जनसुनवाई पोर्टल बना मजाक, मनमाने तरीके से किये जा रहे हैं निस्तारण
कानपुर 26 अप्रैल 2018 (सूरज वर्मा). देश की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश की सरकार द्वारा प्रदेश की जनता को सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से जनसुनवाई पोर्टल प्रारंभ किया गया था। पर इन दिनों जनता को राहत देने की जगह विभागों द्वारा किये जा रहे मनमाने निस्तारणों से जनसुनवाई पोर्टल के प्रति जनता का विश्वास घटता जा रहा.
आईजीआरएस के मामलों की जांच करने में अधिकारी सभी नियमों को ताक पर रख देते हैं, यहां तक की पीडित के बयान लेना तक जरूरी नहीं समझा जाता है और मनमर्जी की रिपोर्ट लगा कर किसी तरह बवाल टाल दिया जाता है। ताजा मामला कानपुर के थाना बाबूपुरवा का है। पुलिस उत्पीड़न से पीडित दिग्विजय सिंह ने शिकायत निवारण प्रणाली पर गंभीर आरोप लगाते हुए बताया कि उनके द्वारा जनसुनवाई पोर्टल पर की गयी शिकायत संख्या 40016418014813 का थाना बाबूपुरवा द्वारा मनमाने तरीके से निस्तारण कर दिया गया। यही नहीं जांच उसी दरोगा मोहम्मद फहीम से करवाई गयी जिसने उनको प्रताडित किया था। जब आरोपी ही जांच अधिकारी बना दिया जायेगा तो निष्पक्ष जांच कैसे सम्भव है ? एैसा प्रतीत होता है कि थाना बाबूपुरवा क्षेत्र में आकर न्याय व्यवस्था, कानून, अनुशासन और संविधान जैसे शब्द अपना मतलब खो देते हैं।
बताते चलें कि पिछली सरकार में तो इस पोर्टल पर मजाक चल ही रहा था। पर इस सरकार से लोगों की उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बढ़ गयीं। मुख्यमंत्री योगी भी लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों और मंत्रियों सभी को निर्देश दिए हैं कि कोई भी फाइल किसी भी टेबल पर तीन दिन से अधिक नहीं रुकनी चहिये। यह होने भी लगा। परन्तु अफसरशाही और लालफीता शाही को कौन दुरुस्त करे? यह आसान काम नहीं है। आखिर पुरानी व्यवस्थाओं में रचे बसे लोग इतनी जल्दी सुधरने का नाम तो ले नहीं सकते। जितनी भी जनसुनवाई पोर्टल पर जनता द्वारा शिकायत भेजी जाती है, अफसरों द्वारा उनमें कमी निकलने का भरपूर प्रयास किया जाता है।
जनता द्वारा भेजे गये आवेदन जनता से अधिकारी के आफिस और अधिकारी के आफिस से जनता के पास निस्तारित लिखकर वापस भेजे जा रहे हैं। निस्तारित का वास्तविक अर्थ यह होता है कि समस्या का समाधान हो चुका है। पर यहाँ (जनसुनवाई पोर्टल पर) निस्तारित का अर्थ है कि अधिकारी या सम्बंधित विभाग द्वारा उस आवेदन पर कोई न कोई बहाना बनाकर वापस जस का तस आवेदनकर्ता के पास भेज दिया गया है। कई बार तो आवेदन केवल सरसरी निगाह से ही पढ़े जाते हैं और उसमें क्या लिखा है यह भी सम्बंधित विभाग नहीं जानता। कुछ भी उल्टा-सीधा तर्क देकर वापस आवेदनकर्ता के पास निस्तारित लिखकर भेज दिया जाता है। पर आखिर कब तक जनता इस प्रकार उल्लू बनेगी ?? जिस दिन जनता के सब्र का बांध टूट गया उस दिन इन भ्रष्ट अधिकारियों को भागे जगह नहीं मिलेगी।