रिटायर्ड अफसर के दिल दिमाग पर लगी चोट, आत्महत्या से पहले एफबी पर लिखा सुसाइड नोट
रायपुर 06 मई 2017 (जावेद अख्तर). बीती 2 मई को देर रात 12:15 बजे फेसबुक पर एसबीआई के रिटायर्ड अधिकारी गोपालकृष्ण अवधिया ने अपनी वॉल पर पोस्ट में लिखा, मैं परिवार से तंग आकर आत्महत्या कर रहा हूं। अब सहने की शक्ति शेष नहीं है। यह मेरा सुसाइड नोट है। पोस्ट करने के लगभग एकाध घंटे में ही वायरल हो गई। उक्त जानकारी रायपुर के स्थानीय अखबार के कार्यालय पहुंचने पर अखबार टीम ने खोजबीन कर उस शख्स के बारे में जानकारी जुटाई एवं इसकी सूचना पुलिस को भी दी।
सूचना से पता चला कि उक्त व्यक्ति रायपुर के अवधियापारा मोहल्ले का निवासी हैं। करीब डेढ़ बजे गोपालकृष्ण के घर पर पहुंच पत्रकारों ने बातचीत की, थोड़ी देर में सीएसपी रायपुर मौके पर पहुंचे। शुरुआती पूछताछ के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया।
सूचना से पता चला कि उक्त व्यक्ति रायपुर के अवधियापारा मोहल्ले का निवासी हैं। करीब डेढ़ बजे गोपालकृष्ण के घर पर पहुंच पत्रकारों ने बातचीत की, थोड़ी देर में सीएसपी रायपुर मौके पर पहुंचे। शुरुआती पूछताछ के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया।
ऐसे बच गई जिंदगी -
स्थानीय अखबार की टीम ने पहुंच कर गोपालकृष्ण के घर का दरवाजा खटखटाया तो वे खुद लड़खड़ाते हुए बाहर आए। उन्हें देखने पर पता चला कि उन्होंने अपनी कलाई किसी धारदार चीज से काट ली थी। जल्द से मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराई गई तत्पश्चात उन्होंने बताया, मैं परिवार से तंग आ गया हूं और आधी रात को मुझे मेरे ही घर से बाहर निकाला जा रहा है।
उन्होंने एसबीआई से 2004 में वीआरएस लिया था और वे भाई-भतीजों के साथ रहते हैं। उन्होंने कहा कि मुझसे बात करने के लिए किसी के भी पास समय नहीं होता है। इसीलिये मुझे जिंदगी बोझ सी लगने लगी है, मैं खुश नहीं हूं और घुट-घुट कर मर रहा हूं। इससे तो बेहतर है कि मौत को ही गले लगा लिया जाए। हालांकि परिवारजनों, मीडियाकर्मी और पुलिस वालों के समझाने बुझाने पर उनको अपनी गलती का अहसास हो गया तब सबको धन्यवाद दिया क्योंकि अगर सही समय पर मीडिया नहीं पहुंचती, परिजनों और पुलिस को समय रहते सूचना नहीं देती तो शायद गोपालकृष्णन की मौत हो चुकी होती।
उन्होंने एसबीआई से 2004 में वीआरएस लिया था और वे भाई-भतीजों के साथ रहते हैं। उन्होंने कहा कि मुझसे बात करने के लिए किसी के भी पास समय नहीं होता है। इसीलिये मुझे जिंदगी बोझ सी लगने लगी है, मैं खुश नहीं हूं और घुट-घुट कर मर रहा हूं। इससे तो बेहतर है कि मौत को ही गले लगा लिया जाए। हालांकि परिवारजनों, मीडियाकर्मी और पुलिस वालों के समझाने बुझाने पर उनको अपनी गलती का अहसास हो गया तब सबको धन्यवाद दिया क्योंकि अगर सही समय पर मीडिया नहीं पहुंचती, परिजनों और पुलिस को समय रहते सूचना नहीं देती तो शायद गोपालकृष्णन की मौत हो चुकी होती।