों मेें भी यही हालात बने हुए है, सरगुजा, बलरामपुर, दुर्ग, बिलासपुर, धमतरी, राजनांदगांव, कोरिया, कबीरधाम, महासमुंद से लेकर बस्तर, कोण्डागांव, जशपुर, भानुप्रतापपुर, केशकाल व कांकेर तक के गांवों के सरपंचों की ऐसी ही मरियल व शर्मनाक स्थिति बनी हुई है।
हम सब तो हैं निरे मूर्ख -
अधिकांश सरपंच इससे इतने अधिक परेशान हो रहें हैं कि उनमें से कुछेक सरपंचों ने कहा कि जिन सरपंचों को चाहे ब्लैक सूची मेें डाल दिया गया या शासन व विभाग द्वारा नोटिस भेजा गया इसके बावजूद भी शौचालयों की निर्माण सामग्री क्रय करने के लिए किसी से कर्ज नहीं लिया और न ही किसी दुकानदार से उधार लिया, वे ही अधिक सुखी है और वे ही बुद्धिमान है, कम से कम रोज़ शर्मिंदगी तो नहीं झेलनी पड़ रही है, लेनदारों की गाली तो नहीं खा रहे हैं सुबह दोपहर व शाम।