सरकार व विभाग की लापरवाही का नतीजा, पहाड़ी के नीचे मिली खंडित गणेश प्रतिमा
छत्तीसगढ़ 28 जनवरी 2017 (जावेद अख्तर). छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में ढाई हजार फीट ऊंचाई पर ढोलकाल की पहाड़ी पर स्थित ऐतिहासिक गणेश प्रतिमा एकाएक गायब हो गई। बाद में पहाड़ी के नीचे खाई में यह प्रतिमा खंडित अवस्था में पाई। शुक्रवार को पहाड़ी के नीचे खण्डित अवस्था में भगवान गणेश की प्रतिमा प्राप्त होने के बाद पूरे क्षेत्र में हंगामा मच गया, तो वहीं मीडिया एवं सोशल मीडिया पर मामला उछला और छग सरकार की जमकर किरकिरी हुई। जिसके बाद आनन-फानन में पुलिस और प्रशासन की टीम मौके पर पहुंच कर प्रतिमा के नीचे गिरने के मामले की जांच करने में जुट गई है।
पुरातत्वविद शर्मा ने लगाए गंभीर आरोप -
इस बीच देश के वरिष्ठ पुरातत्वविद अरुण कुमार शर्मा ने आरोप लगाया है कि शासन, प्रशासन और पुरातत्व विभाग छग की ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है। गौरतलब है कि पुरातत्वविद शर्मा को बीते बुधवार को ही भारत सरकार द्वारा पुरातत्व के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री देने की घोषणा की गई है।
पहले ही जताई थी आशंका -
करीब एक हजार साल पुरानी अतिदुर्लभ गणेश प्रतिमा के नीचे गिरने और खण्डित होने की घटना पर पुरातत्वविद शर्मा ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि वे कुछ साल पहले ही मौके का अवलोकन कर यह आशंका जता चुके थे कि यह प्रतिमा कभी भी गिर सकती है।
कारण किया था स्पष्ट, परंतु सरकार लापरवाह -
अतिदुर्लभ प्रतिमा गिरने की वजह भी उन्होंने स्पष्ट रुप से बताई थी कि पहाड़ी के जिस बोल्डर पर यह प्रतिमा स्थापित है उसमें कई छोटी व बड़ी दरारें आ चुकी हैं, इसीलिए उन्होंने शासन प्रशासन को आस्था से जुड़ी प्रतिमा की सुरक्षा के मद्देनजर पहाड़ के बोल्डर की तत्काल मरम्मत करने का सुझाव दिया था। परंतु राज्य सरकार लापरवाह बनी रही। यह आस्था को कलंकित और धार्मिक विश्वास को ठेस पहुंचाने जैसा है। प्रत्येक वर्ष पुरातत्व विभाग को ऐतिहासिक धरोहरों की सुरक्षा, व्यवस्थित एवं संग्रहित करने तथा संग्रहालय में रखने के लिए बड़ा बजट दिया गया है और विभाग द्वारा बजट को खर्च भी किया गया। तो आखिरकार खर्च कहां किया गया है? इस पर छग राज्य सरकार को विचार करने की आवश्यकता है।
प्रतिमा के गिरने की घटना के बाद उन्होंने पुरानी बातों को दोहराते हुए कहा कि शासन, प्रशासन और पुरातत्व विभाग ने लगातार उनके सुझावों को अनदेखा किया है। प्रथम दृष्टया प्रतिमा गिरने की वजह चट्टान का जर्जर होकर खिसकाना प्रतीत होता है। साथ ही मौसम में आई नमी ने भी जर्जर चट्टान को और अधिक कमजोर कर दिया। पुरातत्वविद शर्मा कहते हैं कि जिस चट्टान पर यह प्रतिमा स्थापित थी उसकी ऊंचाई समुद्र तल से 2994 फीट थी। इतनी ऊंचाई पर पूरे देश में कहीं भी गणेश प्रतिमा स्थापित नहीं है।
सरकार व विभाग के दावे को किया खारिज -
पुरातत्वविद शर्मा ने प्रशासन के इस दावे को भी सिरे से खारिज कर दिया कि घटना में माओवादियों का हाथ हो सकता है। उनके मुताबिक नक्सलियों ने अब तक किसी देवी देवता की प्रतिमा को नुकसान नहीं पहुंचाया है। ऐसे में प्रशासन अपनी लापरवाही और नाकामी छिपाने के लिए नक्सलियों के नाम का सहारा ले रहा है।
भोरमदेव मंदिर भी डेंजर ज़ोन में -
शर्मा ने कहा कि उन्होंने कवर्धा जिले में स्थित ऐहितासिक भोरमदेव मंदिर को लेकर भी चेतावनी दी है। इस मंदिर में पत्थरों के बीच जगह-जगह पर कई दरारें पड़ रही हैं और ये दरारें धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो 4-5 वर्षों में भोरमदेव मंदिर के भी ढहने की आशंका है।