शासन प्रशासन विफल या अपराधी हुए निरंकुश, आज़ादी के 70 वर्ष बाद भी अपराधों पर नहीं लग रहा अंकुश
छत्तीसगढ़/ चिरमिरी 23 अक्टूबर 2016 (जावेद अख्तर). देश को आज़ादी मिले 70 वर्ष हो चुके हैं परंतु वास्तविकता के धरातल पर क्या वास्तव मेें वैसा ही परिणाम प्राप्त हुआ जैसा कि आज़ादी के दीवानों वीर शहीदों व क्रांतिकारियों ने सोचा व कहा था? काफी हद तक 'नहीं' ! कारण सैकड़ों है, जिनमें से एक कारण है अपराध।
यह जानकर आपको हैरानी होगी कि 70 वर्षों के बाद भी अपराधों पर कोई अंकुश नहीं लगाया जा सका और ना ही गंभीरतापूर्वक आज प्रयास किया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष वादों और दावों की जबरदस्त होड़ लगती है परंतु असलियत मेें यह सरकारी कागज़ों मेें दम तोड़ देती है। यह शासन प्रशासन की विफलता है या अपराधियों मेें कानून का भय कम हुआ है जिससे अपराधी निरंकुश हो गए। इस निरंकुश स्थिति पर अंकुश कब और कैसे लग सकेगा? यह एक पेचीदा सवाल देश की आम जनता के सिर पर लटक रहा है।
- प्रदेश विभाजन के 16 वर्ष बाद जिले में महिला, आदिवासी, दलित एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़नों के 1071 मामले हुए दर्ज.
- ग्रामीण अंचलों में जनपद पंचायत खड़गवां 682 मामलों के साथ पहले स्थान पर.
- शहरी क्षेत्रों में जिले का चिरमिरी नगर निगम 294 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर.
- ग्रामीण अंचलों में जनपद पंचायत खड़गवां 682 मामलों के साथ पहले स्थान पर.
- शहरी क्षेत्रों में जिले का चिरमिरी नगर निगम 294 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर.
शासन प्रशासन प्रयासरत -
प्रतिवर्ष अपराधों को रोकने के लिए राज्य सरकार, केंद्र सरकार सहित माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा बने हुए कानूनों में संशोधन एवं नए कानून बनाकर घटित अपराधों पर अंकुश लगाने की कोशिशें की जाती है। मध्यप्रदेश से वर्ष 2000 मेें अलग होकर नया राज्य छत्तीसगढ़ बना परंतु 16 वर्ष बीतने के बाद भी जिले में पुलिस विभाग द्वारा महिला उत्पीड़न, आदिवासी उत्पीड़न, दलित उत्पीड़न एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़नों के अलग अलग अपराधों सहित घटनाओं के 1071 मामले दर्ज किए हैं। वहीं जिले के शहरी क्षेत्रों की तर्ज़ पर ग्रामीण अंचलों में जनपद पंचायत खड़गवां 682 मामलों के साथ शीर्ष स्थान पर है तो शहरी क्षेत्रों में जिले का एक नगर निगम चिरमिरी 294 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर दिखाई दे रहा है। जबकि पुलिस विभाग सहित वर्तमान जनप्रतिनिधियों द्वारा इन अपराधों की रोकथाम के लिए अपनी पूरी ताकत लगाने की कोशिशें की जाती है। पुलिस विभाग द्वारा शहर के चौक चौराहों पर अपने सुरक्षा कर्मियों को लगाकर इन अपराधों के घटित होने से पहले रोकने की कोशिश की जाती हैं।
प्रतिवर्ष अपराधों को रोकने के लिए राज्य सरकार, केंद्र सरकार सहित माननीय सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा बने हुए कानूनों में संशोधन एवं नए कानून बनाकर घटित अपराधों पर अंकुश लगाने की कोशिशें की जाती है। मध्यप्रदेश से वर्ष 2000 मेें अलग होकर नया राज्य छत्तीसगढ़ बना परंतु 16 वर्ष बीतने के बाद भी जिले में पुलिस विभाग द्वारा महिला उत्पीड़न, आदिवासी उत्पीड़न, दलित उत्पीड़न एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़नों के अलग अलग अपराधों सहित घटनाओं के 1071 मामले दर्ज किए हैं। वहीं जिले के शहरी क्षेत्रों की तर्ज़ पर ग्रामीण अंचलों में जनपद पंचायत खड़गवां 682 मामलों के साथ शीर्ष स्थान पर है तो शहरी क्षेत्रों में जिले का एक नगर निगम चिरमिरी 294 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर दिखाई दे रहा है। जबकि पुलिस विभाग सहित वर्तमान जनप्रतिनिधियों द्वारा इन अपराधों की रोकथाम के लिए अपनी पूरी ताकत लगाने की कोशिशें की जाती है। पुलिस विभाग द्वारा शहर के चौक चौराहों पर अपने सुरक्षा कर्मियों को लगाकर इन अपराधों के घटित होने से पहले रोकने की कोशिश की जाती हैं।
सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था नहीं -
घने आबादी वाले एवं मुख्य चौक चौराहों पर बाहर से आने जाने वालों व अराजक तत्वों की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे का सहारा लिया जाता है। बावजूद इसके आज तक शहर सहित संपूर्ण जिले में न ही नगर सरकार एवं न ही जिला प्रशासन द्वारा इन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कोई ठोस एवं पुख्ता इंतेज़ाम किये है, सम्पूर्ण जिला आज भी सभी व्यवस्थाओं से अछूता नज़र आ रहा है। किसी भी चौक चौराहों पर आज दिनांक तक सीसीटीवी कैमरा नहीं लगाया गया है और न ही मुख्य मार्गों पर कोई दिशा निर्देश अंकित किये गए है जिससे जिले व शहर में बाहर से आने जाने वालों पर नज़र रखी जा सके।
घने आबादी वाले एवं मुख्य चौक चौराहों पर बाहर से आने जाने वालों व अराजक तत्वों की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे का सहारा लिया जाता है। बावजूद इसके आज तक शहर सहित संपूर्ण जिले में न ही नगर सरकार एवं न ही जिला प्रशासन द्वारा इन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कोई ठोस एवं पुख्ता इंतेज़ाम किये है, सम्पूर्ण जिला आज भी सभी व्यवस्थाओं से अछूता नज़र आ रहा है। किसी भी चौक चौराहों पर आज दिनांक तक सीसीटीवी कैमरा नहीं लगाया गया है और न ही मुख्य मार्गों पर कोई दिशा निर्देश अंकित किये गए है जिससे जिले व शहर में बाहर से आने जाने वालों पर नज़र रखी जा सके।
प्रमुख पर्व पर कैसे होगी निगरानी -
प्रति वर्ष जिला प्रशासन व शहर सरकार द्वारा दशहरा, दीपावली, होली, ईद जैसे बड़े पर्वों पर कुछ एक कार्य इन अपराधों को रोकने के लिए किए जाते है बाकि समय में संपूर्ण जिला मुंह चिढ़ाता नजर आता है परंतु बड़ा प्रश्न बना हुआ है कि एक वर्ष के दौरान कई बड़े पर्व होतें हैं जब शहर मेें आने जाने वालों की तादाद अधिकाधिक हो जाती है, ऐसेे भीड़ भाड़ मेें सभी पर निगरानी कैसे की जा सकती है?
प्रति वर्ष जिला प्रशासन व शहर सरकार द्वारा दशहरा, दीपावली, होली, ईद जैसे बड़े पर्वों पर कुछ एक कार्य इन अपराधों को रोकने के लिए किए जाते है बाकि समय में संपूर्ण जिला मुंह चिढ़ाता नजर आता है परंतु बड़ा प्रश्न बना हुआ है कि एक वर्ष के दौरान कई बड़े पर्व होतें हैं जब शहर मेें आने जाने वालों की तादाद अधिकाधिक हो जाती है, ऐसेे भीड़ भाड़ मेें सभी पर निगरानी कैसे की जा सकती है?
* क्या किसी बड़ी घटना का इंतेज़ार किया जा रहा है? या फिर हादसे के बाद ही सरकार व प्रशासन जागेगा?
* ये गंभीर विषय है लेकिन कितने मामलों में माननीय न्यायालय ने दोषी पाया है और कितने मामले गलत साबित हुए है इनकी जानकारी होना आवश्यक है, लोगों को कानून की जानकारी नहीं होने के कारण अपराधों में बढ़ोत्तरी हो रही है जिसको नियंत्रण करने की जरूरत है। - दीपक पटेल, प्रदेश उपाध्यक्ष भाजपा
* लोगों में जागरूकता का आभाव है जिस कारण अपराध बढ़ रहे है। हमारे इस छोटे से शहर में इतने मामलों का होना बड़ी बात है। की जा रही कोशिशों मेें कहीं न कहीं कुछ कमी रह जा रही है, जिसको दूर करना आवश्यक है एवं लोगों को अपराध करने से पहले उनके परिणामों की भी जानकारी जरूरी है। - के. डोमरू रेड्डी, महापौर नगर निगम चिरमिरी