कानपुर - आरा मशीनों में बर्बाद हो रहा देश का भविष्य
कानपुर 18 फरवरी 2017 (महेश प्रताप सिंह).
वैसे तो हर माता पिता यही चाहते हैं की उनका बच्चा पढ़ लिखकर देश में उनका नाम रोशन
करे, लेकिन हमारे देश में ऐसे बच्चे भी हैं जिनको पढ़ना तो दूर की बात है,
दो वक़्त की रोटी ही मिल जाए तो बहुत बड़ी बात है।
ऐसे ही बच्चे पेट की आग बुझाने के लिए बाल मजदूरी करने को विवश हैं।
जानकारी के अनुसार जिन बच्चों की उम्र पढ़ने लिखने खेलने कूदने की है, वही
मजबूर बच्चे रिक्शा खींचते या दूसरे के झूठे बर्तन साफ़ करते जगह जगह नज़र आ जाएंगे।
अभी तक आपने मासूम बच्चों को रिक्शा खींचते या चाय की दुकानों पर काम करते
हुए देखा होगा लेकिन अब बाल मजदूरी शहर की कई आरा मशीनों तक
पहुंच गई है।
कानपुर की कई आरा मशीनों में धड़ल्ले से सरेआम बाल मजदूरी कराई जा रही
है। किदवई नगर एवं जूही इलाके में बाल मजदूरी का जाल फैला हुआ है। यहां इन आरा मशीनों में खुलआम नाबालिग बच्चे काम करते देखे जा
सकते हैं। बच्चों से मजदूरी करवाने की सबसे बड़ी वजह है बच्चों का बड़े
कर्मचारियों के मुकाबले कम पैसों में काम करना, इसी कारण ये बच्चे आरा मशीन मालिकों की पहली पसंद बन चुके हैं।
मजे की बात तो ये है कि बालश्रम उन्मूलन का नारा लगाने वाले श्रम विभाग के अधिकारियों की नज़र इन बाल मजदूरों पर कभी नहीं
पड़ी या फिर आरा मशीनों में खतरनाक काम करते इन मासूमों को देख कर अनदेखा कर दिया गया। भला हो हमारे
प्रशासनिक अधिकारियों का, जिनकी अपार कृपा दृष्टि की वजह से ही शायद यहां बाल मजदूरी का मकड़ जाल फल फूल रहा है। अभी तक किसी भी आरा मशीन मालिक के खिलाफ श्रम विभाग के निरीक्षकों ने कोई भी कार्यवाही नहीं की है,
इससे तो यही लगता है की इन आरा मशीनों को सम्बंधित विभाग का पूर्ण संरक्षण
प्राप्त है।
वहीं दूसरी तरफ जिले की कई ऐसी संस्थायें हैं जो गला फाड़कर बाल मजदूरी ख़त्म
करो का नारा लगाती हुई नज़र तो आती हैं लेकिन मासूमों का बचपन बर्बाद कर रहे
समाज के ऊंचे ठेकेदारों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करती नज़र नहीं आती। ऐसी
संस्थाओं का होना ना होने के बराबर है। बहरहाल अगर जल्द ही बाल मजदूरी
रूपी महामारी को ना रोका गया और सरकार ने जल्द ही कोई पुख्ता कदम ना
उठाये तो देश के कई मासूमों का भविष्य किसी अँधेरे कुएं में जाकर खो जायेगा।