कई महीनों से शिक्षाकर्मियों को नहीं मिला वेतन, महिला शिक्षाकर्मी चने बेच चला रही परिवार
रायपुर 03 फरवरी 2018 (जावेद अख्तर). छग प्रदेश में सरकार का स्लोगन सबका साथ, सबका विकास झूठा साबित हो गया है। क्योंकि हाल ही में लाखों शिक्षाकर्मी जब हड़ताल पर उतरे थे, तब सरकार ने जैसे तैसे गठजोड़ जमा हड़ताल खत्म कराई एवं आंदोलनरत शिक्षाकर्मियों को पूर्ण विश्वास दिलाया था कि वेतन में कटौती नहीं होगी एवं कारवाई भी वापस ली जाएगी। पर अभी तक इस दिशा में कोई प्रभावी कार्य नहीं हुआ है।
सरकार ने इस बारे में लिखित आदेश जारी किए गए मगर लिखित आदेशों का पालन करने वाले कछुए की गति से काम कर रहे या फिर सरकार खुद ही ऐसा चाहती है। क्योंकि सरकार ने भी ध्यान देना जरूरी नहीं समझा कि शिक्षाकर्मियों को वेतन मिला भी है कि नहीं, पुनः से बहाली हुई कि नहीं। सरकार की उदासीनता कहें या फिर शिक्षाकर्मियों को जानबूझकर सोचे समझे तरीके से परेशान की योजना कहे क्योंकि कई महीने बीतने के बाद भी शिक्षाकर्मियों को वेतन नहीं मिला है। शिक्षाकर्मियों की लगातार गुहार के बाद भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
सरकार ने इस बारे में लिखित आदेश जारी किए गए मगर लिखित आदेशों का पालन करने वाले कछुए की गति से काम कर रहे या फिर सरकार खुद ही ऐसा चाहती है। क्योंकि सरकार ने भी ध्यान देना जरूरी नहीं समझा कि शिक्षाकर्मियों को वेतन मिला भी है कि नहीं, पुनः से बहाली हुई कि नहीं। सरकार की उदासीनता कहें या फिर शिक्षाकर्मियों को जानबूझकर सोचे समझे तरीके से परेशान की योजना कहे क्योंकि कई महीने बीतने के बाद भी शिक्षाकर्मियों को वेतन नहीं मिला है। शिक्षाकर्मियों की लगातार गुहार के बाद भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।
रायपुर में महिला शिक्षाकर्मी बेच रही चने -
इसे इंसान की मजबूरी ही कह सकते हैं कि उससे क्या से क्या करवा सकती है। इसका नज़ारा देखने को मिला रायपुर जिले में कार्यरत नवीन शिक्षाकर्मी संघ महिला अध्यक्ष गंगा शरण पासी का, जिनके परिवार का गुजारा वेतन नहीं मिलने से मुश्किल में पड़ गया है। घर की माली हालत को संभालने के लिए अब वे चना-फुट बेच रही हैं। उनका कहना है कि परिवार के भरण-पोषण, बच्चों के इलाज, ईंधन, राशन और दूसरी जरूरतों के लिए उन्हें चना-फुट बेचने को मजबूर होना पड़ा है।
दो तीन महीने से नहीं मिला वेतन -
जिला/जनपद पंचायत के अन्तर्गत कार्यरत शिक्षाकर्मियों को कुछ को नवंबर तो कुछ को दिसंबर महीने से वेतन नहीं मिल रहा है। नवंबर, दिसंबर एवं जनवरी बीत चुका है और अब फरवरी शुरू हो गई है। ऐसे में पेट पालने तथा घर चलाने के लिए शिक्षाकर्मियों के सामने गंभीर संकट पैदा हो गई।
वेतन नहीं मिलने पर रोजी-रोटी का संकट -
शिक्षाकर्मियों का कहना है कि अगर उन्हें सैलरी नहीं मिली, तो उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। उनका कहना है कि घर के लिए राशन-पानी से लेकर बच्चों की फीस और दैनिक वस्तुएं तक वे नहीं खरीद पा रहे हैं। उनकी आर्थिक हालत बिगड़ चुकी है. जिसके कारण वे मानसिक रूप से भी प्रताड़ित हो रहे हैं। यहां तक कि कई शिक्षाकर्मी तो दूसरे काम करने के लिए अपने अधिकारियों को छुट्टी का आवेदन भी दे रखा है।
5 तारीख तक वेतन देने का है आदेश -
शिक्षक पंचायत नगरीय निकाय मोर्चा के प्रदेश संचालक विकास सिंह राजपूत ने कहा कि मुख्यमंत्री के निर्देश के अनुसार 5 तारीख तक प्रदेश में कार्यरत शिक्षाकर्मियों को किसी भी हालात में वेतन भुगतान कर दिया जाना है, लेकिन इस आदेश पर आज तक अमल नहीं हो पा रहा है, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
बजट ही नहीं है तो वेतन कैसे दे -
उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले मुख्य सचिव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सभी जिला पंचायत सीईओ को किसी भी हालात में किसी भी मद से शिक्षाकर्मियों को अनिवार्य रूप से फरवरी के पहले सप्ताह तक वेतन का भुगतान करने का निर्देश जारी किया है, लेकिन इस निर्देश का भी कोई प्रभाव कैसे दिखाई दे सकता है क्योंकि अधिकतर जिला पंचायत में वेतन भुगतान के लिए राशि ही नहीं है।
* हमें तीन महीने से वेतन नहीं मिला है, घर परिवार के भरण पोषण और बच्चों के इलाज के लिए दूसरे काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा है - पीड़ित शिक्षाकर्मी रायपुर से
* राज्य सरकार शिक्षा एवं शिक्षाकर्मियों के प्रति लापरवाह एवं गैरजिम्मेदार रव्वैय्या रखती है। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण सामने है, शिक्षाकर्मियों के वेतन को लेकर ढाई तीन सालों से निरंतर समस्या बनी हुई है, मगर सरकार इस पर गंभीरता से विचार नहीं करती है। विधानसभा तक में बात उठ चुकी है मगर रमन सरकार सिर्फ जुबानी खर्च से काम चलाना चाहती है - बदरूद्दीन कुरैशी, उपाध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस कमेटी