मिट्टी के दियों से महकेगी दिवाली तभी तो कुम्हारों के घर आयेगी खुशहाली
कानपुर 06 नवम्बर 2018 (महेश प्रताप सिंह/अनुज तिवारी). इन दिनों बड़ी तेजी से घूम रहे कुम्हारों के चाक। इस चाक पर रखी मिट्टी रूप ले रही है तमाम खूबसूरत डिजाइनर दीयो की। चाक पर दीए बना रहे कुम्हारो की बस यही उम्मीद है की मिट्टी के दीयो के प्रति बढ़ जाए हर किसी की जागरूकता और उनके भी घर जले खुशियों की दिवाली का झिलमिल दिया।
दीपावली तो तभी पूरी होगी ना जब दीयो की कतार से सजेगा आपका घर आंगन। क्यों न इस बार हम बिजली की झालर लगाने के बजाय पूरे घर को मिट्टी के दीयों से सजाया जाएं। इनका ना केवल पूजा पाठ की दृष्टि से अपना महत्व है साथ ही इनसे जुड़ी है तमाम कुम्हारों की आय भी,जो कहीं ना कहीं इन बिजली के झालरों की चमक के पीछे घटकर रह जाती है।
यह चंद लाइनें साफ तौर पर कुम्हारो के दिल का हाल बयां कर देती है कि दिवाली आ गई है और मिट्टी के दीए खरीदकर आप उनके घर की दिवाली को रोशन कर सकते हैं। दरअसल दिवाली में अब बस बचे हैं गिनती के कुछ दिन ऐसे में सबसे पहला ख्याल आता है कि घर को रोशन करने के लिए कितनी तरह की लाइटों का इस्तेमाल किया जाये। मगर यह भी तो सोचिए कि अगर पूरा घर इन चमकीली झालरों से जगमग हो जाएगा तो फिर नन्हे से दिए की रोशनी क्या करेगी।
यदि हम दिवाली पर मिट्टी के दीए जलाएंगे तो ना केवल कुम्हारों का रोजगार बढ़ेगा बल्कि वही पर्यावरण भी सुधरेगा। उन कुम्हारों की सोचिए जिनकी दिवाली इन दीयो को बेचने के बाद ही रोशन होती है उनके बच्चे इस दीयो की आय से ही अपनी दिवाली को रोशन करते हैं। 15 प्रतिशत तक हवा का प्रदूषण कम हो सकता है अगर हर घर में सरसों तेल के 10 मिट्टी के दीए 1 घंटे तक जले।
दीपावली तो तभी पूरी होगी ना जब दीयो की कतार से सजेगा आपका घर आंगन। क्यों न इस बार हम बिजली की झालर लगाने के बजाय पूरे घर को मिट्टी के दीयों से सजाया जाएं। इनका ना केवल पूजा पाठ की दृष्टि से अपना महत्व है साथ ही इनसे जुड़ी है तमाम कुम्हारों की आय भी,जो कहीं ना कहीं इन बिजली के झालरों की चमक के पीछे घटकर रह जाती है।
बना कर दीए मिट्टी के, जरा सी आस पाली हैमेरी मेहनत खरीदो लोगों, मेरे घर भी दिवाली है
यह चंद लाइनें साफ तौर पर कुम्हारो के दिल का हाल बयां कर देती है कि दिवाली आ गई है और मिट्टी के दीए खरीदकर आप उनके घर की दिवाली को रोशन कर सकते हैं। दरअसल दिवाली में अब बस बचे हैं गिनती के कुछ दिन ऐसे में सबसे पहला ख्याल आता है कि घर को रोशन करने के लिए कितनी तरह की लाइटों का इस्तेमाल किया जाये। मगर यह भी तो सोचिए कि अगर पूरा घर इन चमकीली झालरों से जगमग हो जाएगा तो फिर नन्हे से दिए की रोशनी क्या करेगी।
यदि हम दिवाली पर मिट्टी के दीए जलाएंगे तो ना केवल कुम्हारों का रोजगार बढ़ेगा बल्कि वही पर्यावरण भी सुधरेगा। उन कुम्हारों की सोचिए जिनकी दिवाली इन दीयो को बेचने के बाद ही रोशन होती है उनके बच्चे इस दीयो की आय से ही अपनी दिवाली को रोशन करते हैं। 15 प्रतिशत तक हवा का प्रदूषण कम हो सकता है अगर हर घर में सरसों तेल के 10 मिट्टी के दीए 1 घंटे तक जले।
एक ओर चाक पर दिया, वहीं घर के बाहर तैयार दीयों को पकाने के लिए भट्टी तैयार की जा रही है कुछ ऐसा ही परिदृश्य है कुम्हार रामकृष्ण प्रजापति के आसपास का. 35 साल से काम कर रहे हैं रामकृष्ण चाक पर दियो को अलग अलग आकृति दे रहे हैं वे कहते हैं मैंने अपने पिता से चाक पर काम करना सिखा था मगर मिट्टी के बर्तनों की घटती मांग के कारण हम अपनी पुरानी जगह से हट कर थोड़ी दूर रह रहे हैं मिट्टी के बर्तन से हमारे परिवार का गुजर-बसर कई सदियों से चला आ रहा है। वहीं कुम्हार नंदू का कहना है हम लोगों की दीपावली तो अपने दियो को बेचकर ही रोशन होती है दीयो को अधिक से अधिक लोग खरीदते हैं तो हमारे परिवार की दीपावली अच्छे से रोशन होती है।