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अफसरों की अफसरगीरी ने ले ली जान, वेतन न मिलने से अध्यापक की मौत

छत्तीसगढ़ 15 अक्टूबर 2016 (जावेद अख्तर). दंतेवाड़ा जिले के कुआकोण्डा विकासखंड अंतर्गत शासकीय प्राथमिक शाला, सेमली में पदस्थ शिक्षक पोशण दीवान का शिक्षा विभाग द्वारा विगत दो वर्षों से वेतन रोके जाने के कारण वो जीवन यापन के लिए भोजन की व्यवस्था नहीं कर पा रहा था, जिसके चलते भूख से उसकी मौत हो गयी।
कांग्रेस ने समिति बनाकर की जांच -
भूख से हुई उनकी मौत को गंभीरता से लेते हुये प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने क्षेत्रीय विधायक देवती कर्मा के संयोजकत्व में 9 सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है। जांच समिति में दंतेवाड़ा विधायक देवती कर्मा, दंतेवाड़ा जिला कांग्रेस अध्यक्ष विमलचंद सुराना, प्रदेश प्रतिनिधि अवधेश सिंह गौतम, दंतेवाड़ा जिला प्रदेश उपाध्यक्ष शिवशंकर सिंह चैहान, कुआकोण्डा जनपद पंचायत अध्यक्ष मासे, कुआकोण्डा ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप गौतम, दंतेवाड़ा अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष मुकेश कर्मा, दंतेवाड़ा इंका नेता सावंत, गांजेनार इंका नेता अजय मरकाम शामिल है। जांच समिति के सदस्यों से कहा गया है कि, वे तत्काल घटना स्थल (ग्राम) का दौरा कर मृतक के परिजनों एवं ग्रामवासियों से भेंटकर घटना की वस्तुस्थिति से अवगत होवें तथा आवश्यक कार्यवाही करते हुये अपना प्रतिवेदन प्रदेश कांग्रेस को प्रेषित करें।
  
प्रदेश हो रहा शर्मसार -
एक माह के अंदर छत्तीसगढ़ में भूख से यह दूसरी मौत हुई है इसके पहले महासमुंद जिले में 8 माह से निराश्रित पेंशन नही मिलने के कारण एक बुजुर्ग की भूख से मौत हो गयी थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने आरोप लगाया कि वृद्ध रघुमणि हियाल की मौत के जिम्मेदार लोगो के खिलाफ भी रमन सरकार ने कोई प्रभावी कार्यवाही नही किया था। दुर्भाग्य से एक शिक्षक की भी भूख से मौत हो गयी। भूख से हुई इन दुर्भाग्यजनक मौतों ने प्रदेश को शर्मसार किया है।
     
सरकार उदासीन अफसर ले रहे जान -
यह घटना प्रदेश में शासन व प्रशासन व्यवस्था की पोल खोलकर आम जनता के सामने ला दिया है। प्रदेश में लगातार ऐसेे मामले सामने आ रहें हैं जिनमें विभागीय अफसर अपनी भर्राशाही व अफसरगीरी से लोगों को व तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों को परेशान करतें हैं, तबादला कर देंते हैं, झूठा आरोप लगाकर कानूनी मामले मेें फंसा दे रहे और निलंबन कर दे रहे। जिससे परिस्थियां इतनी भयावह बन जाती है कि पीड़ित खुद को फांसी पर लटका रहे या फिर भूख से जान चली जा रही है। विगत डेढ़ वर्षों में कई मामलों मेें ऐसी घटनाएं घट चुकीं है बावजूद इसके राज्य सरकार पूरी तरह उदासीन बनी हुई है, पीड़ितों की मुख्यमंत्री जनदर्शन तक मेें सुनवाई नहीं हो रही जिससे पीड़ित त्रस्त व हलाकान हो रहें हैं। मुख्यमंत्री आवास पर लगने वाले जनदर्शन में अधिकांश प्रकरण ऐसेे हैं जो कई वर्षों से लंबित सूची मेें पड़े रह गएं हैं और पीड़ित साल दो साल से मुख्यमंत्री जनदर्शन के चक्कर पर चक्कर ही काट रहें हैं।

मानवाधिकार व अन्य एनजीओ भी खामोश -
ऐसेे मामलों मेें न ही मानवाधिकार दखल दे रहा और न ही कोई गैर सरकारी संस्थाएं, सभी सरकार की उदासीता के बावजूद भी चुप्पी साधे हुए हैं और न ही अधिकारियों के खिलाफ़ कोई आवाज़ उठा रहे। जिससे स्थिति बिगड़ती जा रही है। जबकि एनजीओ का मुख्य उद्देश्य ही अन्याय व अवैधानिक प्रक्रियाओं के खिलाफ़ पीड़ित पक्ष के साथ खड़े होना और न्याय की लड़ाई में भूमिका अदा करना। मगर दुखद व दुर्भाग्यपूर्ण है कि एनजीओ ऐसी प्रक्रियाएं करने की बजाए अपना निजी हित साधने मेें लगी हुई है।