सुरक्षा बल जवान ने इंसानियत को किया शर्मसार, आदिवासी नाबालिग कन्या को बनाया हवस का शिकार
छत्तीसगढ़ 05 अप्रैल 2017 (जावेद अख्तर). सुकमा के चिंतागुफा में रविवार तड़के आदिवासी किशोरी के साथ सुरक्षा बल के जवानों के दुष्कर्म के बाद पीड़िता और उसका पूरा परिवार दहशत में है। घटना के तीसरे दिन तक किशोरी को चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी तो मेडिकल जांच कैसे संभव होगी। वहीं अब तक पीड़ित परिवार के पास न कोई सरकारी अमला पहुंचा और न ही कोई जनप्रतिनिधि, न प्रशासन और न ही कोई एनजीओ। यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी इस मामले से दूर ही बना रहा।
जानकारी के अनुसार सूचनाएं सभी मीडिया प्रतिनिधियों तक पहुंचाई गई मगर स्थानीय अखबारों के दो चार प्रतिनिधि व एक दैनिक अखबार प्रतिनिधि के अलावा कोई भी नहीं पहुंचा। इन्हीं कुछेक अखबारों के प्रतिनिधियों द्वारा लगातार दो दिनों से सीआरपीएफ से मामले पर पूछताछ और दुर्व्यवहार के बाद बड़ी मुश्किल से मौके तक पहुंचे और इस हृदय विदारक घटना का सच बाहर आ सका।
जानकारी के अनुसार सूचनाएं सभी मीडिया प्रतिनिधियों तक पहुंचाई गई मगर स्थानीय अखबारों के दो चार प्रतिनिधि व एक दैनिक अखबार प्रतिनिधि के अलावा कोई भी नहीं पहुंचा। इन्हीं कुछेक अखबारों के प्रतिनिधियों द्वारा लगातार दो दिनों से सीआरपीएफ से मामले पर पूछताछ और दुर्व्यवहार के बाद बड़ी मुश्किल से मौके तक पहुंचे और इस हृदय विदारक घटना का सच बाहर आ सका।
नक्सल और सुरक्षा बल के बीच मर रहे आदिवासी -
यह सब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का ऐसा स्याह नंगा सच है जो राज्य सरकार और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के मुंह को कलंकित करता है मगर बावजूद इसके आज भी सरकार इन घटनाओं से शर्मिंदा नहीं है बल्कि आदिवासी बाहुल्य इलाकों से नक्सल को बंदूक के ज़ोर पर खत्म करने का दंभ भरती है। असलियत इन क्षेत्रों में निवासरत परिवारों से पूछने पर समझ आता है कि हालात बीहड़ और चंबल से भी भयानक है। रोटी और साफ पानी के लिए 20-25 मील आना जाना पड़ता है, ऊपर से सुरक्षा बल और नक्सली, दो के दोनों ही बेगुनाह आदिवासियों का शिकार कर रहे। आखिरकार सहने की एक निर्धारित क्षमता की सीमा होती है मगर इन क्षेत्रों में सबकुछ सीमा से बाहर हो चुका है। सुरक्षा बलों द्वारा किया गया यह आखरी कृत्य तो कत्तई नहीं है। फिलहाल ऐसे कई मामले आज भी न्याय की आस में दम तोड़ने की कगार पर पहुंच चुकें हैं।
पीड़िता के पिता ने बयां किया अपना दर्द -
दुखी और व्यथित पिता ने चंद प्रतिनिधियों के सामने अपना दर्द बयां किया। पीड़िता के पिता ने बताया कि रविवार सुबह सुरक्षा बल के जवान गश्त पर गांव आए थे। करीब 4 बजे पटेलपारा में उनके घर जवान घुसे। भीतर सो रही पत्नी व बच्चों से मारपीट की। इसके बाद उसकी 14 वर्षीया पुत्री को 3 जवानों ने उठा लिया और कुछ दूरी पर ले गए। उसमें से एक जवान ने किशोरी से अनाचार किया। इस दौरान वह बुरी तरह चीखती रही। पीड़िता के गले में नोचने- खरोंचने के निशान साफ दिख रहे हैं। वहीं उसके प्राइवेट पार्ट में भी अंदरूनी चोट है।
धमकी से परिवार दहशत में -
सुरक्षा बल के जवान जातें जाते धमका कर गए थे। पीड़िता व उसके पिता ने बताया कि फोर्स के डर से एफआईआर नहीं करवा पा रहे हैं और न बेटी को अस्पताल ले जा रहे हैं। पीड़िता के पिता के अनुसार मारपीट का विरोध करने पर जवानों ने उन्हें धमकाते हुए कहा कि लड़की का भाई नक्सलियों के लिए काम करता है। पीड़िता से इस विषय में पूछे जाने पर वह आंसू ही बहाती रही।
आदिवासी बच्ची से बलात्कार, दोषियों को करें गिरफ्तार -
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सुकमा के चिंतागुफा में एक आदिवासी नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के पुष्ट खबर पर दोषियों के खिलाफ एफआई आर दर्ज कर गिरफ्तार करने की मांग की है। माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने अपने बयान में बस्तर आईजी द्वारा बिना जांच ही आरोपों को ख़ारिज किये जाने की निंदा की है। उन्होंने कहा है कि पुलिस व अर्धसैनिक बलों द्वारा आदिवासियों और महिलाओं को इसके पहले भी प्रताड़ित किया जाता रहा है, जिसकी पुष्टि मानवाधिकार आयोग और कई स्वतंत्र जांच दलों ने अपनी छानबीन में की है। कई मामलों में राज्य सरकार को आयोग और अदालतों में मात खानी पड़ी है और यौन-प्रताड़ित महिलाओं को मुआवजा देने के आदेश भी हुए हैं। माकपा ने कहा है कि हर नक्सली वारदात के बाद संबंधित क्षेत्र में पुलिस और सैन्य-बलों का आदिवासियों पर हमला बढ़ जाता है। यह घृणित वारदात भी भेज्जी कांड के बाद आदिवासियों पर लगातार हो रहे हमलों की ही एक कड़ी है। आम नागरिकों पर इस तरह के हमलों और हमलावरों को बचाने से न नक्सलियों से निपटा जा सकता है, न ही प्रशासन आदिवासियों का विश्वास जीत सकता है।
पूर्व में ऐसे घिनौने कई मामले सामने आए -
गौरतलब है कि सुरक्षा बलों पर ऑपरेशन के दौरान पहले भी महिलाओं से दुष्कर्म के आरोप लगते रहे हैं। बीजापुर के पेद्दागुल्लुर में जवानों पर 12 महिलाओं के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा जिसकी पुष्टि मानवाधिकार आयोग ने भी की। वहीं मीना खलको, हिड़मा आदि के साथ भी ऐसा ही कृत्य करने के बाद फर्जी मुठभेड़ दिखा एनकाउंटर कर दिया, आदिवासियों पर अत्याचार का जिंदा प्रमाण सोनी सोरी हैं। आदिवासियों द्वारा बहुत समय तक विरोध प्रदर्शन करने, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप और न्यायलय में पेश करने के बाद मामले को संज्ञान में लिया गया। पुलिस जांच ढाक की तीन पात साबित हुई। अभी भी कई मामले न्यायालय में चल रहे है।
* यहां पर सरकार के सभी दावे खोखले और महज़ कागज़ी होतें हैं। आदिवासियों की रक्षा व सुरक्षा के लिए बनाए गए नियम, कायदे, कानून और दिशा निर्देशों का शायद ही सुरक्षा बल और पुलिस पालन करती है। नाबालिग आदिवासी कन्या के साथ बलात्कार हो जाता है, सरकार और प्रशासन की कान पर जूं तक नहीं रेंगती है। यहां पर न्याय मिलने का स्वरूप बलात्कार और फर्जी मुठभेड़ में एनकाउंटर के रुप में होती है। - डा. लाखन सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता
* इस प्रकार की सूचना मिली थी। तस्दीक करवाने का प्रयास भी किया गया पर स्पष्ट जानकारी नहीं मिल सकी। परिजनों ने भी किसी प्रकार की शिकायत नहीं की है। शिकायत मिलने पर निष्पक्ष जांच की जाएगी। - अभिषेक मीणा, एसपी सुकमा