जिस मुद्दे पर टिकी थी पूरे देश की नजर, उस पर नहीं हुई मोदी-ट्रंप के बीच वार्ता
नई दिल्ली, 27 जून 2017 (IMNB). प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
अमेरिकी यात्रा के दौरान माना जा रहा था कि मोदी ट्रंप से मुलाकात के दौरान
एच 1 बी-वीजा के मुद्दे को उठा सकते हैं। दोनों नेताअों के बीच अातंकवाद,
रक्षा सहित कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। लेकिन इस दौरान एच 1 बी-वीजा के
मामले में कोई बातचीत नहीं हुई।
गौरतलब है कि अमेरिका में लाखों भारतीय
आईटी कंपनियों में नौकरी करते हैं अप्रैल में ट्रंप सरकार ने वीजा जारी
करने के नियमों को और सख्त कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के
एक दस्तखत से भारतीय आईटी कंपनियां और उनके कर्मचारी परेशान हैं। माना जा
रहा था कि पीएम मोदी ट्रंप से मुलाकात के दौरान वीजा के मुद्दे को उठा सकते
हैं।
आखिर ये एच 1 बी वीजा है क्या ?
ये वीजा ऐसे लोगों को जारी किया जाता है जो किसी खास पेशे से जुड़े होते हैं, जैसे आईटी प्रोफेशनल्स, आर्किटेक्ट, हेल्थ प्रोफेशनल्स अादि। ये वीजा 6 साल के लिए जारी होता है लेकिन बाद में मियाद बढ़वाई जा सकती है। अमेरिका हर साल 85 हजार एच1बी वीजा जारी करता है। अमेरिका में एच 1बी वीजा पर सबसे ज्यादा भारतीय ही जाते है। पिछले साल 86 फीसद एच1बी वीजा भारतीय कर्मचारियों को मिले थे।
नए कानून में क्या प्रावधान है ?
अप्रैल में सख्त किए गए एच1 बी वीजा कानून के मुताबिक सिर्फ कुशल पेशेवरों को ही अमेरिका एच 1 बी वीजा देगा, मतलब सिर्फ कंप्यूटर प्रोग्रामर को एच 1 बी वीजा नहीं मिलेगा। इसके अलावा एच 1 बी वीजा धारकों का वेतन दोगुना कर दिया गया है। पहले एच1 बी वीजा वालों को कम से कम सालाना 60 हजार डॉलर यानी करीब 40 लाख रुपये देने का नियम था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 1 लाख 30 हजार डॉलर यानी करीब 85 लाख रुपये कर दिया गया है।
अमेरिका में भारत की टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो जैसी सॉफ्टवेयर कंपनियों के दफ्तर हैं और उनमें ज्यादातर भारतीय आईटी प्रोफेशनल काम करते हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर की सैलरी दोगुनी करने के फैसले से कंपनियों की लागत बढ़ रही है। जबकि भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में नौकरियों के साथ-साथ वहां की अर्थव्यवस्था में भी योगदान कर रही हैं। भारतीय IT कंपनी से अमेरिका में 4 लाख नौकरियां मिल रही हैं और अमेरिका को करीब 30 हजार करोड़ बतौर टैक्स चुकाए जा रहे हैं।
सिर्फ भारत से हर साल एच1बी और एल1 वीजा के फीस के तौर पर अमेरिका को 6 हजार करोड़ की कमाई होती है। अमरीका के कुल सॉफ्टवेयर कारोबार का करीब 65 फीसद भारत पर ही निर्भर है। इन आंकड़ों के बावजूद ट्रंप ने एच1बी वीजा नियम सख्त कर दिया। पीएम मोदी से उम्मीद लोगों को उम्मीद थी कि राष्ट्रपति ट्रंप के सामने एच1 बी वीजा का मुद्दा उठाएंगे, लेकिन एेसा नहीं हुअा।
आखिर ये एच 1 बी वीजा है क्या ?
ये वीजा ऐसे लोगों को जारी किया जाता है जो किसी खास पेशे से जुड़े होते हैं, जैसे आईटी प्रोफेशनल्स, आर्किटेक्ट, हेल्थ प्रोफेशनल्स अादि। ये वीजा 6 साल के लिए जारी होता है लेकिन बाद में मियाद बढ़वाई जा सकती है। अमेरिका हर साल 85 हजार एच1बी वीजा जारी करता है। अमेरिका में एच 1बी वीजा पर सबसे ज्यादा भारतीय ही जाते है। पिछले साल 86 फीसद एच1बी वीजा भारतीय कर्मचारियों को मिले थे।
नए कानून में क्या प्रावधान है ?
अप्रैल में सख्त किए गए एच1 बी वीजा कानून के मुताबिक सिर्फ कुशल पेशेवरों को ही अमेरिका एच 1 बी वीजा देगा, मतलब सिर्फ कंप्यूटर प्रोग्रामर को एच 1 बी वीजा नहीं मिलेगा। इसके अलावा एच 1 बी वीजा धारकों का वेतन दोगुना कर दिया गया है। पहले एच1 बी वीजा वालों को कम से कम सालाना 60 हजार डॉलर यानी करीब 40 लाख रुपये देने का नियम था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 1 लाख 30 हजार डॉलर यानी करीब 85 लाख रुपये कर दिया गया है।
अमेरिका में भारत की टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो जैसी सॉफ्टवेयर कंपनियों के दफ्तर हैं और उनमें ज्यादातर भारतीय आईटी प्रोफेशनल काम करते हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर की सैलरी दोगुनी करने के फैसले से कंपनियों की लागत बढ़ रही है। जबकि भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में नौकरियों के साथ-साथ वहां की अर्थव्यवस्था में भी योगदान कर रही हैं। भारतीय IT कंपनी से अमेरिका में 4 लाख नौकरियां मिल रही हैं और अमेरिका को करीब 30 हजार करोड़ बतौर टैक्स चुकाए जा रहे हैं।
सिर्फ भारत से हर साल एच1बी और एल1 वीजा के फीस के तौर पर अमेरिका को 6 हजार करोड़ की कमाई होती है। अमरीका के कुल सॉफ्टवेयर कारोबार का करीब 65 फीसद भारत पर ही निर्भर है। इन आंकड़ों के बावजूद ट्रंप ने एच1बी वीजा नियम सख्त कर दिया। पीएम मोदी से उम्मीद लोगों को उम्मीद थी कि राष्ट्रपति ट्रंप के सामने एच1 बी वीजा का मुद्दा उठाएंगे, लेकिन एेसा नहीं हुअा।