छत्तीसगढ़ - कैबिनेट की बैठक में फिर से हुई दो मंत्रियों के बीच तीखी बहस
रायपुर 21 जून 2017 (जावेद अख्तर). छग में भाजपा की सरकार पर इन दिनों संकट के बादल मंडराते दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि वर्तमान वर्ष की कैबिनेट की दूसरी बैठक में भी सत्तासीन दल के दो मंत्रियों के बीच जोरदार बहसबाजी हुई। तीसरे मंत्री के हस्तक्षेप ने नोकझोंक को खत्म कर माहौल को खुशनुमा बना दिया, मगर यह सवाल तो खड़ा हो ही रहा है कि भाजपा के मंत्री आपस में ही क्यों उलझने लगे हैं ?
विदित हो कि इस वर्ष की पहली कैबिनेट बैठक में शराबबंदी और सरकार द्वारा शराब बेचने के निर्णय को लेकर मदिरा मंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री के बीच तीखी नोकझोंक हो गई थी। दो मंत्रियों की नोकझोंक खासा चर्चा का विषय बन गई थी। लगभग डेढ़ माह बाद कैबिनेट की दूसरी बैठक में स्वास्थ्य मंत्री और कृषि मंत्री के बीच तकरार हो गई है मगर थोड़े समय पश्चात ही दोनों वरिष्ठ मंत्री बहस को भुला कर एक दूसरे से बातचीत करने लगे।
छग मंत्रालय में कैबिनेट की बैठक के दौरान प्रदेश में शिक्षकों की कमी पर चर्चा चल रही थी, इसी दौरान दो वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर अपने-अपने सुझाव को लेकर बातें करने लगे। दोनों मंत्रियों ने अपने-अपने सुझाव के पक्ष में तर्क रखना शुरू किया, धीरे-धीरे बहस और फिर नोकझोंक का रूप धारण कर लिया। इस पर बीच बचाव करते हुए उच्च शिक्षा मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को सलाह दी कि इन्हीं दोनों में से किसी एक को स्कूल शिक्षा विभाग का मंत्री बना दिया जाए। इस सलाह को सुनते ही दोनों मंत्री सकपका गये और दोनों ने ही भगवान बचाये कहते हुए अपने-अपने कान पकड़ लिये।
इस बात पर कैबिनेट में कुछ देर के लिये ठहाके लगने लगे और फिर इसके बाद दूसरे एजेंडे पर चर्चा शुरू हुई। इस पूरे वाक्ये से समझा जा सकता है कि भारी-भरकम बजट होने के बावजूद शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी कोई अनुभवी मंत्री नहीं लेना चाहता। दरअसल शिक्षा विभाग इन दिनों कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है और विभाग भ्रष्टाचार, फर्जी भर्ती व नियुक्ति तथा काले कारनामों के लिए विख्यात हो चुका है। सबसे बड़ी समस्या शिक्षकों के हजारों पद खाली पड़े हैं, पदोन्नति भी सालों से लंबित है, स्थानांतरण पर बवाल होता ही रहता है, सरकारी स्कूलों की जर्जर हालत, पाठ्य पुस्तक की छपाई एवं शिक्षा के गुणवत्ता मामले में भी छग की स्थिति देश के दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत पिछड़ी हुई है या यूं समझ लें कि सबकुछ भगवान भरोसे चल रहा है बस, ऐसे में विभाग की छवि सुुधारने और गुणवत्ता लाने को लेकर सलाह तो सभी दे देतें हैं लेकिन कोई अनुभवी मंत्री अपनी गर्दन नहीं फंसाने चाहता है।
विभाग की जिम्मेदारी संभालने की मजाकिया बात से ही दिग्गज मंत्री सकपका कर कान पकड़ बैठे। छग राज्य में जैसे तैसे भगवान भरोसे शिक्षा विभाग चल रहा है, इसमें गुणवत्ता खोजना भूसे के ढेर में सुई तलाशने जैसा है। भगवान भरोसे चल रहे शिक्षा विभाग पर छग सीएम प्रशंसा और बखान करते नहीं थकते। जबकि राजधानी में स्थित 95 फीसदी सरकारी शालाओं की हालत इतनी दयनीय है कि शाला के भीतर छींकने पर डर लगता है कि कहीं जीर्ण क्षीर्ण इमारत भरभरा कर बैठ न जाए। ऐसे में कौन अपनी मिट्टी पलीत कराना चाहेगा और वर्ष 2018 में चुनाव भी होने वाला है इसलिए ऐसी गलती कोई मंत्री गलती से भी नहीं करेगा।
विभाग की जिम्मेदारी संभालने की मजाकिया बात से ही दिग्गज मंत्री सकपका कर कान पकड़ बैठे। छग राज्य में जैसे तैसे भगवान भरोसे शिक्षा विभाग चल रहा है, इसमें गुणवत्ता खोजना भूसे के ढेर में सुई तलाशने जैसा है। भगवान भरोसे चल रहे शिक्षा विभाग पर छग सीएम प्रशंसा और बखान करते नहीं थकते। जबकि राजधानी में स्थित 95 फीसदी सरकारी शालाओं की हालत इतनी दयनीय है कि शाला के भीतर छींकने पर डर लगता है कि कहीं जीर्ण क्षीर्ण इमारत भरभरा कर बैठ न जाए। ऐसे में कौन अपनी मिट्टी पलीत कराना चाहेगा और वर्ष 2018 में चुनाव भी होने वाला है इसलिए ऐसी गलती कोई मंत्री गलती से भी नहीं करेगा।
पूर्व की बैठक में भी दो मंत्रियों के बीच हुई थी तीखी तकरार -
कैबिनेट की बैठक में मंत्री प्रेम प्रकाश पाण्डेय ने विचारोत्तेक प्रवचन देकर यह कह दिया कि अगला चुनाव जिताने की जिम्मेदारी 'मुख्यमंत्री व मदिरा मंत्री' को ले लेनी चाहिए क्योंकि प्रदेश में उत्तर प्रदेश की तरह फायरब्राण्ड योगी आदित्यनाथ जैसा कोई चेहरा नहीं है। डॉ. रमन सिंह का जो चेहरा है, उससे प्रदेश के लोग ऊब चुके हैं। इसके अलावा भाजपा के किसी मंत्री या विधायक में यह दम नहीं है कि वह अपने दम पर चुनाव जीत ले। हालांकि राजस्व मंत्री का खुलकर ऐसा कहना मदिरा मंत्री को सख्त नागवार गुजरा और वहीं बैठक में ही दोनों मंत्रियों के बीच तीखी बहस हो गई। दोनों मंत्रियों के मध्य हुई तीखी बहस के दौरान मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों की भूमिका एक मूकदर्शक की रही। हालांकि कुछ देर के लिए मंत्री रमशिला साहू ने मंत्री पाण्डेय का साथ अवश्य दिया लेकिन शेष मंत्री इसलिए मूकदर्शक बने रहे क्योंकि उन्हें चुनाव हारना मंजूर है मगर डॉक्टर रमन सिंह को नाराज करना मंजूर नहीं है। राजस्व मंत्री तो मानो शब्द भेदी बाण का जखीरा लेकर आए थे इसीलिए तो आगे उन्होंने बड़ी ही साफगोई के साथ कहा 'वे जानते हैं कि उनके कहने पर सरकार अपना फैसला नहीं बदलेगी परंतु शराब बेचने के फैसले का विरोध करके वे अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं। ऐसा करके वे अपने क्षेत्र की जनता को बता सकते हैं कि सरकार के इस फैसले के साथ वे नहीं हैं'।