प्राइवेट खनन कंपनी को लाभ पंहुचाने के लिये डीएफओ ने चलवाई हज़ारों पेड़ों पर कुल्हाड़ी
छत्तीसगढ़ 21 फरवरी 2017 (जावेद अख्तर). बस्तर के कांकेर जिले में अंतागढ़ वन मंडल के अंतर्गत आने वाले मेटाबोदली इलाके के चारगांव में वन विभाग के वन मंडल अधिकारी ने प्राइवेट खनन कंपनी 'निको जायसवाल' को लाभान्वित करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए नियमों से परे जाकर हज़ारों हरे भरे वृक्षों की बलि चढ़ा दी।
भ्रष्ट व्यवस्था का बेजोड़ नमूना -
शिकायतकर्ता अब्दुल करीम ने लिखित में शिकायत कर मामले की जानकारी विभागीय उच्चाधिकारियों को दी। तत्पश्चात उच्चस्तरीय आदेश के बाद वन विभाग ने मौके पर जांच दल भेजकर पड़ताल की तो प्रथम दृष्टया पाया कि कंपनी ने गलत ढंग से लगभग चार हज़ार से भी अधिक हरे पेड़ों की कटाई कर दी है जिसकी अनुमति नहीं दी गई थी। शिकायतकर्ता ने स्पष्ट किया है कि अधिक पेड़ों की कटाई में मुख्य रुप से भानुप्रतापपुर के वनमंडलाधिकारी (डीएफओ) राम अवतार दुबे शामिल हैं क्योंकि जब पेड़ों की कटाई की जा रही थी उस समय डीएफओ स्वयं मौजूद थे। अंतागढ़ वन विकास निगम में कार्यरत रेंजर सोमदेव नायक का कहना है कि कंपनी की ओर से अब तक तीन हज़ार से भी ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं।
प्रबंध संचालक की रिपोर्ट से पुष्टि -
वन विकास निगम के अपर प्रबंध संचालक एस.सी. अग्रवाल ने छग शासन के मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) को भेजी एक रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी को जिस क्षेत्र का पट्टा स्वीकृत किया गया है उस सीमा क्षेत्र के बाहर जाकर न केवल पेड़ों की कटाई की गई है बल्कि वन मंडल अधिकारी ने तथ्यों को छिपाकर गंभीर अनियमितता बरती है, तथा छिपाने का प्रयास किया है। उक्त मामले में 'निको जायसवाल' की ओर से हरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के लिए प्रमुख रुप से 'डीएफओ राम अवतार दुबे' की संलिप्तता पाई गई।
लीज़ भूमि की जानकारी -
बस्तर के पश्चिम भानुप्रतापपुर वन मंडल के ग्राम मेटा बुंदेली चारगांव के कक्ष क्रमांक 426 पी (नया क्रमांक-पी/1305) एवं 427 पी (नया क्रमांक पी/1306) में खनन प्राइवेट कंपनी निको जायसवाल को '25 हेक्टयेर भूमि' 20 साल के लिए लीज पर दी गई है ।
अतिरिक्त खनन भूमि के लिए काटे हजारों पेड़ -
वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, खनन कंपनी को खनन के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता थीं, जिसके लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 1,447 (चौदह सौ सैंतालीस) पेड़ काटने की अनुमति दी। लेकिन कंपनी ने डीएफओ के साथ मिलकर निर्धारित संख्या से बहुत अधिक पेड़ काट दिए। काटे गए पेड़ों की गणना अभी भी जारी है, इसलिए यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कुल कितने पेड़ काटे गए हैं। वहीं वन विकास निगम ने जांच में प्रथम दृष्टया माना कि काटे गए पेड़ों की संख्या 3-4 हज़ार से भी अधिक हो सकती है।
वन अफसर (डीएफओ) ने छिपाए तथ्य -
निगम के अपर प्रबंध संचालक ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि अंतागढ़ के चारगांव में खनन का वह निर्धारित क्षेत्र, जो निको जायसवाल को खनन के लिए सौंपा गया, वह वर्ष 1976 से वन विकास निगम अंतागढ़ परियोजना मंडल के प्रभार में हैं। लेकिन प्रदेश के अपर प्रधान मुख्य वन-संरक्षक(भू-प्रबंध) द्वारा इस इलाके के वनीय क्षेत्र को लेकर जो पत्राचार किया है उसमें वन क्षेत्र का 'कक्ष क्रमांक' अंकित नहीं किया गया है और न ही 'अक्षांस एवं देशांस' दर्शाया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वनीय-क्षेत्र का 2 बार सर्वेक्षण भी किया गया, इस दौरान क्षेत्र का 'अक्षांस एवं देशांस' बदल दिया गया है।
सरकारी वाहन से हुयी कटे पेड़ों की ढुलाई -
रिपोर्ट में साफ बताया गया है कि वनमंडलाधिकारी रामअवतार दुबे ने वर्ष 2015 में ही पेड़ों का चिन्हांकन कर लिया था और पेड़ों की कटाई उनके निर्देशन में की गई है। इस कटाई के दौरान खनन कंपनी के अधिकारी भी मौके पर मौजूद थे, इतना ही नहीं काटे गए पेड़ों की ढुलाई भी सरकारी वाहनों से किया गया। वन विभाग में भर्राशाही व भ्रष्टाचार इस कदर हावी हो चुका है कि पहले तो लीज के दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन कर निर्धारित संख्या से काफी अधिक हरे पेड़ों की कटाई की गई, इसके बाद काटे गए पेड़ों की ढुलाई के लिए वन विभाग के सरकारी वाहन का उपयोग भी धड़ल्ले से किया गया है। सरकारी खजाने से राशि खर्च करके प्राइवेट खनन कंपनी के लिए सुविधा बनाई गई। वास्तविक रूप में डीएफओ दुबे ने सरकारी लचर तंत्र एवं भ्रष्ट व्यवस्था का खुलकर लाभ उठाया और राज्य वनीकरण नीति पर तमाचा भी रसीद दिया है।
पहले भी हो चुका है ऐसा -
छत्तीसगढ़ जब मध्यप्रदेश का हिस्सा था तब वर्ष 1986 में दुर्ग वनमंडल के डौंडी परिक्षेत्र के ग्राम बिटेझर में 2,573 पेड़ों की कटाई कर दी गई थी। इस मामले की उच्च स्तरीय जांच के बाद तात्कालीन वनमंडलाधिकारी टीआर कोसरिया, उप वनमंडलाधिकारी के.के. दुबे, परिक्षेत्र अधिकारी के मुखर्जी और डिप्टी रेजर को निलंबित कर दिया गया था। लंबी जांच-पड़ताल के बाद वन अफसरों को सजा भी हुई थी
* कंपनी ने बिना अनुमति 4 हजार से ज्यादा हरे पेड़ काट डाले हैं, जिसमें डीएफओ बराबर के शरीक हैं। लेकिन विभाग के अधिकारी कंपनी प्रबंधन से मिलीभगत कर मामले की लीपापोती कर रहे हैं। करीम का कहना है कि इलाके में सभी प्रजाति के पेड़ हैं लेकिन कटाई महज़ इसलिए की गई ताकि गूगल मैप में इलाके का घनत्व कम दर्शाकर खनन के लिए अधिक से अधिक जमीन हासिल की जा सकें। - अब्दुल करीम, शिकायतकर्ता
* कंपनी को 17 जनवरी 2002 से 20 साल के लिए 25 हेक्टयेर भूमि में आयरन ओर उत्खनन के लिए लीज पर दी गई थी, कंपनी को जिस क्षेत्र का खनिज पट्टा स्वीकृत किया गया है उससे बाहर जाकर अंधाधुंध तरीके से पेड़ों की कटाई की गई है। यदि वन क्षेत्रों पर खनन पट्टा मंजूर करने के पहले पेड़ों की कटाई की अनुमति देने के लिए भू-प्रबंध का कामकाज देख रहे अफसर वन विकास निगम की सहमति-असहमति और आपत्तियों पर विचार विमर्श करते तो बड़े पैमाने पर होने वाले नुकसान को रोका जा सकता था। - एस.सी. अग्रवाल, अपर प्रबंध संचालक, वन विकास निगम