अनूठी है कानपुर में गंगा मेला की परम्परा
कानपुर 07 मार्च 2017 (हरी ओम गुप्ता). एशिया का मैनचेस्टर कहे जाने वाले
कानपुर जैसी होली तो शायद बिरले शहरों में खेली जाती हो। यहां का ऐतिहासिक होली मेला भले ही संगम तट पर न लगता हो लेकिन शहर के
हिंदू-मुसलमान जिस तरह परस्पर प्रेम के रंगों में डूबकर सरसैया घाट पर इसे
मनाते है वह विभिन्न धर्मो, जातियों और वर्गों का अद्भुत संगम बन जाता है।
शहर का केन्द्र माने
जाने वाले शिवाला बाजार की होली पूरे प्रदेश में अनोखी मानी जाती
है। चूडियों की छोटी बडी दुकानों के साथ पुष्प, मूर्ति और पूजन सामग्री के
लिए मशहूर शिवाला बाजार नगर में ही नही बल्कि प्रदेश में अपनी अलग पहचान
रखता है। यहां की होली में कई खास बातें है, जैसे यहां होली का पर्व साल
में दो बार मनाया जाता है। पहली होली यहां के प्रयागनारायण शिवाला मंदिर
में माघी पूर्णिमा के तीन दिन पूर्व मनाई जाती है। इसमें भगवान रंगनाथ व
गोदम्मा जी के साथ होली खेली जाती है। माघ पूर्णिमा 11 दिन पहले ही माघ
मेले का आयोजन होता है जिसे ब्रम्होत्सव कहते है। इस
पर्व में 51 किलो गुलाब, गेंदे के फूलों के साथ होली खेली जाती है। इस
होली की खास बात यह है कि इसमें गुलाल के साथ टेशू के फूलों से बने बसंती
रंग का प्रयोग किया जाता है और दूसरी होली फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष
पूर्णमासी को मनाते है।
शिवाला मंदिर के पूर्व प्रबंधक बद्रीनारायण तिवारी
से जब इस अनूठे ढंग की होली के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि आज
से ढाई दशक पहले टेशू के फूलों से ही होली खेली जाती थी लेकिन अब उसकी जगह
गुलाल ने ले ली है। पर हमारे यहां आज भी फूलों से ही होली खेली जाती है।
यहां का फाग भी पूरे शहर में अनोखा है, यहां की फाग मंडली बसंत पंचमी से
होली मेले तक फाग गाती है। मंडली के निकलने पर लोग टेशू के फूलों की वर्षा
कर होली खेलते है। 60 वर्षीय बैकुण्ठ त्रिवेदी तीन पीढियों से यहां फाग
गाते आ रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि आगे की पीढी भी इस परंपरा को कायम
रखेगी। बद्रीनारायण तिवारी ने बताया कि सन् 1861 को इस मंदिर की स्थापना
हुई थी तब से लेकर आज तक फूलों से होली खेलने की यह परंपरा चली आ रही है।
हिंदू-मुसलमान सभी यहां इकट्ठा होकर एक दूसरे को बधाई देते हैं।
बताते चलें जब भारत में अंग्रेजों का शासन था और कानपुर क्रांतिकारियों की
कर्मस्थली हुआ करता था। चन्द्र शेखर आजाद व अन्य क्रान्तिकारी यहां अपना
अज्ञातवास काटने आते थे। शहर के तमाम प्रबुद्ध लोग राजनैतिक चेतना की अलख
जगाने में लगे हुऐ थे। गणेश शंकर विद्यार्थी भी यहां अक्सर बैठकें करते थे।
’झण्डा ऊंचा रहे हमारा’ गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्ता पार्षद के साथ तमाम
व्यापारी और उद्योगपति भी क्रान्तिकारियों की भरपूर मदद करते और पनाह भी
देते थे। इस तरह अंग्रेजों की नजर क्रांतिकारियों तथा उनके संरक्षणदाताओं व
शुभचिंतकों पर डटी रहती थी। जहां कहीं आठ दस व्यापारियों व संभ्रान्त
नागरिकों की बैठक होती पुलिस वहां आ धमकती।
यह बात सन् 1925 की है, होली का
दिन था। रात को होली जलाने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी। व्यापारियों,
साहित्यकारों व प्रबुद्ध नागरिकों की एक बैठक बुलाई गयी जिसमें शहर के आठ
बडे गणमान्य व्यक्ति जो कि हटिया बाजार से संबद्ध थे जिसमें गुलाब चंद सेठ,
बुद्धुलाल महरोत्रा, हामिद खां, जागेश्वर त्रिवेद्धी, बालकृष्ण
शर्मा(नवीन), रधुवर दयाल, श्यामलाल गुप्ता(पार्षद) और पं0 मुंशीराम
शर्मा(सोमजी) होलिका दहन की तैयारी में शामिल थे। अंग्रेजी हुकूमत को जब इस
बात की जानकारी हुई तो वह तुरंत हरकत में आ गयी, आखिरकार शहर के इतने बडे नाम
एक साथ एकत्र क्यों हो रहे है। पुलिस पहुंची और सभी को हुकूमत के खिलाफ
साजिश रचने के आरोप लगाकर सरसैया घाट के पास वाली जेल में डाल दिया गया और
त्योहार बीत जाने के आठ दिन बाद छोडा गया। उस दिन अत्यन्त शुभ दिवस होने के
साथ ही शुभ अनुराधा नक्षत्र भी था। शहर के लोगों ने बाजार व प्रतिष्ठान
तैयारियों के मददेनजर बंद कर रखे थे और उनकी अगवानी के लिऐ जेल के बाहर
हजारों की संख्या में व्यापारीगण मौजूद थे।
जेल से रिहा होने के बाद इन सब
को सरसैया घाट स्नान के लिए ले जाया गया और जो होली- होलिका दहन के बाद
नहीं खेली जा सकी वह उस दिन सरसैया घाट के तट पर गुलाल लगाकर खेली गयी। तभी
से होलिका दहन से लेकर किसी भी दिन पडने वाले अनुराधा नक्षत्र की तिथि तक
कानपुर में होली खेली जाती है। अनुराधा नक्षत्र के दिन कानपुर का रंग कुछ
और ही दिखाई देता है। धर्म, जाति, वर्ग, अमीर-गरीब की दीवारें गिर जाती हैं
और दुपहर तक पूरा शहर होली में सराबोर हो जाता है। इसके उपरांत आज भी शाम
के समय सरसैया घाट के तट पर ही उन आजादी के मतवालों की याद को जिंदा रखते
हुए शहरवासी होली गंगा मेला मिलन समारोह का वृहद आयोजन करते हैं।
इस होली की अगुवाई कालांतर में सेठ गुलाबचंद किया करते थे और अब उनके बाद उनके पुत्र 78 वर्षीय सेठ मूलचंद(मुल्लू बाबू) ने यह बाग डोर संभाल
रखी है तथा उनके साथ संयोजक ज्ञानेन्द्र विश्नोई, विनय सिंह, प्रदीप
मेहरोत्रा, राम अवतार, शंशाक सिंह, प्रियेश मिश्रा तथा अनन्त राम गुप्ता
कानपुर हटिया हेाली महोत्सव कमेटी के सदस्य है। प्रत्येक वर्ष हटिया बाजार
ही मेले की तिथि को घोषित करता है और मेले में पूरा शहर शामिल होता है।
शासन, प्रशासन, व्यापारी और प्रबुद्ध वर्ग के साथ सामाजिक संगठन एवं आम
शहरी भी मेले में अपनी भागीदारी निभाते है। यह एक ऐसा लोकोत्सव है जिसमें
सही मायने में पूरा शहर शामिल होता है।