खरी खरी – कलम नहीं है चाकू है, पत्रकार है या डाकू है ??
कानपुर 17 जून 2017. भाई हम तो खरी खरी कहते हैं, आपको बुरी लगे तो ना सुनो। कोई जबरदस्ती तो है नहीं. कानपुर में इन दिनों पत्रकारों की एक नई प्रजाति जन्म ले रही है, इस प्रजाति के पत्रकार कलम अथवा कैमरे के अपेक्षा चाकू पर अधिक विश्वास करते हैं और मौका देखते ही चाकूबाजी करके रंगबाजी कायम रखने का प्रयास करते हैं। क्या आपको लगता है मैं मजाक कर रहा हूं। ना भाई, सोलह आने सच है।
मामला 2 दिन पहले का है, एक व्यस्त चौराहे पर रात तकरीबन 10:00 बजे एक बडबोले पत्रकार महोदय अपने ट्रेनी साथी के साथ मजमा लगाए खड़े थे। तभी वहां क्षेत्र के एक मशहूर पत्रकार महोदय पहुंच गए। यह पत्रकार महोदय अपनी लेखनी अथवा फोटोग्राफी की प्रतिभा के लिए मशहूर नहीं हैं। यह मशहूर हैं गुम्मेबाजी के लिए, झगड़े के लिए, गाली गलौज के लिए और चाकूबाजी के लिए। तो इन मशहूर पत्रकार महोदय और दूसरे बडबोले पत्रकार महोदय के बीच किसी बात को लेकर वाद विवाद हो गया। वाद विवाद इतना बढा की मशहूर पत्रकार महोदय ने अपनी घनघोर प्रतिभा का परिचय देते हुए दूसरे पत्रकार की कमर पर बड़ा सा चाकू अड़ा दिया और बोले की अभी यहीं अतडियां निकालकर खबर लिख देंगे।
दूसरे बडबोले पत्रकार महोदय थरथरा गए। जीवन में इतना बड़ा चाकू वो भी इतने पास से, शायद ही देखा हो और यहां डायरेक्ट कमर में अड़ा दिया गया था। सोचने लगे की काश आज डायपर पहना होता तो थोड़ी हिम्मत दिखा जाता, पर कहीं हिम्मत दिखाने के चक्कर में पेट में दरवाजा न खुल जाये। अक्लमन्दी दिखाते हुये पत्रकार महोदय ने तत्काल वहां से दुडकी लगा दी। अगले दिन पत्रकार महोदय ने सीओ साहब के दरबार में गुहार लगाई और मशहूर पत्रकार के खिलाफ तमाम धाराओं में अर्जी लगा दी। मामला फिलहाल विचाराधीन है।
मशहूर चाकूबाज पत्रकार महोदय अपनी पूरी अकड फूं के साथ क्षेत्र में घूम घूम कर रंगबाजी करने में व्यस्त हैं। पहले भी इन साहब के ऊपर अपहरण, गुम्मेबाजी और मारपीट के कई आरोप लग चुके हैं। इनके बारे में ये भी मशहूर है कि ये महाशय जहां कमजोर पडते हैं वहां टैम्पो भर के औरतों को अपनी पैरवी में ले आते हैं। भगवाने जाने ये कैसी पत्रकारिता है जो कलम के बजाये चाकू से हो रही है। पर हमें क्या हम तो खरी खरी कहते हैं, आपको बुरी लगे तो ना सुनो। कोई जबरदस्ती तो है नहीं।